शोभा यात्राओं पर हमले, कांवड़ियों पर हमले, पूजा में विघ्न, मंदिरों में तोड़फोड़…हिंदू आस्था को क्यों बार-बार पहुँचायी जाती है चोट?

भारत में बहुसंख्यक आबादी हिंदुओं की है लेकिन उसके बावजूद हिंदू अपने पर्व और त्योहार शांतिपूर्वक नहीं मना पाते। आप देशभर के विभिन्न स्थलों से सामने आने वाली घटनाओं को देखेंगे तो पाएंगे कि राम नवमी पर शोभा यात्रा निकले तो उस पर हमला होता है, हनुमान जयंती पर शोभा यात्रा निकले तो उस पर हमला होता है, कांवड़ यात्रा के दौरान कांवड़ियों पर हमला होता है, गणेश चतुर्थी के दौरान पंडालों पर हमला होता है या विसर्जन के दौरान विघ्न पैदा किया जाता है। दुर्गा पूजा के दौरान पंडालों पर हमला होता है या मूर्ति विसर्जन यात्रा पर हमला होता है। होली-दीपावली मनाते हिंदुओं को भी अक्सर परेशान किया जाता है और कई बार पटाखे जलाते या रंग-गुलाल खेलते हिंदुओं के साथ छोटा-मोटा झगड़ा शुरू कर उसे बड़े बवाल का रूप दे दिया जाता है। इस साल तो कुछ ऐसी घटनाएं भी सामने आईं कि परशुराम जयंती और नाग पंचमी मनाते समय भी हिंदुओं पर हमले किये गये। मंदिरों में मूर्तियों की चोरी या मूर्तियों को खंडित करने की घटनाएं तो अब आम हो चुकी हैं। सवाल उठता है कि जब सभी को अपने अपने धर्म और आस्था के अनुसार पूजन या प्रार्थना करने की आजादी और अधिकार है तो हिंदुओं के त्योहारों में ही खलल क्यों डाला जाता है? यह कौन-सी सोच है जो शंख ध्वनि सुनते ही भड़क उठती है? यह कौन-सी विचारधारा है जिसका खून ओम शब्द का जाप सुनते ही खौलने लगता है? यह कौन-सा मजहब है जो अपने अनुयायियों को यह पढ़ाता है कि वही सही है और बाकी सब गलत हैं?

उत्तर प्रदेश के बहराइच में दुर्गा मूर्ति विसर्जन के दौरान शोभा यात्रा पर जिस प्रकार का हमला हुआ और जिस निर्ममता से राम गोपाल मिश्रा को मारा गया उससे सवाल तो खड़ा होगा ही कि क्या इसे ही भाईचारा कहते हैं? जो लोग सवाल उठाते हैं कि शोभा यात्रा मुस्लिम इलाकों से क्यों निकाली जा रही थी? उन्हें यह भी बताना चाहिए कि धर्मनिरपेक्ष भारत में कौन-से इलाके हिंदू के हैं और कौन-से मुस्लिम के और कौन-से अन्य धर्मों के हैं। जो लोग मुस्लिम मोहल्लों या मुस्लिम इलाकों जैसे शब्द गढ़ रहे हैं वह दरअसल धर्म के आधार पर भारत और पाकिस्तान के रूप में विभाजित हो चुके हिंदुस्तान में फिर से विभाजन चाहते हैं इसलिए उनसे सावधान रहने की जरूरत है।

इस मुद्दे पर उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता और भारत के पीआईएल मैन के रूप में विख्यात अश्विनी उपाध्याय ने भी सवाल उठाते हुए कहा है कि यह कौन लोग हैं जिनकी भावनाएं राम धुन, कृष्ण भजन या दुर्गा आरती सुनते ही आहत हो जाती हैं। उन्होंने कहा है कि राम गोपाल मिश्रा की हत्या का मूल कारण यह है कि कानून कमजोर है। उन्होंने कहा कि इससे पहले ऐसे ही हत्याकांडों के दोषियों को यदि कड़ा दंड समय पर मिला होता तो राम गोपाल मिश्रा को गोली मारने की किसी में हिम्मत नहीं होती। उन्होंने कहा है कि चंदन गुप्ता की तरह राम गोपाल मिश्रा को भी लोग भूल जायेंगे जिनकी 2018 में तिरंगा यात्रा निकालने पर हत्या हुई थी। उन्होंने कहा कि चंदन गुप्ता के हत्यारों को ना तो आज तक फांसी हुई, न उनकी 100% संपत्ति जब्त हुई और न तो नागरिकता खत्म हुई। उन्होंने कहा कि नार्को पॉलीग्राफ ब्रेन मैपिंग कानून होता तो 6 महीने में सजा हो चुकी होती और फिर किसी की हिम्मत ऐसा कृत्य करने की नहीं पड़ती।

बहरहाल, देश तरक्की की राह पर तेजी से आगे बढ़े इसके लिए जरूरी है कि समाज में आपसी सौहार्द्र बना रहे लेकिन जो लोग भारत की प्रगति देख नहीं सकते वह तमाम तरह की बाधाएं खड़ी करते रहते हैं। सबसे बड़ी बाधा साम्प्रदायिक सौहार्द्र को बिगाड़ कर खड़ी की जाती है इसलिए सरकार को चाहिए कि वह उपद्रवियों के खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई करे।

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