यह सत्य है कि भगवान बनने की पात्रता प्रत्येक पत्थर में होती है परन्तु ये बात भी उतनी ही सत्य है कि बिना कुशल शिल्पकार के कोई भी पत्थर भगवान नहीं बन सकता है। जो काट-छांट कर एक पत्थर को देव मूर्ति में रूपांतरित कर सके उसी शिल्पकार को गुरु कहा जाता है। जो जीव को भ्रम से ब्रह्म की यात्रा करा दे, शिष्य को शव से शिव बना दे, बाधा से राधा तक पहुँचा दे और मृत में मूर्ति प्रतिष्ठापित करा दे यही तो सद्गुरु का गुरुत्व है।
सद्गुरु की शरणागति ही जीव को अपराध से आराधना की यात्रा कराती हुई उसको कौवे से हंस बनाती है।
सद्गुरु शरणागति के बिना कोई भी जीवन महान नहीं बन सकता है। भगवान श्रीराम, भगवान श्रीकृष्ण से लेकर जितने भी हमारे आदर्श पुरुष हुए हैं सभी ने गुरु कृपा के बल पर ही जीवन का श्रेष्ठत्व प्राप्त किया है। सदैव गुरुजी की आज्ञा पालन और सेवा शिष्य का परम कर्तव्य है। निज शरणागति से गोविंद चरणों में रति प्रदान कर हमारे मानव जीवन को सफल बनाने वाले सद्गुरु देव भगवान के श्री चरणों में प्रत्येक क्षण बारम्बार प्रणाम निवेदित करते रहना चाहिए।
उपरोक्त बातें श्री बज्रांग आश्रम देवली प्रतापपुर में संचालित श्री बज्रांग संस्कृत विद्यालय के बटुक विद्यार्थियों को बताते हुए आचार्य धीरज “याज्ञिक” ने कही। इस अवसर पर आचार्य अवधेशानन्द महाराज, कृष्णकान्त ओझा, आचार्य चंद्रभूषण तिवारी, आचार्य विकास मिश्रा, आश्रम के संरक्षक धर्मेन्द्र नारायण मिश्र (तुलसीराम), विद्यालय के प्रबंधक धीरेन्द्र नारायण मिश्र, विहिप प्रतापपुर उपाध्यक्ष कंचन मिश्रा, विहिप प्रतापपुर मातृशक्ति संयोजिका वंदना मिश्रा, घनश्याम तिवारी, शिवभूषण मिश्र, सत्यम, नेहाल, रुद्रांश, नि ष्कर्ष, ऋषभ आदि लोग उपस्थित रहे।