हाई प्रोफाइल पॉलिटिक्स के शिकार हुए बृजभूषण शरण सिंह..!

पंकज कुमार मिश्रा मीडिया विश्लेषक केराकत जौनपुर
मैने पिछले विश्लेषण में भी लिखा था कि अगर आप भारत के लचर और कमजोर कानून और न्याय व्यवस्था का फायदा नहीं उठा सकते तो आप निहायत सीधे या फिर निहायत बेवकूफ है । हमारे देश में आरोप प्रत्यारोप लगाकर किसी को ब्लैकमेल किया जा सकता है क्योंकि कानून इसकी छूट देता है आपको । खासकर महिलाओं को और दलितों को विशेष छूट है कि वह बगैर किसी सबूत और शिष्टता के किसी को भी अंदर करा सकते है ।  और आजकल तो नया ट्रेंड है कि जब किसी का कुछ भी न उखड़ पा रहा हो तो उसे ‘यौन शोषण’ के आरोप में फंसा दो, फिर सपोर्ट करने के लिये तो पूरा पॉलिटिक्स खड़ा हो ही जायेगा। लड़कियों के लिये अपना काम निकालने के लिये उनका शरीर सबसे आसान हथियार है और काम न निकल पाने पर कुंठा में बदला लेने के लिये तो तुरूप का इक्का है क्योंकि बाद में कानून भी कुछ इस तरह उनकी मदद करता है कि वो अबला/बेचारी/पीड़ित/शोषित तो स्वत: ही नजर आने लगती है बाकी बची हुयी सहानुभूति की कमी को पूरा करती है उनको रोने की, मुंह बनाने की, अदायें दिखाने को मिली कुदरती नेमत। एक सोशल मीडिया पोस्ट के अनुसार पुरूषों का भी शोषण होता है, महिलायें ही करती है और खुद को गोल्ड डिगर कहलवाने में बड़ा गर्व भी फील करतीं है ‘कि हां हम अपने भविष्य की सुरक्षा देख कर ही अपने निर्णय लेंगे अब तुम्हें जो सोचना हो सोचो, तुम्हें हम गोल्ड डिगर लगते है तो हां है हम गोल्ड डिगर।’  वो खेलतीं है पुरूषों की भावनाओं से, जो पहाड़ से सब्र और मजबूती का पुरूष उनके प्रेम में कभी बच्चा बन गया होता है वो उसका भी बड़ी स्मार्टली यूज करके, उसे फिजीकल, इमोशनल, फाइनेंशियल हर तरह से चूस कर निकल जातीं है और सेटल हो जाती है फिर किसी नये शिकार के साथ… फिर वही मीठी बातें, वहीं नखरीली अदायें, वैसी ही इंस्टा पोस्ट्स और वैसा ही शोषण। जी हां शोषण क्योंकि जबतक उनका काम निकल रहा है वो उनकी ‘फकिंग प्राइवेट लाइफ/सेक्सुअल लाइफ’ है फिर काम निकल जाने के बाद या कोई बेहतर मिल जाने के बाद वहीं सबकुछ एक नया नाम पा जाता है जिसे नाम दिया जाता है ‘शोषण’ पुरूष? वो इन लड़कियों का शिकार होकर भी इस पुरूष प्रधान समाज में आवाज तक नहीं उठाता क्याोंकि लोग हसेंगे उसपर। मर्दानगी के झूठे दंभ में वो सब कुछ झेल कर सख्त बनें रहने का ढोंग करता है और वो लड़की/महिला जानती है कि वो हर तरह से सेफ है क्योंकि अव्वल तो उसके खिलाफ़ आवाज उठेगी ही नहीं और उठ भी गयी तो खुद को ही विक्टिम बना कर परोस देगी और बाकी काम तो कानून कर ही देगा। हां बाल यौन शोषण का नाम सुना है? उसमें लड़को का भी शोषण होता है और लड़कियों से कम नहीं होता सबसे ज्यादा करतें है पारिवारिक करीबी और रिश्तेदार। मुझे इस बारे में कोई आकड़े नहीं परोसने सब उपलब्ध है इंटरनेट पर, अब ये समाज की कड़वी हकीकत है जिसे दबे मुंह सब स्वीकार करने लगे है और जिनके साथ हुआ है उनकी तो खैर अलग ही बात है। पुरूषों के साथ हो रहे इसी पक्षपाती रवैये के चलते काफी समय से भारत में महिला आयोग की तर्ज पर पुरूष आयोग की मांग हो रही है। सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ वकील और एक्टिविस्ट क्षमा शर्मा ने दैनिक जागरण के संपादकीय में काफी पहले एक लेख लिखा था जिसमें उन्होंने राष्ट्रीय महिला आयोग के आंकड़े देकर यह बताया था कि अप्रैल 2013 से जुलाई 2014 तक दुष्कर्म के जितने मामले दर्ज कराए गए उनमें से 53.2 प्रतिशत मामले झूठे पाए गए और इस वजह से अपने देश में हर वर्ष औसतन 94 हजार पुरुष आत्महत्या करते हैं। यह संख्या औरतों के मुकाबले छह प्रतिशत अधिक है। सोचिये ये दस वर्ष पुराने आकड़े ही कितने भयावह है और तबसे अब तक यौन शोषण के आरोप लगाने के फैशन में कितनी वृद्धि हो गयी है। खैर यह एक बेहद पेचीदा मामला है जिस पर गंभीर चर्चा और अलग से विस्तृत लेख लिखने की आवश्यकता है पर अभी बात करतें हैं यौन शोषण के आरोप और उनके राजनीतिक इस्तेमाल पर। पिछले कुछ सालों के बड़े नाम का जिक्र करियें जिनके काम या राजनीति काफी अच्छी चल रही थी पर अचानक से उन पर यौन शोषण का आरोप थोप कर उनका सर्वस्व खत्म कर दिया गया और वे या तो अब चर्चा से बाहर है, या कानूनी लड़ाई लड़ रहे है या फिर जेल में है।
आसाराम बापू  से शुरू करते है जब वो कन्वर्जन के खिलाफ़ बड़े स्तर पर काम कर रहे थे। उन आदिवासियों, नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में भी जाते थे जहां पर तात्कालिक सरकारें भी नहीं जाती थी और मिशनरीयां चावल के बोरे पहुंचा रही थी। वहाँ आध्यात्म, हिंदुत्व और योग का प्रचार कर रहे थे, अनाज शिक्षा और साहित्य पहुंचा रहें थे कि अचानक से शाहजहांपुर की एक लड़की नें दिल्ली में जीरो एफआईआर दर्ज कराई, कागजी तौर पर खुद को नाबालिक सिद्ध किया और उनको सबसे जटिल कानून पॉस्को में आरोपित कराया। जोधपुर में घटना का होना बताया, एफआईआर की पहली कोशिश शाहजहांपुर में फिर दिल्ली में जीरो एफआईआर और मध्य प्रदेश से गिरफ्तारी। लड़की की मेडिकल रिपोर्ट में रेप की पुष्टि नहीं हुयी तो गलत तरह से छूना भी अपराध की श्रेणी में रखा गया क्योंकि लड़की ने खुद को नाबालिक बताया था, उसकी ही सहेली ने मामला झूठा बताया पर तबतक और भी लड़कियां आगे कर दी गयी और यौन दुराचार के केसों की बौछार हो गयी। उनके जेल में रहते बाहर गवाहों की हत्या कराई गयी और उनको बेल न मिलने देने का पूरा पूलप्रूफ इंतजाम किया गया। इस पूरे मामले पर आसाराम को दोषी दिखाते हुये आइपीएस अजय पाल लांबा की किताब ‘ गनिंग फॉर द गॉडमैन, द ट्रू स्टोरी बिहाइंड आसाराम बापू’ पर कोर्ट ने उस वक्त तथ्यों से छेड़छाड़ को स्वीकारते हुये रोक भी लगायी थी जो बाद में इकोसिस्टम के दबाव में हटा ली गयी। आसाराम समय के साथ दोषी करार दिये गये और जेल के मेहमान ही बन कर रह गये और उनका धर्मांतरण के विरूद्ध खड़ा किया पूरा सिंडिकेट टूट गया। और मिशनरियां, मदरसे फिर से अपने काम में धड़ल्ले से जुट गयें। जयेंद्र सरस्वती  जी पर आते है जब हिंदू धर्म के सर्वोच्च धार्मिक पद पर आसीन कांची कामकोटि पीठ के शंकराचार्य पर धार्मिक कार्यों से आगे बढ़ कर सामाजिक कार्यों में संलिप्तता और हिंदू धर्म को मिशनरी चक्र से बचाने के प्रयासों के चलते करूणानिधि और जयललिता की कुत्सित राजनीति का शिकार हुये। पहले एक तमिल लेखिका के द्वारा यौन शोषण के आरोप लगे जिसमें कुछ सिद्ध नहीं हुआ फिर हत्या का एक फर्जी मुकदमा मढ़ा गया जिसमें मामले की सुनवाई 2009 में शुरू हुई, कोर्ट में 189 गवाहों को प्रस्तुत किया गया।  सबूतों के अभाव के चलते सभी आरोपियों को पुदुचेरी कोर्ट ने 13 नवंबर, 2013 को बरी कर दिया। गिरफ्तारी पर दक्षिण से ज्यादा उत्तर भारत में प्रदर्शन हुये, तात्कालीन राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी तक को हस्तक्षेप करना पड़ा था। स्वामी जी प्रतिष्ठा पर गहरी चोट पहुंची और दक्षिण में भी यह केस मिशनरियों मदरसों को मजबूत करने में सहायक सिद्ध हुआ।  कुलदीप सिंह सेंगर  की बात करें, उन्नाव से भाजपा विधायक रहे, बाहुबलियों में गिनती थी, यौन शोषण का आरोप लगा मेडिकल में सेंगर का दोष सिद्ध नहीं हुआ पर लड़की ने यहां भी बालिग लड़की ने स्वयं को नाबालिक बताया था जो कुलदीप सेंगर को पॉस्को में फंसा उनका राजनीतिक करियर खाने को पर्याप्त था। सेंगर को करीब से जानने वाले आज भी सीना ठोक कर कहते है कि कुलदीप सेंगर एकबार हत्या करा सकते हैं पर रेप नहीं कर सकते फिलहाल सेंगर जेल में है और मामला न्यायालय में विचाराधीन हैं।  जितने नाम लिखूंगा लेख उतना लंबा खिचेगा यहां तक की नरेंद्र मोदी और योगी आदित्यनाथ तक पर स्नूपगेट के फ़र्जी आरोप मढ़े गये जिसमें बाद में कुछ भी सिद्ध नहीं हुआ। यौन शोषण के फैशनेबल आरोपों में आगे और भी नाम जुड़ेंगे जिसमें बागेश्वर धाम सरकार के पीठाधीश्वर धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री का नाम सबसे ऊपर है क्योंकि उन्हें विरोधियों या और स्पष्ट कहें तो आज के नव आंदोलन जीवियों की तरफ से रंग बिरंगा फ्रॉड और न जाने क्या क्या कह कर इसी तरह की धमकी दी गयी है।  तात्पर्य ये है कि जब ये इतने बड़े नाम, इतनी प्रतिष्ठा वाले प्रभावशाली लोग इन झूठे केसों में फंस कर तबाह हो जाते है कभी मिशनरीयों के हाथों तो कभी जे हा दि यों के हाथों। अब तो मामला एक कदम और आगे बढ़ा कर बड़े राजनीतिक शिकार बनाने के लिये यौन शोषण को हथियार की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है तो सोचिये जब इन मुकदमों में आम आदमी फंसता होगा तो उसका क्या हाल होता होगा? फिलहाल ताजा राजनीतिक शिकार बनें है गोंडा के बाहुबली सांसद बृज भूषण शरण सिंह। हरियाणा के पहलवानों नें मोर्चा खोला हुआ है पर प्रक्रिया से ज्यादा आडंबर बनाया है, लेफ्ट इकोसिस्टम के एक्टिविस्ट और पत्रकारों के साथ धरना दे रहें हैं जिनका एजेंडा ही मोदी विरोध है और सबूत के नाम पर गोल मोल बातें करतें है और साथ ही तिरंगे के साथ अपने उन्हीं मेडल्स को लहरा देतें है जो बृजभूषण के कुश्ती फेडरेशन के अध्यक्ष रहने के दौरान विभिन्न टूर्नामेंट से जीत कर लायें है।  मामले के कई एंगल है जो साफ करतें है की बृजभूषण प्रथम दृष्टया दोषी नहीं है पर वो उनकी जबरन गिरफ्तारी पर अड़े है और बिना जांच ही सारी मांगे मनवा लेना चाहते है जोकि छिछली नजरों से देखने पर ही क्षेत्रवाद, जातिवाद और कुश्ती फेडरेशन के पद पर ‘अपने आदमी’ के होने की कुंठाग्रस्त मानसिकता को दिखा रहा है।  मजे की बात ये है कि इसी वक्त उत्तर प्रदेश में निकाय चुनाव है और कर्नाटक में विधानसभा चुनाव जिसका राजनीतिक लाभ भाजपा को छोड़कर बाकी सभी को होगा इसलिए एक बार ठंडे बस्ते में जा चुका ये आंदोलन अपनी टाइमिंग को लेकर सवालों के घेरे में होगा ।

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