समाजवादी पार्टी का कौम कनेक्शन ..!

अतीक अहमद का बेटा असद अहमद को झांसी में एसटीएफ एनकाउंटर में मार गिराती है और फिर सबसे ज्यादा जिस नेता को होता है वो है समाजवादी पार्टी के वर्तमान अध्यक्ष अखिलेश यादव क्युकी राजनीतिक फायदे के लिए मुसलमानों का सबसे अधिक किसी ने उपयोग किया तो वह है समाजवादी पार्टी । अब चाहे आजमा खा, बर्क  रहे हो या अतीक अहमद। वर्तमान हालातों में हिंदुओं मुसलमानों के बीच जो कटुता का इतिहास है वो समाजवादी नेताओं द्वारा ही फैलाया गया है और हिंदू  उसी में मगन हैं। अब तो यह मतला है कि मुगलकाल जो साम्प्रदायिक सद्भाव के काल के विख्यात है जिसमें अकबर को महान कहने का ज़िक्र हम सब की जुबां पर रहता है जिस काल में तुलसी,मीरा,सूर जैसे अनेक भक्त मनीषी कवि हुए उनसे नफ़रत का कारण सिर्फ यही जातिवादी राजनीतिक पार्टियां है  और भाजपा पर इल्जाम लगाया जाता है । राजनीति  की निम्न स्तरीय सोच है वरना पाठ्यक्रम से उन्हें अलहदा नहीं किया जाता आश्चर्य नहीं होता क्योंकि वे राम मंदिर  के हत्यारे का प्रशस्तिगान कर सकते हैं । संस्कृति के चार अध्याय में रामधारी सिंह दिनकर साफ तौर पर लिखते हैं कि हिंदुओं और मुसलमानों के बीच कटुता का दौर पठानों के समय तक रहा। मुगलों के आगमन के बाद परिस्थिति में सुधार नहीं आया और मुगल सम्राट अकबर ने इसका जमकर फायदा उठाया । जिस उदारता का परिचय हिंदू महाराजाओं ने  दिया उसमें नफरत का  बीज बाबर के ही ह्रदय में मौजूद थे बाबर ने हुमायूं के लिए एक वसीयतनामा लिखा था जिसमें हुमायूं को उसने वह उपदेश दिए थे- “हिंदुस्तान में अनेक धर्मों के लोग रहते हैं किंतु काफिरों को तरजीह दो । मौला को धन्यवाद दो कि उन्होंने तुम्हें इस देश का बादशाह बनाया है तुम  तअस्सुब  से काम ना लेना निष्पक्ष होकर न्याय न करना और इस्लाम  की भावना का ख्याल रखना।साहित्य और कला की सेवा में हिंदू उदारवादियों ने सांप्रदायिकता नहीं आने दी मनोहर मिश्र, जगतराम ,बीरबल हुलराय टोडरमल, भगवानदास ,मानसिंह ,नरहरी और गंग को अकबर ने काफी सम्मान दिया था हिंदू चित्रकारों में भी मुकुंद ,महेश ,जगन हरिवंश और राम का मुगलों के यहां बड़ा सम्मान था जैसे पठान युग में खुसरो, कबीर जायसी आदि मुस्लिम कवियों ने हिंदी साहित्य की रचना की थी वैसे ही मुगल काल में रसखान आलम जमाल, कादेर मुबारक राही और ताज ने हिंदी की बहुत अच्छी सेवा की दारा शिकोह तो हिंदी संस्कृत और हिंदुत्व के पक्षपाती होने के कारण मुसलमानों में काफी बदनाम थे कहते हैं उनकी अंगूठी पर नागरी अक्षरों में ‘प्रभु’ शब्द अंकित रहता था शेरशाह के सिक्कों पर भी नागरिक फारसी अक्षरों में उनका  नाम खुदा था उसके कई सिक्के ऊं और स्वस्तिक वाले भी पाए जाते हैं शेरशाह का न्याय भी अटल था एक साधारण स्त्री की फरियाद पर उसने अपने बेटे को कड़ा दंड दिया था। कवि सुंदरदास को शाहजहां ने महाकविराज की उपाधि दी थी। महाकवि सूरदास में भी मुसलमानों के प्रति निंदा आक्रोश के भाव नहीं है विद्यापति और सूरदास ने अपने लिए जो विषय चुना था वह ऐसा था भी नहीं जिसमें समकालीन सामाजिक व्यवस्था की झांकी
 झांकी हो। हां मुस्लिम काल में लोग समाहार के  समर्थक कवि गोस्वामी तुलसीदास हुए जो अपने समय से लेकर आज तक जनता के हृदय पर एकछत्र राज्य करते आ रहे हैं तुलसीदास केवल कवि ही नहीं है उनका स्थान हिंदू संस्कृति के रक्षक कर्ता के रुप है नैतिक विषयों पर धर्म शास्त्रों को कहां क्या कहना है यह जानने की चिंता उत्तर भारत में अधिक नहीं है वहां की जनता प्रत्येक विषय पर केवल तुलसीदास की राम को जानना चाहती है। खास बात ये तुलसीदास के साहित्य में इस बात का कहीं उल्लेख नहीं है मुगलों से जनता पीड़ित थी। तुलसी का काल अकबर और जहांगीर के राज्यकाल में पड़ता है जब हिंदू मुस्लिम एक समस्या का ताप काफी दूर तक सीमित हो चुका था जब लोग यह भूल चुके थे कि मुसलमान विदेशी हैं और जब हिंदू और मुसलमान पड़ोसी बनकर शांति के भाव से जीने लगे थे।
तुलसीदास का सम्मान दोनों ही धर्मों के लोग करते थे , यह बात साहित्य के इतिहास में अनेक बार कहीं गई है जब तुलसीदास ने रामचरितमानस लिखा , कुछ दोहे रचकर महाकाव्य की रचना की। इस दौर में ताज तो अत्यंत भावुक कवयित्री हुईं ।वे इतनी भावुक थी कि कृष्ण प्रेम मीरा की तरह दीवानी हुईं हैं कि यह भी बोल जाती हैं कि मैं इस्लाम छोड़ हिंदू हो जाने तैयार हूं। जो हिंदू नारियां जबरन मुगलों के घर ब्याही गई वे राज महल में हिंदू विधि से ही रहती थी ऐसा कहा जाता है रानी जोधाबाई के आंगन में तुलसी के पौधे बराबर लहराते थे उनके घर में होम और यज्ञ भी बराबर होते थे। अकबर और जोधा बाई के महलों के बीच के रास्ते पर हरम की और कोई रानी नहीं चल सकती थी ।लेकिन यह सम्मान भगवान दास की बेटी को नहीं मिला जिसका व्याह जहांगीर से हुआ था क्यों  उसके पूरे हृदय पर एकमात्र नूरजहां का राज्य था। भगवान दास की बेटी पर उसने सितम नहीं किया बराबर सम्मान दिया था।
रहा सवाल युद्ध का तो तमाम राजे महाराजों की तरह मुसलमान शासक भी अपने राज्य की सीमाओं को बढ़ाने में लगे रहे।वरना मुस्लिम फौजों की कमान हिंदी और हिंदू फौज की कमान मुस्लिम के साथ में कैसे होती?  महाराणा प्रताप और अकबर के बीच हुए युद्ध में महाराणा का सेनापति हकीम खां सूरी था तथा अकबर का सेनापति मानसिंह था। शिवाजी की सेना में हज़ारों मुसलमान थे पठानों को सेना में बड़े अधिकारी पद पर रखा था जबकि औरंगजेब की सेना का सेनापति महाराजा जय सिंह था।सबसे बड़ी बात अकबर महान और आलमगीर औरंगजेब एक बड़े देश के लिए लड़ रहे थे तो राजा महाराजा सिर्फ अपनी क्षेत्र विशेष की सुरक्षा के लिए लड़े। एक बड़े देश के लिए सिर्फ सम्राटअशोक ने कोशिश की थी। इसी तरह मुसलमान शासकों के हरम की बात अक्सर होती है इसमें अनेक बेगमें होती थी तो वहीं हाल तो हिंदू राजाओं का रहा। रानी और पटरानियों की ये गाथाएं इतिहास में मौजूद हैं।एक दस्तावेज़ के मुताबिक अकबर की 9 बेगमें थी जबकि औरंगजेब की चार थीं वहीं महाराणा की 11, पृथ्वीराज चौहान की 14 तथा हवाई राजा जयसिंह की 1400बीबियां थीं।आशय यह कि राजा हो या शहंशाह हरम में अधिक बीबियां रखना गौरव की बात थी।बीबियों के अलावा हज़ारों दासियां भी महलों और हरम में होती थीं। कहा जाता है कि मुसलमान शासक अपने भाईयों से लड़ते थे बड़े क्रूर होते थे हत्यारे थे।हिंदुओं का इतिहास भी अपने भाई और परिवार पर की गई क्रूरताओं से भरा हुआ है। औरंगजेब के बारे में कहा जाता है कि उसने अपने बाप शाहजहां को कैद में डाला था तथा दो भाईयों को मारकर गद्दीनशीं हुआ था । यह सब उस वक्त सत्ता में बने रहने की जिजीविषा को दर्शाता है कौन कहता है की इतिहास का मुस्लिम में भेद भाव नहीं करता। यहां एक बात और याद रखनी है कि उनका रक्त सम्बन्ध आर्य शक और हूण से माना जाता है।भारत की मूल जाति तो जनजाति थी जो आक्रमणकारियों से लोहा लिए बगैर जंगलों और पहाड़ों पर जाकर शरण ले ली। आज लोकतांत्रिक भारत में भी जो परिवारवाद  नज़र आता है उसमें भी सत्ता में बने रहने की चाहत प्रमुख  लेकिन उसका रास्ता आमचुनाव के ज़रिए खुलता है। सत्ता प्राप्ति हेतु आज भी उसी तरह के सम्मोहन में लोग उलझे हुए हैं। इसलिए कहा जाता है कि राजनीति में साम दाम दण्ड भेद की नीति मायने रखती है। बहरहाल, आज भाजपा के कार्यकाल को मुस्लिम विरोधी बताया जाता है किंतु यह नहीं बताया जाता कि  कितने मदरसो को अब भी  आर्थिक सहायता दी जाती है ।संघ की पाठशाला से निकला ज्ञान सिर्फ आतंक विरोधी है कम से कम इस बात को ही यदि समाजवादी समझ लें कि लगभग 700साल शासन करने के बाद उन्होंने इस्लाम कबूलने या अल्लाहों अकबर कहने बाध्य नहीं किया जा सका तो अतीक प्रेम से क्या होगा  जैसा नज़ारा आज देखा जा रहा है जबरिया मोदी मुर्दाबाद कहलवाकर आप किसी के धर्म को क्षति नहीं पहुंचा सकते हैं।सोचिए जिस नज़र से मुस्लिम ही  मुसलमानों से नफ़रत कर रहे हैं वैसा यदि हिंदू शासकों ने किया होता तो क्या कोई भारत में मुस्लिम बच पाता।वे जानते थे कि उन्हें शासन करना है और वह जोर जबरदस्ती से नहीं किया जाता। मुगलकाल में लूटपाट  हुई क्योंकि वे हिंदुस्तान को इस्लामिक कंट्री बनाने में लगे रहे।

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