
कानपुर। दलित विरोधी सिद्धांत के लिए भाजपा की केंद्र सरकार के खिलाफ राष्ट्रीय व्यापी विरोध प्रदर्शन का आह्वान किया गया है। जिसमे हाल ही में पेश किए गये बजट और 2024 के आम चुनाव घोषणापत्र में दलित समुदाय की पूरी तरह से उपेक्षा की गई है, जो भारतीय संविधान का स्पष्ट उल्लंघन दर्शाता है प्रगति के बावजूद,भारत में दलित मुख्य रूप से कृषि श्रम और असंगठित क्षेत्रों में कार्यरत हैं, जो उनके निरंतर सामाजिक और आर्थिक हाशिए पर रहने को रेखांकित करता है। सार्थक सामाजिक विकास के लिए, यह जरूरी है कि केंद्र सरकार दलित कल्याण के लिए हर साल पर्याप्त बजट आवंटित करे। हालांकि, पिछले एक दशक में भाजपा शासन के तहत अनुसूचित जातियों के लिए बजट व्यय में गिरावट देखी गई है। आवंटन उनकी जनसंख्या के अनुपात के अनुरूप नहीं है, और यहाँ तक कि आवंटित धनराशि भी अक्सर संशोधित बजट के तहत कम कर दी जाती है। नीति आयोग की सिफारिशों और अनुसूचित जातियों की जनसंख्या के अनुसार अनुसूचित जातियों को देय आवंटन लगभग 16.2% है, लेकिन पिछले 10 वर्षों के बजट अनुमानों में अनुसूचित जातियों के लिए अनुमानित आवंटन बजट के 11% से अधिक नहीं है। अनुसूचित जातियों को आवंटन केवल संख्याएँ हैं, लेकिन केंद्रित योजनाओं को पर्याप्त बजट प्रदान नहीं किया जाता है। अनुसूचित जातियों के लिए कुल आवंटन 1,65,493 करोड़ रुपये है, जो अंतरिम बजट के लगभग समान है। गैर लक्षित आवंटन की प्रवृत्ति जारी है और केवल लगभग 3.2% (46,195 करोड़ रुपये) सीधे अनुसूचित जातियों तक पहुंच रहे हैं। हालांकि, पिछले साल के बजट से मौजूदा बजट के आवंटन में कोई बदलाव नहीं किया गया है। 2023-24 (बीई) में जहां 6,359 करोड़ रुपये का बजट रखा गया था, वहीं उसी साल के संशोधित अनुमान में आवंटन घटाकर 5,400 करोड़ रुपये कर दिया गया है। इसके जवाब में, दलित अधिकारों की वकालत करने वाले भारत भर के संगठन देशव्यापी विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं।
ज्ञापन देने मे गोविन्द नारायण, चमन खन्ना, हरीशंकर वर्मा, शिवकुमार, रोहन खन्ना, एड0 आनन्द गौतम, एड0 जाफर आबिद, एड0 अभिजोत, एड0 पंकज, मो0 वसी, उमाकान्त, रामबाबू बाल्मीकि आदि उपस्थित थे!