
पंकज कुमार मिश्रा मीडिया कॉलमिस्ट शिक्षक एवं पत्रकार केराकत जौनपुर
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ,जी हां यह नाम सुनते ही सेक्युलर इंसानों के नसों में जहर फैल जाता है जबकि सबसे अधिक कोई सेक्युलर है तो खुद संघ है । देशभक्ति के लिए मशहूर संघ आज भी अपनी प्रासंगिकता पर खरी है । संघ के स्वयं सेवक आज भी देश सेवा में तल्लीन है । संघ का देश की राजनीति में हस्तक्षेप किसी से छुपी नहीं किंतु वह हस्तक्षेप केवल देश हित हेतु होता है जिसे लेकर विपक्ष कुढ़ता भी रहा है । लगभग सौ साल पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना हुई थी तब कांग्रेस उफान पर थी । आज नौ वर्षों से संघ की राजनीतिक ईकाई भाजपा शीर्ष पर है और कांग्रेस साथी ढूढ़ने पर मजबूर है अस्तित्व की लड़ाई के लिए। हो सकता है कांग्रेस नये गंठजोड़ के साथ मिलकर भाजपा को अपदस्थ कर दे मगर यदि संघ के अतीत पर नज़र डालें तो ऐसा नहीं लगता कि सत्ताच्युत होते ही उसका हाल कांग्रेस वाला हो जाएगा । संघ के साथ राजनीतिक विरासत ऋणात्मक है । राष्ट्रपिता के हत्यारों का साथ देने के आरोप लगाता है किंतु संघ सत्य के साथ खड़ा है , सावरकर के माफ़ीनामों की विरासत है किंतु सर्वविदित है की वीर सावरकर वीर थे और चंद मानसिक गुलाम उनके बलिदान को धूमिल करना चाहते है , आज़ादी के बाद तीन बार प्रतिबंधित होने की कुटिल चाल की शिकार है संघ । इंदिरा गांधी के आपातकाल में सहयोग देने की भी विरासत है । मगर यह सब कहकर भी उसके विरोधी कुछ नहीं उखाड़ पाते उसका । क्योंकि सभी ऋणात्मक विरासतों के साथ-साथ उसके पास जनता के बीच लगातार सरोकार बनाये रखने की अक्षुण्ण विरासत भी है । वैचारिक दृढ़ता की विरासत भी है । ऐसी वैचारिक दृढ़ता केवल मार्क्सवादियों के पास ही है इसीलिए संघ ने स्थापना के समय जो तीन शत्रु चिन्हित किये थे उनमें ईसाईयों , मुसलमानों के अलावा कांग्रेस नहीं कम्युनिस्ट थे । उस समय भी कांग्रेस में तिलक से शुरू करते हुए मदन मोहन मालवीय तक अनेक ऊर्जावान और यशस्वी संघी ही थे जिनका योगदान आज भी भुलाए नहीं भुलाया जा सकता और देश कृतज्ञ है ।
कम्युनिस्ट ( मार्क्सवादी ) ही स्पष्ट तौर पर राष्ट्रवाद और साम्प्रदायिकता के विरोधी थे । कांग्रेस तो राष्ट्रीय आन्दोलन की लड़ाई लड़ ही रही थी और उसके नेता गांधी स्वयं रामराज्य लाने की बात करते थे । नेहरू ही सही मायने में गैर – साम्प्रदायिक ही नहीं गैर – धार्मिक भी थे । इसलिए गांधी से ज़्यादा चिढ़ संघ को नेहरू से है । मगर कांग्रेस का नेतृत्व कभी संघ की सोच की गहराई तक गया ही नहीं , केवल राजनीतिक लड़ाई ही लड़ता रहा । मगर धीरे- धीरे संघ देश के हर वर्ग में घुसपैंठ करता ही रहा । वह एक ऐसा आधार तैयार करता रहा कि जब भी मौका मिलेगा पूरी व्यवस्था को जकड़ लेगा विषधर की कुंडली की तरह । आज वही हो रहा है । भाजपा भले चुनाव हार जाए पर संघ नहीं हारेगा। यही कारण है कि जहाँ पर भी हिन्दू बहुमत में हैं वहाँ संघ जानता है कि देर या सवेर वह सत्ता में आ ही जायेगा । जहाँ हिन्दू बहुमत में नहीं हैं वहाँ पर मौकापरस्त समझौता कर सत्ता में आ जायेगा । स्वतन्त्रता से पहले बंगाल में मुस्लिम लीग के साथ भी साझेदारी कर ली थी । कांग्रेस और अन्य अनेक दलों को जो यह लगता है कि दक्षिण में भाजपा का कोई भविष्य नहीं है वह उत्तर- पूर्व में उसके ग्राफ को देख ले । बस दक्षिण में मौके की तलाश में है । यह संघ के संगठन की सोच ही है कि 28 जुलाई से 13 जनवरी ( पोंगल ) तक तमिलनाडु में 168 दिन की पदयात्रा की शुरूआत अमित शाह ने कर दी है । जयललिता की गैर – मौज़ूदगी में अन्ना द्रमुक अनाथ सी है , उसको निगलने की तैयारी है । उत्तर – पूर्व में मणिपुर में जो हो रहा है उसको धर्म के चश्मे से देखेंगे तो कहानी समझ में आएगी । सही मायने में 2023 का मणिपुर 2002 के गुजरात की ही कहानी है । भले ही उसे लाख लानतें भेजो भाजपा की सोच स्पष्ट है । उसे संघ के एजेंडे पर ही काम करना है । संघ आज भले ही नरेन्द्र मोदी के सामने लाचार है मगर जब एजेंडा उसी का पूरा हो रहा है तो चुप्पी ही ठीक है । दुधारू गाय की दुलत्ती भी खानी पड़ती है कई बार ।कांग्रेस और सभी विपक्षी दल भले ही भाजपा को मात दे दें चुनाव में , संघ को मात देना उनके बस की बात नहीं है फ़िलहाल। उसके लिए किसी मालवीय जैसे दृढ़ विचारवान विभूति को ही अवतरित होना पड़ेगा। विपक्ष कहता है मोहनदास करमचंद गांधी के रामराज्य को भाजपा ने अगवा कर लिया है पर यह नया रामराज्य है जिसने न्याय है विकास है और नीतियां है । नया गांधी आयेगा ऐसा कहकर जनता को गुमराह करने वाली कांग्रेस की स्थिति गिरती जा रही , भाजपा को ज़मीन तैयार रखनी होगी । और वो ज़मीन है वैज्ञानिक सोच की ज़मीन। भविष्य के सामने भूत कब टिक पाया है । याद करें यूरोपियन जब भारत में आए थे हमारे पास स्वर्णिम भूत था और उनके पास भविष्य का विज्ञान था । तब जो हुआ था वही अब होगा । रात भर का है मेहमां अंधेरा किसके रोके रुका है सवेरा ! संघ सदा था और रहेगा । संघे शक्ति कलयुगे !