भारत रत्न के दावेदारों नें विपक्ष की नीद उड़ाई 

पंकज कुमार मिश्रा, राजनीतिक विश्लेषक एवं पत्रकार जौनपुर यूपी
बिहार के समाजवादी चिंतक, जननायक  कर्पूरी ठाकुर और आडवाणी के बाद, मरणोपरांत चौधरी चरण सिंह, एमएस स्वामीनाथन और पीवी नरसिम्हाराव को भी भारत रत्न देने की घोषणा के साथ राजनीतिक सरगर्मी बढ़ गई। अब विपक्ष का ऊंट भी पहाड़ के नीचे आ ही गया है । ममता और जयंत के विरोधी शुरु नें कांग्रेस और सपा को चिंता में डाल दिया है। विश्वगुरु के अवतार को अपने गुरु भाजपा के कर्मठ वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवानी को भारत रत्न देने की घोषणा करते ही एक मुद्दा बेहद शांत हो गया जिसमें विपक्ष पूछता था एल के आडवाणी को किनारे क्यों किया गया अब विपक्ष को मुँह बंद करने के लिए बाध्य होना ही पड़ा। पिछले दिनों राममंदिर उद्घाटन के दौरान राममंदिर हेतु सर्वाधिक संघर्ष करने वाले आडवानी की  घोर उपेक्षा हुई कहकर इसी बहाने मंदिर का विरोध करने वाले अब खुद के रणनीतिकारों से बुरी तरह नाराज़ है। इसलिए हिंदुत्व की पैरवी कर भूल सुधारने  का एक सुखद अवसर उन्हें मिलेगा । साथ ही साथ हिन्दू समाज में  मोदी के पक्ष में बन रहे माहौल में भी सुधार की गुंजाइश बनती हुई प्रतीत हो रहीं । विदित हो इससे पूर्व भाजपा कोटे से पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई और भाजपा संस्थापक नाना देखमुख भारत रत्न से सम्मानित हो चुके हैं। हाल ही में यह सम्मान बिहार के हज्जामों को चुनावों में साधने वहां के समाजवादी नेता कर्पूरी ठाकुर को मरणोपरांत देने की घोषणा हुई है जिसके बाद नितीश चाचा पलटी मार गए ।
          भारतीय जनता पार्टी के जिन नामों को पूरी पार्टी को खड़ा करने और उसे राष्ट्रीय स्तर तक लाने का श्रेय जाता है उसमें सबसे आगे की पंक्ति का नाम है लालकृष्ण आडवाणी।लालकृष्ण आडवाणी कभी पार्टी के कर्णधार कहे गए, कभी लौह पुरुष और कभी पार्टी का असली चेहरा। कुल मिलाकर पार्टी के आजतक के इतिहास का अहम अध्याय हैं लालकृष्ण आडवाणी। लेकिन आडवानी का नाम इसी 1990 में राम मन्दिर आन्दोलन के दौरान सबसे ज्यादा चर्चित हुआ । उन्होंने सोमनाथ से अयोध्या के लिए राम रथ यात्रा निकाली। हालांकि आडवाणी को बीच में पटना में तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू यादव ने ही गिरफ़्तार करवा लिया पर इस यात्रा के बाद आडवाणी का राजनीतिक कद और बड़ा हो गया। तब तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव नें भी राममंदिर आंदोलनकारियों के समर्थन में दिखे थे और आज उसी का फल उन्हें भारत रत्न के रूप में मिल रहा। 1990 की रथयात्रा ने लालकृष्ण आडवाणी की लोकप्रियता को चरम पर पहुँचा दिया था। वर्ष 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद जिन लोगों को अभियुक्त बनाया गया है उनमें आडवाणी का नाम भी शामिल था। परिस्थितियां बदलती गई देश में धर्मान्धता राजनीति का हिस्सा बनी। गुजरात में 2002में नरसंहार ने इस आग में घी का काम किया। ध्रुवीकरण की मज़बूत नींव पर  2014में भाजपा की सरकार बनी। साम्प्रदायिक ताकतें मुखर हुईं। सामाजिक ताना-बाना छिन्न-भिन्न हुआ।इसका फायदा बराबर भाजपा को मिला।आज के दौर में सम जो कुछ देख रहे हैं उसकी बुनियाद में आडवानी जी ही हैं। मुलायम सिंह का पद्म श्री शायद शर्मिंदा हो पर देश के उपप्रधानमंत्री और  कई बार भाजपा अध्यक्ष रहे लालकृष्ण आडवानी के लिए भारत रत्न उनकी भाजपा की कार्यप्रणाली का श्रेष्ठतम उपहार है।इससे इंकार नहीं किया जा सकता।प्रधानमंत्री जी को बधाई जिन्होंने विज्ञान राजनीति और धर्म तीनों को भारत रत्न के लिए चुना। हरित क्रांति के जनक स्वामीनाथन और किसान राजनीति के पुरोधा चौधरी चरण सिंह को यह सम्मान बहुत पहले मिल जाना चाहिए था जबकि नरसिम्हा राव और लाल कृष्ण अडावाणी अपने ऊंचे राजनीतिक कद के लिए भारत रत्न के हक़दार है।

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