ब्लड बैंक को लेकर सरकार को पिछले कई वक्त से ओवर चार्जिंग की शिकायतें मिल रही है. भारत में अगर किसी मरीज को ब्लड ट्रांसफ्यूजन की जरूरत होती है, तो उसे बदले में किसी दाता यानी donor का इंतजाम करना होता है. जो कि ब्लड के बदले में उतने ही पैकेट ब्लड दे सके. कई बार अस्पताल और ब्लड बैंक इस जरूरत का गलत फायदा उठाते हैं और मनमाने दामों में ब्लड सप्लाई करते हैं. ऐसे में इस पर लगाम लगाने के लिए एक बार फिर से गाइडलाइंस रिवाइज की गई है. जिसमें सख्त निर्देश दिए गए है.
इस पर लगाम लगाने के लिए भारत के ड्रग कंट्रोलर ने सभी राज्यों को चिट्ठी लिखकर यह साफ किया है, कि ब्लड सेल के लिए नहीं होता. इसके लिए केवल प्रोसेसिंग चार्ज लिया जा सकता है. प्रोसेसिंग चार्ज से मतलब है, कि ब्लड को निकालना उसके रखरखाव स्टोरेज और मैनेजमेंट पर होने वाला खर्च, अलग-अलग ब्लड कंपोनेंट के लिए यह चार्ज अलग-अलग होता है.
सरकारी अस्पतालों में 100 से ₹1100 के बीच है. तो वहीं, प्राइवेट अस्पतालों में 500 से 15सौ रुपए के बीच में आमतौर पर यह चार्ज लिया जाता है, लेकिन कई बार मजबूरी का फायदा उठाते हुए या फिर रेयर ब्लड ग्रुप के मामले में ज्यादा चार्ज भी वसूले जाते हैं. इस पर लगाम लगाने के लिए ही एक बार फिर से गाइडलाइंस रिवाइज की गई है. जिसमें यह साफ किया गया है कि खून की बिक्री नहीं की जा सकती केवल प्रोसेसिंग चार्ज लिया जा सकता है.
यह फैसला ब्लड के बदले में मनमाने दाम वसूले जाने की शिकायतों के बाद लिया गया है. इस बारे में सीडीएससीओ की तरफ से सभी राज्यों को एडवाइजरी जारी कर दी गई है.