जातिगत व्यवस्था से बाहर निकलने को छटपटाता भारत…!

पंकज कुमार मिश्रा, मिडिया विश्लेषक एवं पत्रकार जौनपुर यूपी
टुडे के एक्सिस माई-इंडिया सर्वे के अनुसार मध्यप्रदेश में बीजेपी को 48.55 फीसदी तथा कांग्रेस को 40.40 फीसदी वोट मिले हैं।छत्तीसगढ़ में बीजेपी को 46.27 फीसदी तथा कांग्रेस को 42. 23 फीसदी वोट मिले हैं। राजस्थान में बीजेपी को 41.7 फीसदी तथा कांग्रेस को 39.5 फीसदी वोट मिले हैं।इसप्रकार तीनों राज्यों में बीजेपी को कांग्रेस की तुलना में क्रमशः 8.15 फीसदी, 4.04 फीसदी तथा 2.2 फीसदी वोट अधिक मिले हैं। मध्यप्रदेश में जातिवार वोटों का अंतर इस प्रकार रहा है : ओबीसी वोट – बीजेपी 57%, कांग्रेस 32%; गैर ब्राह्मण सामान्य श्रेणी वोट – बीजेपी 59%, कांग्रेस 31%; ब्राह्मण वोट – बीजेपी 60%, कांग्रेस 29%; दलित वोट –  बीजेपी 42%, कांग्रेस 44% तथा आदिवासी वोट – बीजेपी 44%, कांग्रेस 45%. कमोबेश यही स्थिति अन्य दोनों हिंदी प्रदेशों की भी रही है।मध्यप्रदेश के संदर्भ में उपरोक्त आंकड़ों को यदि सत्य के करीब माना जाए तो कांग्रेस ओबीसी, सामान्य और ब्राह्मण वोटों के मामले में बीजेपी से बहुत पिछड़ गयी है। राहुल गांधी ने अपने चुनाव प्रचार में सबसे अधिक जोर ओबीसी मतदाताओं को प्रभावित करने में लगाया था और सभी जगह जहां उन्होंने रैलियां और जनसभाएं कीं, वहां जातीय जनगणना के मुद्दे को जोरशोर से उठाया। लेकिन उपरोक्त मत प्रतिशत को देखने से यह साफ हो जाता है कि ओबीसी वोटरों में राहुल गांधी की अपील का कोई विशेष असर नहीं हुआ। कांग्रेस को बीजेपी की तुलना में ओबीसी वोटरों के लगभग आधे वोट ही मिल पाए हैं। ब्राह्मण मतदाताओं का बहुमत तो परंपरागत रूप से बीजेपी के साथ रहा ही, लेकिन गैर ब्राह्मण सामान्य वोटरों में भी दुगना अंतर परिलक्षित हो रहा है। मध्यप्रदेश में दलित और आदिवासी वोटरों का झुकाव कांग्रेस की ओर रहा है, लेकिन अंतर बहुत मामूली है। इस विश्लेषण से यह साफ है कि मध्यप्रदेश में दोनों प्रतिद्वंद्वी दलों में वोटों का 8.15 फीसदी का अंतर बहुत ज्यादा है और 2024 के लोकसभा चुनाव में इस अंतर को पाटना कांग्रेस के लिये बहुत कठिन होगा। मध्यप्रदेश की 29 लोकसभा सीटों में से कांग्रेस की स्थिति सिर्फ छिंदवाड़ा संसदीय क्षेत्र में ही बीजेपी से बेहतर रही है जहां कांग्रेस ने सभी सात विधानसभा क्षेत्रों में विजय हांसिल की है। इससे तो यही लगता है कि मध्यप्रदेश में 2024 के आमचुनाव का परिणाम 2019 जैसा ही रहेगा। जहां तक छत्तीसगढ़ और राजस्थान का सवाल है वहां दोनों दलों में वोट प्रतिशत का अंतर क्रमशः 4.04% तथा 2.2% रहा है। इन दोनों प्रदेशों में कांग्रेस कुछ बेहतर प्रदर्शन कर सकती है बशर्ते वह कुछ आकर्षक मुद्दों के साथ चुनाव मैदान में उतरे और बीजेपी के हिंदुत्व तथा राष्ट्रवाद के मुद्धों का तोड़ ढूंढ सके। बीजेपी हमेशा की तरह 2024 के आमचुनाव में भी अपना आजमाया हुआ सांप्रदायिकता का कार्ड अवश्य खेलेगी। बीजेपी के पक्ष में अयोध्या में 22 जनवरी को राम मंदिर का उदघाटन तथा भगवान श्रीराम की मूर्ति की प्राणप्रतिष्ठा का भव्य समारोह आयोजित होना है। बीजेपी के दूसरी और तीसरी पंक्ति के नेता ही नहीं स्वयं प्रधानमंत्री सांप्रदायिकता का कार्ड खेलने में कोई संकोच नहीं करते हैं। यह हमने कर्नाटक के बाद राजस्थान में भी देखा है जहां प्रधानमंत्री ने उदयपुर में एक हिन्दू की हत्या का मुद्दा बार-बार उठाने से परहेज नहीं किया। कुल मिलाकर कांग्रेस यदि जातिवादी आरक्षण ख़त्म करने, सवर्ण आयोग जैसा कुछ नया, बीजेपी के हिंदुत्व, उग्र राष्ट्रवाद, साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण और लाभार्थी योजनाओं का कोई तोड़ ला सके तो वह इन तीनों हिंदी प्रदेशों की 65 में से इकाई की संख्या में कुछ सीटें निकाल सकती है। अन्यथा परिणाम 2019 का दोहराव ही होगा।
वैसे भारत अब जातिवादी व्यवस्था से बाहर निकलने का प्रयास कर रहा। आरक्षण का लाभ केवल धनाढ्य दलित और ओबीसी परिवार उठा रहें बाकी तो अब भी पांच किलो राशन के लाईन में लगे दिखाई दें रहें। इनके शिक्षा और विकास की चिंता किसी को नहीं। मध्यप्रदेश में नई सरकार के गठन के साथ ही मुख्यमंत्री मोहन यादव ने साम्प्रदायिक कार्ड चल दिया है। उन्होंने प्रशासन से एक साथ तीन कार्रवाइयां करवाई हैं, धार्मिक स्थलों (मस्जिदों) से लाउडस्पीकर हटवाना,  सार्वजनिक स्थानों से मांस और अंडे की दुकानें हटवाना तथा 3. बीजेपी के एक कार्यकर्ता पर तलवार से हमला करने वाले मुस्लिम शख्स का घर बुलडोजर से ढहाना। ये तीनों कार्य हिन्दू साम्प्रदायिक मानसिकता को खाद-पानी देने वाले हैं। भविष्य में उत्तरप्रदेश की तरह मध्यप्रदेश में भी बुलडोजर संहिता लागू होने की पूरी संभावना है। मध्यप्रदेश अपेक्षाकृत एक शांत प्रदेश है। अब यह शांति कब तक रहती है यह आने वाला समय ही बताएगा। तीन राज्यों के निर्णयों को ऐतिहासिक बताना अपने प्रचार तंत्र के माध्यम से जनता पर एक विचार थोपने जैसा है ठीक वैसे ही जैसे इन राज्यों पर इन तीन नामों का फैसला थोपा गया। असलियत तो ये है की यह भाजपा के क्षेत्रीय क्षत्रपों का इन फैसलों से सफाया किया गया है। जो भी व्यक्ति  मोदी के लिए चुनौती बन जाता है, उसको निपटा दिया जाता है। लोकतंत्र की हत्या भाजपा में भी हो रही है क्योंकि चुने हुए विधायक नहीं बल्कि  लोगों का फ़ैसला ही थोपा जाएगा। यह तीनों मुख्यमंत्री रबर स्टांप की तरह जनता और वोटर के इशारे पर चलेंगे और जब कभी वोटरों का मन होगा इन्हें हटा कर किसी दूसरे को ले आयेंगे जैसे इन्होंने उत्तराखंड, गुजरात, असम जैसे राज्यों में अब तक किया।विपक्ष के अंदर लोकतंत्र पूरी तरह से ख़त्म हो चुका है और यहां पार्टी के नाम पर परिवारों की तानाशाही चल रही है, हालत बेहद दयनीय है जिसे अनुशासन के नाम पर दबाया जा रहा है। एक तरह से डराना धमकाना और ब्लैकमेल करना भी इसका कारण है।ख़ैर यह उनका का आंतरिक मामला है,  अब शिवराज, वसुंधरा, रमन के अलावा इनके प्रदेशों के अन्य दिग्गज भी इस कांग्रेस मिटाओ अभियान का हिस्सा केंद्र में होंगे।राजस्थान की सांगानेर विधानसभा सीट से चुनकर आए भजनलाल शर्मा को पहली बार ही विधायक बनने पर मुख्यमंत्री बनाकर पार्टी ने चौंका दिया है। शुरुआती दिनों में वे आरएसएस की छात्र शाखा अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से भी जुड़े रहे हैं ,उन्हें पार्टी में किसी भी गतिविधि के लिए सबसे आगे रहने वाले व्यक्ति के रूप में जाना जाता है। प्रेमचंद बैरवां और  महारानी गायत्री देवी की पोती राजकुमारी दिया को उप मुख्यमंत्री बनाने की बात करके राजस्थान में सत्ता के तीन केन्द्र बना दिए गये हैं। इसी तरह छत्तीसगढ़ में एक आदिवासी नेता को भाजपा ने  मुख्यमंत्री बनकर अपनी पिछड़े वर्ग की राजनीति पर निशाना साधने की  दिखावटी रणनीति को इस दौर में भी जारी रखा है।  छत्तीसगढ़ में सरकार की कमान एक आदिवासी नेता विष्णु देव साय के हाथ सौंपने का ऐलान करने के साथ ही दो  डिप्टी सीएम सामान्य और ओबीसी वर्ग से बनाकर ये भी साफ कर दिया  कि पार्टी के लिए ये महज पावर बैलेंस का फार्मूला है या 2024 चुनाव से पहले वोटो की गणित साधने की कलाबाजी। इसी तरह मध्य प्रदेश में मोहन यादव का नाम भले ही  केन्द्र की राजनीति के लिए अपरिचित हो लेकिन वह उज्जैन के एक बहुत लोकप्रिय नेता है वे भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से निकले हैं और उमा भारती के बहुत ही करीबी माने जाते रहे हैं। इन्हें उमा भारती ने उज्जैन विकास प्राधिकरण का अध्यक्ष भी बनाया था। हिन्दुत्व के कट्टर समर्थक और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की जमीनी राजनीति  से निकलकर आए हुए। मोहन यादव को मुख्यमंत्री बनाकर भाजपा ने यह तो स्पष्ट कर ही दिया है कि यहां फैसले अभी भी अन एक्सपेक्टेड होते हैं और केंद्रीय नेतृत्व किसी भी तरह के प्रेशर में काम नहीं करता है। मोहन यादव के बड़बोलेपन के लिए उनकी   बहुत बार आलोचना हुई है और कई मामलों में उनका नाम विवादों में भी रहा है फिर भी अगर पार्टी ने  उनके नाम को आगे बढ़ाया है तो यही समझा जा सकता है कि निशाना बाकी प्रदेशों में यादव और ओबीसी वोट साधने को लेकर है। और इतना भी समझ आ चुका है कि आर एस एस की मजबूत पकड़ अभी पार्टी पर बनी हुई है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Breaking News
बिहार में AIMIM ने उतारे 25 उम्मीदवार, ओवैसी के दांव से बढ़ेगी महागठबंधन की टेंशन? | पाकिस्तान-अफगानिस्तान सीमा पर थमा खून-खराबा, कतर-तुर्की की मध्यस्थता से युद्धविराम | 26 लाख से अधिक दीयों से जगमग हुई रामनगरी, दुल्हन की तरह सजी अयोध्या; CM योगी ने खुद लिया दो वर्ल्‍ड रिकॉर्ड का सर्टिफिकेट | 'कांग्रेस ने कोर्ट में कहा था श्रीराम काल्पनिक हैं', अयोध्या में दीपोत्सव के अवसर पर CM योगी की दो टूक; बोले- बाबर की कब्र पर सजदा करते हैं ये लोग
Advertisement ×