भारत के पड़ोसी देश विश्वास के लायक नही, सतर्क रहें सरकार..!

पंकज कुमार मिश्रा मीडिया पैनलिस्ट शिक्षक एवं पत्रकार केराकत जौनपुर
समय – समय पर भारत के पड़ोसी देश भारत को दर्द देते आए है । भारत जितना इन देशों के समक्ष नरम रहता है ये देश उतना ही सर चढ़कर कोहराम मचाते है । चीन , पाकिस्तान नेपाल बांग्लादेश और श्रीलंका ऐसे ही देश है जिनकी सहायता भारत गाहे बगाहे करता रहा है पर इन्होंने अवसर आने पर भारत के पीठ पर छुरा घोपने का कार्य किया है । माओवादी नेता पुष्प कमल दहल प्रचंड नेपाल के नए प्रधानमंत्री हुए । प्रचंड को नेपाल के 275 सांसदों में से 165 का समर्थन हासिल किया । नेपाल में सरकार बनाने के लिए प्रचंड की पार्टी सिपिएन एमसी ने पहले शेर बहादुर देउबा की नेपाली कांग्रेस से गठबंधन तोड़ा और उसके बाद पूर्व पीएम केपी शर्मा ओली की पार्टी सिपियन यूएमएल से गठबंधन कर लिया । नए गठबंधन की दोनों प्रमुख पार्टियों के बीच रोटेशन पॉलिसी के आधार पर प्रधानमंत्री बनने पर सहमति बनी है । बातचीत के बाद पहले प्रचंड को प्रधानमंत्री बनाया गया है । इसके बाद केपी शर्मा ओली नेपाल के प्रधानमंत्री बनेंगे ! नेपाल के नए प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल प्रचंड का भारत के साथ हमेशा थोड़ा खट्टा  रिश्ता रहा है । इससे पहले भी प्रचंड दो बार नेपाल की सियासी कमान संभाल चुके हैं. उस दौरान उनका चीन से प्रेम किसी से नहीं छुपा था । इसके अलावा पिछले कार्यकाल के दौरान प्रचंड ने भारत को लेकर कई ऐसे बयान भी दिए, जो चुभने वाले थे ।जब साल 2009 में प्रचंड के हाथों से सत्ता चली गई थी तो उसके पीछे भी उन्होंने भारत के तत्कालीन यूपीए सरकार का  हाथ बताया था ! दरअसल, नेपाल के प्रधानमंत्री प्रचंड के भारत के साथ लंबे समय से संबंध रहे हैं । एक दौर साल 1996 से लेकर 2006 तक वो भी था, जब नेपाल में सरकार और माओवादियों के बीच गृह युद्ध छिड़ा हुआ था और ऐसे समय में प्रचंड समेत कई माओवादी नेता भारत में रहे थे और तत्कालीन भारत की सरकार ने उनको संरक्षण दिया था ! नई दिल्ली में समझौते के बाद पहली बार सत्ता की सीढ़ी तक पहुंचे प्रचंड अब भारत के लिए अलग बयानबाजी करते दिखेंगे । नेपाल में जब माओवादियों के खिलाफ विद्रोह बढ़ गया तो भारत की ओर से प्रचंड समेत नेपाल के माओवादी नेताओं से शांति समझौते पर बात की गई.  नवंबर साल 2006 में नई दिल्ली में माओवादियों की सात पार्टियों ने 12 सूत्री समझौते पर हस्ताक्षर किए । समझौता होने के बाद नेपाल में 12 सूत्री समझौते के आधार पर ही आम चुनाव का ऐलान किया गया । इस चुनाव में माओवादी नेताओं को जनता से भरपूर समर्थन मिला, जिसके बाद प्रचंड ने पहली बार नेपाल की सत्ता की कमान संभाल ली ।  साल 2008 से 2009 तक प्रचंड नेपाल के प्रधानमंत्री रहे । प्रचंड को मिली पहली सत्ता के पीछे भारत का अहम योगदान रहा, उसके बावजूद अपने पहले कार्यकाल में प्रचंड ने कुछ ऐसी चीजें कीं, जो भारत के गले से नीचे नहीं उतरीं । अब जब प्रचंड  प्रधानमंत्री बनते ही भारत की जगह चीन पहुंच गए । दरअसल, नेपाल और भारत मित्र देश हैं । दोनों के बीच रोटी-बेटी का रिश्ता कहा जाता है. भारत के पांच राज्यों से नेपाल की सीमा जुड़ती है । प्रचंड के सत्ता संभालने से पहले तक नेपाल में जब भी कोई प्रधानमंत्री बनता था तो पहला आधिकारिक दौरा हमेशा भारत का करता था ।लेकिन प्रचंड ने यह परंपरा बदल दी और भारत की जगह चीन दौरे पर जाकर सबको चौंका दिया ।
                  प्रचंड ने इसके बाद भारत को लेकर कई ऐसे बयान दिए, जिससे दोनों देशों की सरकारों के बीच तनाव पैदा होने लगा. उसी बीच प्रचंड ने इतना तक कह दिया कि अब तक भारत और नेपाल के बीच जो भी समझौते या संधियां हुई हैं, उन्हें खत्म कर देना चाहिए या बदल देना चाहिए. बात और तब बिगड़ गई, जब प्रचंड सरकार ने तत्कालीन नेपाल आर्मी चीफ रुकमंगड़ कटवाल को पद से हटा दिया, जबकि भारत की सरकार  इस फैसले से पूरी तरह नाखुश थी ! भारत के सामने कभी अपना सिर नहीं झुकाऊंगा ऐसा बयान कही से भी भारत के हित में नहीं ।भारत के गतिरोध के बीच प्रचंड को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ गया और उनकी जगह अन्य माओवादी नेता माधव “नेपाल ” ने ले ली । प्रचंड ने अपने हाथों से सत्ता जाने के पीछे भारत की सरकार को जिम्मेदार ठहराया. साथ ही प्रचंड ने उस समय यह भी दावा किया कि माधव नेपाल को प्रधानमंत्री बनाने के पीछे भारत सरकार  का हाथ है. इसी बात से भड़के हुए प्रचंड ने उस समय सार्वजनकि तौर पर नेपाल की संप्रभुता का मुद्दा उठाया और कहा कि वे भारत के आगे कभी अपना सिर नहीं झुकाएंगे! भारत की सरकार से नाराज प्रचंड के संबंध चीन के साथ मजबूत होते रहे! अपने पहले कार्यकाल से हटने के बाद प्रचंड ने चीन के कई निजी दौरे किए और चीनी कंपनियों से नेपाल के इंस्फ्रास्टक्चर और एनर्जी प्रोजेक्ट्स में निवेश करने की बात कही । दूसरी ओर, जब माधव नेपाल संसद में नया संविधान लागू कराने में असमर्थ रहे तो प्रचंड ने एक बार फिर भारत से अपने संबंध ठीक करने शुरू कर दिए. साथ ही प्रचंड ने एक बार फिर आम चुनाव कराने की कोशिशें शुरू कर दीं । हालांकि, यह चुनाव प्रचंड के लिए अच्छा साबित नहीं हुआ और उनकी पार्टी को कम सीटों पर ही संतोष करना पड़ा. इस बात पर एक बार फिर प्रचंड भारत सरकार  पर भड़क गए और भारत पर ही अपनी हार का ठीकरा फोड़ दिया! प्रचंड अक्सर अपने सार्वजनिक बयानों में भारत को घेरते हुए नजर आते थे. साल 2015 में नेपाल में जब भूकंप ने तबाही मचाई तो प्रचंड ने चीन से संबंध मजबूत किए. चीन की मदद से ही प्रचंड, केपी शर्मा समेत कई माओवादी नेता एक साथ आ गए. साल 2015 से 16 तक जहां केपी शर्मा ओली नेपाल के प्रधानमंत्री रहे तो साल 2016 से 2017 तक सरकार की कमान प्रचंड के हाथों में आ गई । इन्हीं सालों में नेपाल के कई हिस्सों में भारत का विरोध होने लगा । इसी दौरान राजधानी काठमांडू में एक बार प्रचंड ने भारत को लेकर विवादित बयान भी दिया. प्रचंड ने कहा कि नेपाल अब वो नहीं करेगा, जो भारत कहेगा! साल 2017 में प्रचंड के हाथों से सत्ता नेपाली कांग्रेस के शेर बहादुर देउबा के हाथों में आ गई. कई सालों से सत्ता से दूर प्रचंड ने पिछले कुछ समय में भारत के साथ एक बार फिर संबंध सुधारने शुरू किए. जुलाई 2022 में प्रचंड ने भारत दौरा किया, जहां उनकी मुलाकात बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा से हुई । प्रचंड ने अपनी यात्रा को लेकर कहा कि वे बीजेपी के न्योते पर ही भारत आए हैं ।उल्लेखनीय है कि दिल्ली से लौटते समय प्रचंड ने कहा था कि हमारी कई ऐसे मुद्दों पर बातचीत हुई जो पिछले काफी समय से अनसुलझे हैं । उन्होंने कहा कि इन सभी मुद्दों को सुलझाने की ओर काम किया जाएगा. हालांकि, प्रचंड के आलोचकों ने कहा कि वह अपनी निजी महत्वाकांक्षा को पूरा करने यानी प्रधानमंत्री बनने की चाह में भारत के दौरे पर गए हैं. वह भारत से मदद हासिल करने के लिए पहुंचे हैं । प्रचंड सरकार के सत्ता में आने से भारत पर क्या होगा असर ? यह भी चिंता का विषय है , जानकारी  मिली है की नेपाल के एक पत्रकार राजेश मिश्रा ने केपी ओली और पुष्प कमल के  बीच गठबंधन के बाद बनी नई सरकार को लेकर बात की. उन्होंने बताया कि प्रचंड सरकार के आने से भारत और नेपाल के संबंधों पर क्या असर पड़ेगा । राजेश ने कहा कि नेपाल कभी अपने आप का झुकाव किसी ओर ज्यादा नहीं रखता है. उन्होंने कहा कि चाहे चीन हो या भारत, दोनों ही नेपाल के मित्र देश हैं । नेपाल में रहे पूर्व  राजनयिकों का मानना है  की नेपाल के लोगों के भारतीय लोगों के साथ काफी अच्छे संबंध रहे हैं, ऐसे में नेपाल की किसी भी सरकार के होने का कुछ फर्क भारत और नेपाल के रिश्तों पर नहीं पड़ना चाहिए । समझा जाता है की  जहां तक नेपाल  का संबंध है तो कोई भी देश अपने पड़ोसी से अच्छा व्यवहार और संबंध ही चाहता है, इसलिए कोई भी सरकार रहे, भारत के साथ संबंध ठीक रहना चाहिए क्योंकि यही दोनों राष्ट्रों के हित में है! वैसे नेपाल के नए प्रधान मंत्री कट्टर माओवादी हैं और चीन के राष्ट्रपति और अन्य शीर्ष  चीनी  कम्युनिस्ट नेताओं से नेपाल के प्रधान मंत्री प्रचंड का काफी गहरा संबंध है !

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