नियम क़ानून के साथ भारत जैसे देश मे खिलवाड़ होता है साहब खिलवाड़ ! यहां हम जैसा पीएचडी डिग्री धारी युवा बेरोजगार कहलाता है और नेता जी अपने जीवन मे पांच साल नेताई के बाद अलग – अलग मद से चार – चार पेंशन गड़प कर जाते है। है ना अजीब ! पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने राजस्थान विधानसभा से पेंशन के लिए आवेदन किया है। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने राजस्थान विधानसभा में पेंशन के लिए आवेदन किया है। कहते हैं कि 74 साल के धनखड़ को करीब अब तीसरी बार 42 हजार रुपये मासिक पेंशन मिलेगी। दरअसल राजस्थान में नेताओं के लिए दोहरी-तिहरी पेंशन व्यवस्था लागू है, जिसके तहत पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़, पेंशन के लिए किया अप्लाई किया जो आज सुर्खियों मे बन आई।
आपको बता दें कि धनखड़ 1993 में कांग्रेस के टिकट पर अजमेर जिले की किशनगढ़ सीट से विधायक थे और बाद मे सांसद हुए तो विधायकी और सांसदी का पेंशन मिलता रहा होगा । यह नेताओं का अपना क़ानून है जिसमें निरीह टैक्स पेयर जनता का पैसा और वोट दोनों लेने के बाद अपने ऐसो आराम के लिए केवल मेज थपथपा कर अपनी सम्पत्ति कई गुना बढ़ा सकते है। कई पूर्व नेता एक साथ अलग-अलग पदों की कई पेंशन उठाते हैं जबकि एक पढ़ा लिखा युवा पांच हजार महीने कि तनख्वाह का दिहाड़ी खट रहा और जाति के नाम पर वोट देकर इनको अपने सर पर बिठा लेगा। विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी ने पुष्टि की है कि धनखड़ का पेंशन आवेदन विधानसभा को मिला है।
जनपद के पत्रकार और प्रदेश के मिडिया विश्लेषक पंकज सीबी मिश्रा ने जगदीप धनखड़ के चौथे पेंशन आवेदन पर कहा कि मेरी मानो तो सब कुछ बस नेताओं को ही दे दो, डिग्रीधारी युवाओं को खोज कर नौकरी देने, पत्रकारों को तनख्वाह देने, योग्य युवाओं को भत्ता देने मे सरकारों की सटक जाती है। आज अकेले यूपी के जनपद जौनपुर मे मुझे जैसा पोस्ट ग्रेजुएट और पीएचडी डिग्रीधारी युवा 10 से 12 हजार की नौकरी लेकर 8 घंटे लगातार बिना चाय पानी के प्राइवेट संस्थाओं मे खटता है। हम जैसों का शोषण मंजूर है पर अपनी तनख्वाह और पेंशन बिना किसी लाग लपेट के 65 परसेंट तक बढ़ाने में भी, आने वाली शर्म की आप बात भी मत करिए। नेताओं की पेंशन दुगनी करना बहुत पुनीत कार्य है इसमें सरकार को कोई टेंशन नहीं है जनाब।
आम जनता के टैक्स का पैसा सांसदों, विधायकों, पार्षदों की जागीर है और नेताओं को जो दूसरे तरीकों से पैसा आता है उसकी बात भूलकर भी मत करना,ओर करना है तो करते रहो, ये तो मोटी खाल के है फॉरचुनर से चलते है, इनके पुत्र पुत्रीया आरक्षण कि मलाई खाते है । इन नेताओं की सम्पति भी अकूत होती है। मेरा मानना है कि नेताओं की अपनी कोई निजी संपत्ति होनी ही नहीं चाहिए। क्योंकि वे समाज सेवा करने आये थे, न कि कोई कारोबार करने। फिर भी अगर वे अपनी निजी संपत्ति रखते हैं, तो आय से अधिक नहीं होनी चाहिए। परन्तु देखने को मिलता है कि इन दोनों के पास 5 से 10 साल में ही अकूत सम्पति जमा हो जाती है। तो क्यों नहीं देश में एक ऐसा कानून लाया जाए जिसमें आप नामांकन करते समय अपने और अपने सगा संबंधियों के कुल संपत्ति और आय का ब्यौरा देंगे। अगले 5 साल के बाद पुनः आप अपना और उनके आए और संपत्ति का ब्यौरा जमा करेंगे और केवल एक पेंशन लेंगे । अगर आपकी और आपके सगा संबंधी कि सम्पति इन 5 साल में आय से दोगुना हुआ तो आप पर कानूनी कार्रवाई की जाए और आपकी संपत्ति को जप्त कर उसे राष्ट्रीय संपत्ति घोषित किया जाए।
हलाकि दोगुना होना भी उचित नहीं है फिर भी इतना माफ किया जा सकता है। मुझे लगता है कि अगर इस तरह का कानून आ जाए तो देश में भ्रष्टाचार का 75% मामला अपने आप खत्म हो जाएगा। क्योंकि अगर मंत्री शंत्री भ्रष्ट नहीं होंगे तो पदाधिकारी को भ्रष्टाचार करने का अवसर ही नहीं मिलेगा।हमारे देश में योजनाएं और नियम आमतौर पर गरीबों पर सख्ती से लागू होते हैं, जबकि सुविधा संपन्न लोगों और खासतौर पर नेताओं को हर हाल में विशेषाधिकार दिए जाते हैं। हाल ही में यह चर्चा फिर से तेज हो गई है कि जिन लोगों के पास मोटरसाइकिल है, उनका राशन कार्ड रद्द किया जा सकता है, क्योंकि सरकार मानती है कि अगर किसी के पास दोपहिया वाहन है, तो वो गरीबी रेखा के नीचे नहीं हो सकता। लेकिन सवाल यह उठता है अगर मोटरसाइकिल गरीबी हटाने का पैमाना है, तो फिर फॉर्च्यूनर जैसी लग्ज़री गाड़ी रखने वाले नेताओं को आज भी पेंशन, बंगला, गाड़ी, ड्राइवर, सुरक्षाकर्मी और अन्य सरकारी सुविधाएं क्यों दी जा रही हैं? क्या वे ज़रूरतमंद हैं ? आम जनता पर महंगाई और बेरोजगारी की दोहरी मार अब सहन योग्य नहीं। सरकारें अक्सर लीकेज रोकने के नाम पर राशन कार्ड, गैस सब्सिडी, और अन्य योजनाओं लोगों को देती हैं पर उनमें से अधिकांश लोग सम्पन्न होते है । ठीक ऐसे ही किसी नेता परिवार के पास मोटरसाइकिल, छोटा प्लाट, या मामूली आय का स्रोत दिखता है, पर सांसद विधायक बनते ही उन्हें आरक्षण के लिए अयोग्य नहीं माना जाता ।
दूसरी ओर, करोड़ों की संपत्ति रखने वाले जनप्रतिनिधि न केवल मुफ्त की सुविधाएं उठाते हैं, बल्कि चुनाव हारने के बाद भी आजीवन तीन से चार पेंशन लेते हैं। नेताओं की सुविधाओं पर कब सवाल उठेगा? एक सांसद या विधायक, चाहे एक बार चुनाव जीते हों या हार गए हों, उन्हें जीवनभर पेंशन मिलती है। साथ ही, उन्हें मुफ्त हवाई यात्रा, टोल टैक्स में छूट, और विशेष सरकारी आवास तक मिलते हैं। ये सब सुविधाएं उस देश में हैं, जहां करोड़ों लोगों को दो वक्त की रोटी के लिए सरकारी मदद की ज़रूरत होती है। अगर सरकार आर्थिक रूप से सक्षम नागरिकों को योजनाओं से बाहर कर रही है, तो सबसे पहले उन लोगों की सुविधाएं समाप्त होनी चाहिए, जिनके पास पहले से ही अथाह संपत्ति है—जैसे बड़े नेता, मंत्री, और अधिकारी। सवाल जनता का है, जवाबदेही सिस्टम की ये सवाल अब आम जनता पूछ रही है मेरे इस शब्दभेदी बाण के जरिये ! अगर गरीब के पास मोटरसाइकिल होना गुनाह है, तो अमीर के पास फॉर्च्यूनर रखना क्यों नहीं ? अगर छोटे किसान की सब्सिडी बंद हो सकती है, तो धनी नेताओं के पेंशन क्यों नहीं बंद किए जा सकते ! अगर जनसाधारण की स्कॉलरशिप, राशन और गैस सब्सिडी खत्म की जा सकती है, तो नेताओं की सुविधाएं क्यों नहीं ? देश को अगर वाकई ईमानदारी से चलाना है, तो नियम सबके लिए बराबर होने चाहिए।
“मोटरसाइकिल पर राशन कार्ड रद्द हो सकता है, तो फॉर्च्यूनर पर पेंशन क्यों नहीं ? ये सिर्फ एक वाक्य नहीं, बल्कि एक जनभावना है, जो अब आवाज़ बन रही है। समय आ गया है कि शासन व्यवस्था में समानता, न्याय और जवाबदेही लाई जाए। वरना लोकतंत्र में जनता चुप नहीं रहती — वो सवाल उठाती है, और कभी-कभी बदलाव भी ला देती है। सवाल है कि अपने पांव पर कोई कुल्हाड़ी क्यों मारेगा? खासकर उन नेताओं से तो अपेक्षा नहीं ही की जा सकती है जो अन्य सभी सरकारी नौकरियों में पेंशन खत्म करते जा रहे हैं और अपने लिए अभी भी एक साथ दो तीन पेंशन का जुगाड़ रखे हुए हैं। ऐसे में तो यही कहा जायेगा कि भगवान बचाये इस देश को!

पंकज सीबी मिश्रा/राजनीतिक विश्लेषक एवं पत्रकार जौनपुर यूपी