
लखनऊ। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कई बार कह चुके हैं कि अतिक्रमण हटाने के नाम पर अधिकारी झोपड़ी-पट्टी में रहने वालों और रेहड़ी-पटरी दुकानदारों को तंग नहीं करेंगे, लेकिन अधिकारी हैं कि मानते ही नहीं हैं। इसके उलट यह अधिकारी अतिक्रमण हटाने के नाम पर सबसे अधिक आसान रास्ता चुनते हुए उन लोगों के दरवाजे पहुंच जाते हैं जो इस हैसियत में नहीं होते हैं कि सरकारी अमले की कार्रवाई का विरोध कर सकें। अधिकारी अतिक्रमण हटाने के नाम पर दोहरा रवैया अपनाते हैं, जबकि यूपी के सभी शहरों में वीआईपी रोड के किनारे गैर कानूनी तरीके से बने बड़े-बड़े आलीशान महलनुमा कोठियां सरकारी अमले को मुंह चिढ़ाते रहते हैं, परंतु कोई अधिकारी इन पर हाथ डालने की जुर्रत नहीं करता है। जबकि गरीबों पर सरकारी ‘कोड़ा’ बेहद बेरहमी से चलता है। कोई इसके विरोध की हिम्मत दिखा भी देता है तो उसका हश्र वही होता है जो कानपुर की एक झोपड़ी में रहने वाली मां-बेटी के साथ हुआ। जहां सरकारी अधिकारी/कर्मचारी अतिक्रमण हटाने के नाम पर ‘यमराज’ बन गए थे।
वहीं सपा ने आरोप लगाया है कि दलितों, पिछड़ों ही नहीं, ब्राह्मणों का भी लगातार उत्पीड़न हो रहा है। कानपुर देहात की घटना का जिक्र करते हुए पार्टी के ब्राह्मण नेताओं को निर्देश दिया है कि जहां भी उत्पीड़न हो वे मौके पर जाएं और जांच कर रिपोर्ट दें। जिलों में ब्राह्मण नेताओं को एकजुट कर सरकार की तानाशाही के खिलाफ आंदोलन शुरू करने के भी निर्देश दिए गए हैं। सपा का कहना है कि कानपुर देहात के जिला प्रशासन ने अपने कृत्य को छिपाने के लिए सुबह से विधायक अमिताभ बाजपेयी के घर के बाहर पुलिस का पहरा लगा दिया। विधानसभा में पार्टी के मुख्य सचेतक डॉ मनोज पांडेय अगुवाई वाले प्रतिनिधिमंडल को घटनास्थल पर जाने से पुलिस ने रोक दिया और अभद्रता की गई। उन्होंने एसडीएम और लेखपाल के साथ डीएम के खिलाफ भी हत्या का मुकदमा दर्ज कर मृतकों के परिजनों को उचित मुआवजा और सरकारी नौकरी देने की मांग की।