
पंकज कुमार मिश्रा, मीडिया कॉलमिस्ट शिक्षक एवं पत्रकार केराकत जौनपुर
प्रधानमंत्री जी ने नए संसद भवन के उद्घाटन की बात क्या कही पूरा का पूरा विपक्ष उछल पड़ा । शिवसेना के एहसानो तले दबी कांग्रेस खुलकर यह तो नहीं कह पा रही की उनका विरोध वीर सावरकर के जन्मदिन पर होने वाले उद्घाटन के कारण है लेकिन अन्य विपक्षी दलों ने राष्ट्रपति को न बुलाने वाला मुद्दा जोर शोर से सर पर उठा रखा है जो हास्यास्पद और पूरी तरह थोथरही है । याद कीजिए छत्तीसगढ़ में नए विधानसभा भवन का उद्घाटन वहां के कांग्रेस सरकार में होना था और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल चाटुकारिता में इतने अंधे हो गए थे की तत्कालीन दलित और वंचित समाज से आने वाली उपराज्यपाल अनुसूइयां उइके का नाम तक शिलापट्ट पर अंकित नहीं करने दिया और उनकी जगह सोनिया गांधी और राहुल गांधी का नाम अंकित करवा के अपनी चापलूसी का बेमिसाल उदाहरण प्रस्तुत किया गया तब तो इतनी उछल कूद नही मचाई सेक्युलर और दलित चिंतकों ने । वैसे यह संविधान की ताकत है कि एक दलित महिला इस देश की राष्ट्रपति, राज्यपाल , उपराज्यपाल बन सकती है लेकिन विपक्ष के तथाकथित सेक्युलरों के किताब में वही ‘दलित महिला ‘ नए विधान सभा भवन का उद्घाटन नहीं कर सकती उसके खिलाफ यशवंत सिन्हा को वोट किया जा सकता है और दूसरी तरफ अब ये नौटंकी अब देखिए । दो लाइन की बात है, मगर महत्वपूर्ण बात है, अगर समझ मे आया गया हो तो अपने देश समाज और संविधान के लिए लड़िए ना की धूर्त विपक्ष के एजेंडे के लिए , एक बात याद दिला दूँ, एकलव्य न तो प्रतिभा में कमजोर था और न ही ताकत में मगर उस समय के सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्थाओं की गरिमा थी जिसका मान रखते हुए उसे अपना अंगूठा काटना पड़ा पर अबके दलित चिंटू उस व्यवस्था को धता बताकर मनुवाद जैसी उच्च सारगर्भित संस्कृति का अपमान कर रहे । उधर ट्रक पर सवार एक बंदा ही काफी है कांग्रेस का तिया पांचा कराने को जिसे लोग राहुल गांधी के नाम से जानते है । उनके राजनैतिक विचारों से कोई सहमत नही होता और उन्हे माफी मांगने की भी आदत पड़ चुकी है । पहले राफेल पर फिर चौकीदार पर और अब अडानी मामले पर राहुल काफी शर्मिंदा महसूस कर रहे होंगे। आप इस लेख से असहमत हो सकते है पर एक विश्लेषक के तौर पर उक्त बातें सत्यता की कसौटी पर खरी है । उन्हें पसंद या नापसंद किया जा सकता है। लेकिन उनकी राजनीति के तौर-तरीकों पर हैरान हुए बिना नहीं रहा जाता। वे अचानक कोई ऐसा काम कर जाते हैं, जिसे देखकर हसीं आ जाती है और मन में प्रश्न उठता है कि आज के दौर में क्या इस तरह से भी पप्पू गिरी वाली राजनीति हो सकती है ? राहुल गांधी का एक वीडियो खूब वायरल हो रहा है, जिसमें वे ट्रक पर चढ़ते, ट्रक की सवारी करते दिख रहे हैं और उसके बाद ट्रक वालों से बातचीत करते नज़र आ रहे हैं। दरअसल राहुल गांधी अपने परिवार के पास शिमला जा रहे थे। लेकिन इसके लिए सीधे कार से न जाकर, उन्होंने अंबाला से चंडीगढ़ तक का सफर ट्रक से तय किया। अभी कर्नाटक चुनाव में राहुल गांधी ने लोकल बस में सवारी की थी, जिसमें आम महिलाओं से बातचीत कर उनकी वास्तविक स्थिति के बारे में जाना था। कर्नाटक में उन्होंने डिलीवरी करने वाले शख़्स के साथ स्कूटी की सवारी की थी। चुनाव से पहले श्री गांधी जब दिल्ली में थे, तो वे एक दिन मुखर्जी नगर इलाके में पहुंच गए, जहां प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले विद्यार्थी बड़ी संख्या में रहते हैं। राहुल गांधी ने उन लोगों के बीच बैठकर उनसे बातें कीं। इसके कुछ दिन बाद वे दिल्ली विश्वविद्यालय के हॉस्टल पहुंच गए, और वहां छात्रों के साथ दोपहर का भोजन करते हुए उनकी समस्याओं और भावी तैयारियों के बारे में जानकारी ली। दिल्ली विश्वविद्यालय ने इस पर राहुल गांधी को नोटिस भेजकर अपनी आपत्ति भी जतलाई और इसे अनाधिकार प्रवेश करार दिया। कर्नाटक की बस यात्रा में भी कुछ लोगों ने इस बात पर ही आपत्ति जतलाई थी कि राहुल गांधी महिलाओं के लिए आरक्षित सीट पर क्यों बैठे। अच्छा है कि महिलाओं के हक के बारे में इतना सोचने वाले लोग हैं, अन्यथा कभी बस पर, कभी सड़क पर, कभी घर या दफ्तर पर रोजाना महिलाओं के सम्मान और अधिकारों पर चोट होती है और कहीं कोई उफ़् भी नहीं निकलती।
दिल्ली के जंतर-मंतर पर ही महिला पहलवान न्याय के लिए महीने भर से बैठी हैं, राहुल गांधी ने उनके समर्थन में ऐसी तत्परता नहीं दिखाई उल्टे महिलाओं के आरक्षित सीट पर बैठ कर चमचों की वाहवाही का मामला बना बैठे । बहरहाल, राहुल गांधी ने इस बार ट्रक की सवारी कर फिर से नए सियासी रास्ते खोल दिए हैं। देश के लोग राजनेताओं को लालबत्ती वाली गाडिय़ों, प्राइवेट विमानों, हेलीकॉप्टरों में देखने के आदी हो चुके हैं। कोई राजनेता वीआईपी संस्कृति दूर करने का ऐलान करता भी है, तो भी उसमें पूरा तामझाम नज़र आ जाता है। प्रधानमंत्री के रोड शो ही याद कर लें, जिसमें करोड़ों रुपए फूंक दिए जाते हैं, सिर्फ इसलिए कि एक व्यक्ति की जय-जयकार होती रही, उस पर फूलों की बौछार होती रहे। कई बार भ्रम हो जाता है कि हम लोकतंत्र में जी रहे हैं या राजशाही में। अभी बतौर विपक्ष मोदी जी के विदेश दौरे पर हैं, तो वहां भी उनके कार्यक्रमों को भव्य बनाने के लिए बेतहाशा ख़र्च हो रहा है। अब वो ख़र्च चाहे जिसकी जेब से हो, उसकी वसूली का इंतजाम सत्ता के जरिए ही कराया जाता है। मोदीजी पहले प्रधानमंत्री तो है नहीं , जो विदेश यात्राओं पर जाते हैं। उनके पहले भी तमाम प्रधानमंत्री कूटनीतिक यात्राएं करते थे। पं.नेहरू की लोकप्रियता का आलम तो ये था कि वे जिस देश में जाते, वहां लोग उन्हें गालियां बकते थे , मोदी जी को तो देखने और उनके भाषण को सुनने के लिए लोग उमड़ पड़ते है । तब जब कांग्रेस के बनाए साम्राज्य में हिरोशिमा में नेहरूजी की सभा में कितनी भीड़ एकत्र हुई, या जॉन एफ़ केनेडी किस तरह प्रोटोकॉल तोडक़र विमान के दरवाजे पर नेहरूजी के स्वागत के लिए लोग आ गए थे क्युकी तब कोई मोदी नही था जो अपने दम पर ऐसे मुकाम तक पहुंचा हो , ऐसी तमाम तस्वीरें इतिहास के पन्नों पर अंकित हो रही , मोदी जी की हर विदेश यात्रा को विपक्ष इसी तरह पेश करता है, मानो उनसे पहले किसी का कोई स्वागत हुआ ही नहीं। राजनैतिक प्रचार के इस दौर में राहुल गांधी अब जनता के बीच सीधे पहुंचकर स्टंट बाजी कर रहे । भारत जोड़ो यात्रा में राहुल गांधी ने साढ़े तीन हजार किमी का सफ़र पैदल तय किया और इस दौरान वे लगातार देश के आम लोगों के बीच ही रहे। इस यात्रा से राहुल गांधी को एक नेता से पहले एक सनकी व्यक्ति के तौर पर लोगों ने पहचाना। हालांकि राहुल गांधी पहले भी इसी तरह लोगों के बीच जाया करते थे। भट्टा परसौल से लेकर हाथरस तक, कठुआ कांड को लेकर दिल्ली में मार्च निकालने वाले सेक्युलर हो चले राहुल गांधी कानपुर घटना पर नही गए । अरबपति राहुल गांधी नोटबंदी में फटे जेब से लेकर लॉकडाउन के दौरान सड़क पर मज़दूरों से बात करने तक वे कई मौकों पर जनता के बीच आए खूब नौटंकी की । लेकिन तब विपक्ष के प्रचार तंत्र की बदौलत राहुल गांधी की छवि शहजादे और नौसिखिए राजनेता की बनी हुई थी, इसलिए जननेता के तौर पर निभाई जाने वाले उनकी फालतू की जिम्मेदारियों को भी सस्ते मज़ाक का सबब बना दिया गया। मगर राहुल गांधी इन सबसे बेखबर रहकर अपने काम में लगे रहे। फिर भारत जोड़ो यात्रा में जब वे इस प्रजातंत्र की उम्मीदों के विपरीत डटे रहे और हर तरह की चापलूसी का सामना करते हुए यात्रा पूरी कर ली, तो फिर उनकी छवि बनाना आसान नहीं रहा, क्योंकि अब जनता ने असली पप्पू को देख लिया था। अब श्री गांधी कुछ भी करते हैं तो उस पर जनता का ध्यान नहीं जाता है और मीडिया अगर उसे जानबूझकर दिखाने की कोशिश करे, तो वह मीम बन जाता है । भारतीय समाज में ट्रकों का विशिष्ट स्थान है। ट्रकों के पीछे लिखी पंक्तियां हमेशा से अनोखे अंदाज़ में जीवन के फलसफे सामने लाती रही हैं। इन्हें लिखने वाले गुमनाम लेखक जीवन की वास्तविकताओं को गहराई से समझते हैं और बड़ी सहजता से उन्हें बयां कर देते हैं। राहुल गांधी भी इसी शैली में राजनीति कर रहे हैं। वे विशिष्टता के भाव को पीछे छोड़ते हुए सहज तरीके से आम लोगों से घुल मिल रहे हैं, ताकि राजनीति में फिर आम जनता को केंद्र में लाया जा सके। उसे ध्यान में रखकर नीतियां और कानून बनें। नाव, बस, ट्रक, साइकिल, स्कूटी आम लोगों के ये वाहन उनकी ज़िंदगी की धुरी भी हैं। अब राहुल गांधी की इन वाहनों की सवारी से आम भारतीयों उनका जमकर मीम बना रहा जिससे उनका हास्य से और क़रीब का रिश्ता बन रहा है। इसका चुनावी राजनीति पर क्या असर होगा, ये तो बाद की बात है, फ़िलहाल ये देखना सुखद है कि इस दौर का कोई नेता गांधीजी की तरह राजनीति को हास्य से जोड़ रहा है। एक समय था जब महिलाओं को जिंदा जलाया जाता था, तीन बार तलाक बोलने पर हल्लाला के लिए वेश्याबृत्ति में जबरजस्ती ढकेला जाता था, संविधान ने उस जालिम व्यवस्था से महिलाओं को आजाद कराया किसने जवाब है मोदी जी । बेटियों को पैतृक संपत्ति में हक़ और अधिकार भारत के संविधान ने दिया है, पति और ससुराल के जुल्म उत्पीड़न और प्रताड़ना से लड़ने का अधिकार बेटियों को संविधान ने दिया है। मैं दावे के साथ कह रहा हूँ आज अगर केंद्र में भाजपा को छोड़कर किसी भी अन्य पार्टी की सरकार होती तो छुआछूत और नीच ऊंच के आधार पर भेदभाव , उपद्रव , दलित समाज का शोषण शीर्ष पर होता । एक दलित से इतनी घृणा और छुआछूत वो भी 21वीं सदी में तभी सम्भव हो सकती है जब विपक्ष का सेक्युलर एजेंडा हावी हो और आरएसएस जैसी हिंदुत्ववादी शक्तियां हाथ पर हाथ धरे बैठी रह जाती।गहराई से मेरी इन बातों का विश्लेषण कीजियेगा, वैसे सेक्युलर व्यवस्था में फेसबुक ने हम जैसों की रीच बहुत कम कर दी है। जिन लोगों तक मेरी पोस्ट पहुंच रही है अपनी प्रतिक्रिया जरूर दें। महामहिम राष्ट्रपति से संसद भवन का उद्घाटन कराना न कराना केवल एक फिरकी है असल मुद्दा तो मोदी जी की रफ्तार को रोकना है । यह न केवल वोटर, समाज और संसद का अपमान है बल्कि बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर के बनाये संविधान, प्रयासों और सपनों का भी अपमान है।