बिहार में एनडीए की बम्पर जीत हो चुकी है। हम सबने जीत का जश्न भी मना लिया। यह जीत उन्हें नहीं पच रही जिन्हें जातिय समीकरण पर यक़ीन था। आज से मात्र छह महीने पहले की स्थिति यह थी कि बतौर सोशल मिडिया और कुछ वाचाल बदतमीज महिला प्रवक्ताओं के जानिब, तेजस्वी सरकार बनाते हुए दिख रहे थे। बिहार की राजनीति की समझ रखने वाले हर व्यक्ति को पता है कि मनु स्मृति जलाने वालों के साथ कोई हिंदू कभी खड़ा नहीं होता और वहीं हुआ। तेजस्वी के पास एक फिक्स वोट बैंक था जो किसी भी स्थिति में उनका साथ नहीं छोड़ता पर उसने भी साथ छोड़ दिया । तेजश्वी के चुनाव को न विकास के दावों से मतलब है, न जंगलराज की बातें ही उन्हें प्रभावित करती हैं। उन्हें किसी भी मूल्य पर जातिवादी सरकार चाहिये। पर उनकी संख्या थोड़ी कम है। बस इतनी ही कम है कि वे सरकार बनाने से चार कदम पीछे जा कर रुक जाते हैं। भाजपा और जदयू गठबंधन की बात करें तो उनका वोटबैंक भी लगभग फिक्स है। इसमें कोई संदेह नहीं कि भाजपा अब ओबीसी की भरोसेमंद पार्टी हो गयी है। गैर यादव ओबीसी लगभग नब्बे फीसदी उसके साथ है। इनमें से कोई भी टूट कर उधर जाने को तैयार नहीं। लेकिन यह बात सपा और कांग्रेस को समझ नहीं आएगी। छह महीने पहले तक बिहार के सवर्ण आरक्षण के नियमों के चलते टूटते दिख रहे थे। अब इसका कारण लगातार बीस साल की सत्ता से हुआ मोहभंग हो, या अनेक स्थानों पर मिलता तिरस्कार हो, लेकिन दूरी तो बन ही गयी थी। बिहार के गाँव देहात का व्यक्ति इस मोहभंग को स्पष्ट देख रहा था। अचानक बिहार में इंट्री होती है उस व्यक्ति की, जो अपने विपक्षी को सत्ता की कुर्सी तक ना पहुँचने देने के लिए हर बार अपनी समूची ताकत झोंक देता देता है।
वह व्यक्ति जननायक राहुल गांधी है। वे आते हैं, तो चुनाव की तस्वीर बदल जाती है। उनके आते ही भाजपा जितने लगती हैं, और उनके उट पटांग बयान आते हैं। उनकी बातों से पता चलता है कि देश में होने वाली सारी दिक्कतों की जड़ में मोदी ही हैं, और वही असली लड़ाई खत्म, जनता मोदी को मौका देकर बाजी पलट देती है। बिहार में बचे खुचे काम में राहुल की मदद की है राजद की दो उन दो मुंहफट महिला प्रवक्ताओं ने, जिन्होंने अपने हर डिबेट में केवल और केवल सवर्णों से लड़ाई लड़ी, मनु स्मृति जलाई और गला फाड़ गालियां बकी । इनकी योजना शायद यह रही कि ऐसा करने से ओबीसी वर्ग उनके साथ चला जायेगा। हालांकि मैं यह कभी नहीं समझ पाता कि वे ऐसी उम्मीद कर भी क्यों लेते हैं? बिहार से लेकर केंद्र तक की सत्ता अब ओबीसी के हाथों में है, फिर आप बैकवर्ड कार्ड खेल कर क्या पा लेंगे ? खैर! कुल मिला कर बात यह कि यदि यूपी में योगी सरकार पुनः तीसरी बार लौटती है, तो उन्हें सबसे पहले मिठाई राहुल जी के यहाँ भेजनी चाहिए। उनकी कृपा के बिना यह सम्भव नहीं था। बाकी अजीत अंजुम की वाल से पढ़िए की भाजपा कैसे जीतती है :-
बीजेपी ऐसे लड़ती है चुनाव
दृश्य -1
25 अक्टूबर को बक्सर के एक होटल में मैं अपनी टीम के साथ डिनर कर रहा था . दूसरी टेबल पर बीजेपी का फटका डाले कुछ नेता टाइप के लोग बैठे थे। उनमें से एक सज्जन बार -बार मेरी तरफ़ देख रहे थे। मैं भी उन्हें पहचानने की कोशिश कर रहा था। तभी वो मेरे पास आए और बोले – मैं सतीश गौतम , अलीगढ़ से बीजेपी का सांसद हूं . मैंने पूछा – आप यहां ? उन्होंने कहा – मैं एक महीने से बक्सर में हूं। इस बार हम बक्सर जीतेंगे। संक्षिप्त बातचीत के बाद वो अपनी सीट पर चले गए। मैं सोचने लगा कि बीजेपी कैसे चुनाव लड़ती है , इसका नमूना ये है कि अलीगढ़ का एक सांसद कई लोगों के साथ बक्सर में कैंप करके बैठा है . ज़ाहिर है और भी बहुत से लोग होंगे। बक्सर आख़िर जीत ही गई बीजेपी।
दृश्य -2
अगले दिन वहां से आरा होते हुए पटना लौट रहा था तो सड़क के किनारे झुग्गी बस्तियों मे कुछ लोग बीजेपी के पर्चे बांटते दिखे। तभी मेरी नज़र यूपी बीजेपी के पूर्व अध्यक्ष और योगी सरकार के कैबिनेट मंत्री स्वतंत्र देव सिंह पर पड़ी। मैंने थोड़ा आगे जाकर गाड़ी रोकी और पलटकर देखने गया कि वाक़ई स्वतंत्र देव ही हैं कि कोई और है ..पता चला कि स्वतंत्र देव कुछ लोगों के साथ सड़क के किनारे दुकानदारों और बस्ती वालों से बात करते चल रहे थे. जरा सोचिए ! यूपी के एक बड़ा नेता सड़क के किनारे कुछ कार्यकर्ताओं के साथ धूल फांकता हुआ प्रचार कर रहा था. कोई कैमरा नहीं। कोई पब्लिसिटी नहीं,कोई रील नहीं।
दृश्य – 3
पहले दौर के चुनाव के बाद मैं किशनगंज के दफ्तरी पैलेस होटल के बाहर गाड़ी से सामान निकाल रहा था , तभी एक सज्जन आकर मिले। सूरत के कारोबारी के रुप में अपना परिचय दिया और कहा कि मैं कुछ दिनों तक तेघरा में तैनात था। वहां हम लोगों ने रजनीश कुमार की जीत के लिए दिन -रात काम किया है। गुजराती सज्जन ने पूरा हिसाब किताब समझाया कि कैसे रजनीश कुमार को 110000 से ज्यादा वोट मिलेंगे और काफी मार्जिन से जीतेंगे। उन्होंने अपना नंबर दिया और दावा किया कि नतीजों के दिन आप चाहें तो फ़ोन कर लीजिएगा . अभी देख रहा हूं कि रजनीश कुमार 112000 वोट पाकर 35 हज़ार वोट से जीत गए हैं। सीपीआई के मौजूदा विधायक चुनाव हार गए हैं। उन्होंने कहा कि अब हम किशनगंज जिले में काम करने आ गए हैं। उन्होंने बड़े उत्साह के साथ ये भी बताया कि कैसे गुजरात के बहुत से लोग अलग- अलग इलाकों में आकर महीने भर से डटे हैं। ऐसे न जाने कितने लोग बीजेपी के लिए महीने -दो महीने से बिहार में काम कर रहे थे। दर्जन भर मुख्यमंत्री , दर्जनों कैबिनेट मंत्री , दो सौ से ज्यादा सांसद और अलग अलग राज्यों से आए हजारों लोग बिहार में डटे थे।

पंकज सीबी मिश्रा राजनीतिक विश्लेषक एवं पत्रकार जौनपुर यूपी
