
पंकज कुमार मिश्रा मीडिया पैनलिस्ट पत्रकार एवं शिक्षक केराकत जौनपुर
भारत निर्वाचन आयोग ने शुक्रवार को शिंदे गुट को शिवसेना नाम दिए जाने का आदेश दिया और बालासाहेब की स्थापित इस पार्टी के चुनावी सिंबल को भी शिंदे साहब को सौंप दिया जो न्याओचित है । आयोग ने कहा कि एकनाथ शिंदे की पार्टी का चुनाव चिह्न धनुष और तीर बरकरार रखा जाएगा।आयोग (ईसीआई) ने कहा कि शिवसेना का मौजूदा संविधान अलोकतांत्रिक है। बिना किसी चुनाव के पदाधिकारियों के रूप में एक मंडली के लोगों को अलोकतांत्रिक रूप से नियुक्त करना विकृत कर दिया गया है। इस तरह की पार्टी संरचनाएं विश्वास पैदा करने में विफल रहती हैं। चुनाव आयोग ने पाया कि 2018 में संशोधित शिवसेना का संविधान भारत के चुनाव आयोग को नहीं दिया गया। 1999 के पार्टी संविधान में लोकतांत्रिक मानदंडों को पेश करने के अधिनियम को संशोधनों ने रद्द कर दिया था, जिसे आयोग के आग्रह पर दिवंगत बालासाहेब ठाकरे द्वारा लाया गया था। आयोग ने यह भी कहा कि शिवसेना के मूल संविधान के अलोकतांत्रिक मानदंड, जिन्हें 1999 में आयोग द्वारा स्वीकार नहीं किया गया था, को गुप्त तरीके से वापस लाया गया, जिससे पार्टी एक जागीर के समान हो गई! अपनी तीखी प्रतिक्रिया देते हुए महाराष्ट्र के पूर्व मुख्य मंत्री और शिवसेना के वरिष्ठ नेता ने उद्धव ठाकरे ने पत्रकारों को कहा है कि भारत का चुनाव आयोग बीजेपी के केंद्र सरकार के इशारे पर काम कर रहा है और अपनी विश्वसनीयता को खो चुका है और आयोग के आदेश से लोकतंत्र की हत्या हुई है और वे इस मामले को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती देंगे ! पर यह सब राजनीतिक अराजकता का परिणाम है जो उद्धव एंड कंपनी ने खुद से अपने सर लिया है तो भुगत रहें । अपने पुत्र पुत्रियों को राजनीति में जबरन घुसेड़ने के चक्कर में पार्टियां कैसे खत्म होती है यह उद्धव साहब को कांग्रेस से सिख लेना चाहिए था और उद्धव ठाकरे के लिए संजय राउत विभीषण साबित हुए जिन्होंने रावण की सेना में रहते हुए राम का फायदा कराया । वो संजय राउत ही है जिन्होंने बीजेपी को वेकओवर दे रखा है । यदि आदित्य ठाकरे को राजनीति में ही घुसाना था तो धार्मिक मंचो के जरिए घुसा लेते साहब क्या जरूरत थी धर्म विरोधी ताकतों से हाथ मिलाने की । क्या जरूरत थी शरद पवार जैसे हिंदू विरोधियों के साथ जाने की ? हर क्षेत्र की तरह राजनीति में भी घुसने के कई रास्ते है। इसमें से जो आपके लक्ष्य को पूरा कर दे उसी के हिसाब से राजनीति में एंट्री कर सकते है। राजनीति में आने के लिए समाज सेवा सबसे पहला रास्ता है इस रास्ते में आप समाज सेवा के जरिए लोगो को जोड़ते है और अपने समान इच्छा के लिए काम करते हुए बड़े नेताओं की चापलूसी करते हुए उनकी कृपा से निगम पार्षद से आप करियर को शुरवात कर सकते है और विधायक तक जा सकते है। आप अपने आप का कितना शोषण करवा सकते है यही आपकी सफलता है। राजनीति में आने का ये दूसरा बड़ा तरीका है इसका तरीका थोड़ा अलग है इसके लिए आपको सबसे पहले बड़े नेताओं के कार्यालय पर नजर रखनी पड़ेगी और उनके अरदली और निजी पीए के बारे में जानकारी रख कर उनके द्वारा नेताओ के कार्यालय पर अपनी जगह बनानी पड़ती है। नेता कहां जायेगा उसके रास्ते में लोगो की भीड़ का इंतजाम करना होगा। ऐसा नही है भीड़ जुटाने के लिए आपको जनता के बीच में जाना पड़ेगा। बल्कि किसी एक व्यक्ति का आप उस नेता के कार्यालय के माध्यम से छोटा छोटा काम करवाते रहिए। बस जिसका काम होगा वो 10 आदमी आपके लिए जुटा देगा। बस इसी तरीके से काम का स्तर बढ़ाते रहिए फिर आप नेताओ की लॉबी में घुस जायेंगे। कितना बड़ा आप दलाली कर सकते है उतना बड़ा आपको पद मिलेगा। इसमें जनता का साथ नही चाहिए बल्कि राजतंत्र की जानकारी जरूरी है। राजनीति में प्रवेश का ये रास्ता सिर्फ वायवसायियों के लिए है। आपको पता है की व्यवसाई अपने मार्केट के नेता होते है और मार्केट के काम को करवाने के लिए पैसा उघाह कर नेता को देते है। नेता के लिए एक आयाम खड़ा करते है। फिर इनकी दिमाग के हिसाब से इनका रुतबा बढ़ता है और रुतबे बढ़ने से इनकी राजनीतिक पैंठ बढ़ती है। नेताजी का पोषक होने की वजह से इन नेता से ज्यादा वायवसायी पर नेताओ द्वारा बड़ा ध्यान रखा जाता है। फिर इनकी शुरवात संगठन में महासचिव से शुरू होकर अध्यक्ष तक होती है। और फिर जब ये नेता से मिलने आते है तो नेता अपना व्यक्तिगत समय अलग से देता है।उपरोक्त मध्यम में अगर आप समझें कि आप राजनीति का रुख बदल सकते है तो आप कदापि नहीं बदल सकते। क्योंकि इन सब का आधार चापलूसी है और जो जितना बड़ा चापलूस उतनी बड़ी राजनीति।परंपरागत राजनीति का स्तोत्र है इससे न तो राजनीति का भला होता है न देश का। ये राजनीति जरूर है पर उसे क्रांति नहीं की जा सकती। अखिल भारतीय परिवार पार्टी इन सब रास्तों के माध्यम से राजनीति में आने को मनाही करती है।