पुराने वर्ष को राम राम, नए वर्ष को जय श्री राम …!

  पंकज कुमार मिश्रा, मिडिया विश्लेषक एवं पत्रकार जौनपुर यूपी
विष्णु लोक में तनाव का माहौल था,पता चला कि नए आंग्ल वर्ष 2024 में प्रभु श्री राम के मंदिर का निर्माण कार्य लगभग पूर्ण होने के उपलक्ष्य में प्रभु की प्राण प्रतिष्ठा होने जा रहीं अर्थात पीएम मोदी अपने कार्यकाल में ही राम को लखन और सिया सहित मंदिर में विराजमान करेंगे और समारोह भव्य होगा पर रामद्रोहियों को सबसे पहले बुलावा जायेगा । महानतम पत्रकार नारद जी रात भर सोए नहीं है,कल शाम से ही दिमाग़ का कोई सवाल हल करने में लगे हैं जो हो नहीं रहा, इसी चक्कर में न खाए न सोए,यह बात स्वर्ग प्रभारी से होते हुए विष्णु लोक तक पहुँची, स्वर्ग प्रभारी सब प्रोटोकॉल छोड़ अपने चेले चप्पड़ों के साथ भागे-भागे विष्णु जी के शेष सैय्या कक्ष में पहुंचे,देखा कमरे की पूरी फर्श गोंजे हुए कागजों से भरी पड़ी है, नारद जी जल्दी-जल्दी कुछ लिखकर फिर फाड़/मोड़ के फेंक रहे, क्या हुआ नारद जी क्यों परेशान हैं स्वर्ग प्रभारी ने पूछा, यार एक सवाल ने उलझा रखा है,हर बार उलझ जाता हूँ इस सवाल में,आजतक नहीं हल कर पाया इसे,अरे ऐसा कौन सा सवाल है जिसे आप नहीं हल कर सकते? जवाब में नारद जी ने अखबार उनके सामने रख दिया जिसमें छपा था….” कर्ज लेकर और घर बार बेचकर राम मंदिर हेतु एक करोड़ दान दिया “यार इसी खबर में परेशान कर रखा है मुझे, उधर विलुप्त हुए गिद्धराज जटायु के वंशज भी अयोध्या पहुंचे। अयोध्या के मिल्कीपुर तहसील क्षेत्र धरौली गांव पहुंचे विलुप्त प्रजाति के गिद्ध। ग्रामीणों में उत्साह बोले- राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा से पहले प्रभु राम के भक्त पहुंचने लगे।आश्चर्य की बात है की राम मंदिर अभी तक पूरी तरह नहीं बन पाया है और इतना सब ! स्वर्ग प्रभारी बोले यह सब बीते वर्ष के राम राम और नए वर्ष पर जय श्री राम का प्रभाव है । तो नारद जी बोले इसे पुरी तरह  तैयार  होने में अभी भी 2 साल लगेगा ऐसे में मंदिर के उद्घाटन को प्रधान मंत्री मोदी के द्वारा 22 जनवरी को प्राण प्रतिष्ठा करना क्या हिंदू धर्म के अनुसार सही है? क्या यह कार्यक्रम बीजेपी के चुनावी  राजनीति से प्रेरित नहीं है ? इस भव्य मंदिर को बनाने में पूरे भारत के लोगों के अलावा पूरे विश्व में फैले हिंदू और सनातन धर्म को मानने वालों ने दिल खोल कर चंदा मंदिर निर्माण ट्रस्ट को दिया है!राम मंदिर में भगवान राम की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा में सिर्फ 22  दिन बचे हैं। इसके उद्घाटन समारोह में शामिल होने के लिए कई बड़े राजनीतिक दलों के नेताओं, सेलिब्रिटीज, खिलाड़ियों, संतो को न्योता भेजा गया है,लेकिन ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती और अखिलेश यादव को निमंत्रण नहीं मिला है। ऐसे में उन्होंने प्राण प्रतिष्ठा की तारीख पर सवाल उठाए हैं ।शंकराचार्य का कहना है कि राम मंदिर का अभी काफी निर्माण कार्य अधूरे  हैं जिनको पूरा करने में करीब 2 वर्ष लगेगा ऐसे में मंदिर में भगवान राम की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा नहीं होना चाहिए क्योंकि ऐसा करना  सनातन संस्कृति और धर्म का उलंघन करना  होगा। उन्होंने आगे कहा है कि प्राण परतिष्ठा रामनवमी के दिन होना चाहिए । मोदी का राम मंदिर बनवाने पर राजनीति कर रहे हैं । उनका कोई योगदान नहीं है जिन्होंने आंदोलन किए वे सभी दरकिनार कर दिए  गए हैं।
आप मानें न मानें पर यह तो सत्य ही है कि सनातन धर्म केवल एक मान्यता पर चलने वाले लोगों का समूह नहीं। यह एक विराट संस्कृति है, यहाँ एक साथ असंख्य आध्यात्मिक धाराएं बहती हैं। इसी देश में उत्तर दक्षिण से भिन्न है, पूरब पश्चिम से भिन्न है। एक जाति होते हुए भी मैथिल ब्राह्मणों का जीवन अलग है और हिमाचल वालों का अलग। बावजूद सभी हिन्दू हैं, और कोई किसी से आगे या पीछे नहीं है।गाँव बदलते ही रीतियाँ बदल जाती हैं, परंपराएं बदल जाती हैं। ऐसे में दूसरी धारा की वे परंपराएं जिन्हें आप नहीं मानते, उनका भी सम्मान करना होता है। अपने आस पड़ोस से ही एक छोटा सा उदाहरण दे रहा हूँ। सामान्यतः मृतक का दाह संस्कार चिता पर लिटा कर किया जाता है। पर अनेक गांवों में एक अजीब परम्परा देखने को मिलती है। मृतक के शरीर को लगभग तोड़ते हुए ऐसा कर दिया जाता है जैसे वह बैठा हो। फिर उसे बीच मे रख कर उसके चारों ओर गोबर का कंडा( गोंयठा या उपला) खड़ा कर उसे जलाया जाता है। यह आपको अजीब लगेगा, पर इस परम्परा के जन्म के पीछे भी कोई न कोई आवश्यक कारण अवश्य ही रहा होगा। लकड़ी की अनुपलब्धता ही सही।  तो क्या ऐसी विविधता होने पर एक दूसरे की परम्पराओं को गाली देते हुए उन्हें खारिज किया जाय? नहीं! यदि आप ऐसा करते हैं, तो यकीन कीजिये आप सनातन परम्परा से भटक चुके हैं।हिंदुओं में प्राचीन शाक्त, शैव और वैष्णव मत के अतिरिक्त भी जाने कितने सम्प्रदाय रहे हैं।जय महादेव और जय गुरुदेव जैसे कुछ तो बिल्कुल ही नए बने हैं। इन सबको मानने वालों की बड़ी संख्या है। फिर भी, हिंदुओं का लगभग अस्सी फीसदी हिस्सा किसी भी सम्प्रदाय की विधिवत दीक्षा में नहीं है। वह हर मन्दिर में शीश झुका लेता है, हर देवता को पूज लेता है। उसे न वैष्णव नियम याद रह गए हैं, न शैव, न शाक्त… वह कबीरपंथी साधुओं को भी प्रणाम कर लेता है और नाथपन्थ के योगियों को भी… और उस अस्सी फीसदी जनता को यह सहजता इसी धर्म, इसी सनातन संस्कृति ने दी है।  यह जो परम्परा से अपने देश के लिए “अनेकता में एकता” की बात की जाती है न, वह अन्य रिलिजन्स के साथ अनेकता के लिए नहीं की जाती, वह अपने ही सनातन धर्म के भीतर की अनेकता के बावजूद एकता के लिए की जाती है। इस अनेकता में एकता को बचाये रखना भी धर्म है। हमारे ही भाइयों की जो परंपराएं हमें पसन्द नहीं, उनके बहाने यदि हम धर्म या पूरी संस्कृति को गाली दे रहे हैं, तो फिर धर्म बचा नहीं हम में। मैंने कहीं पढ़ा, किसी ने लिखा कि यदि फलां परम्परा धर्म का हिस्सा है तो मैं नहीं मानता इस धर्म को! एक बात बताऊं? यदि कोई व्यक्ति किसी भी बात पर चिढ़ कर यह कह दे रहा है कि ऐसा हुआ तो मैं धर्म को त्याग दूंगा, तो फिर स्पष्ट मानिए उसे त्यागने की जरूरत नहीं, उसमें धर्म बचा ही नहीं है। वह पहले से ही त्याग चुका है। यह विद्वानों की भूमि है, तार्किकों की भूमि है। और यही कारण है कि कोई भी मत समूची सभ्यता में पूर्ण रूप से स्वीकार नहीं हुआ। यह बात कोई नहीं कह सकता कि फलां काल में मेरी ही मान्यता समूची हिन्दू जाति में चलती थी। तो हम या आप किसी भी मत के हों, पूरी हिन्दू जनसंख्या हमारे मत को माने ऐसा नहीं हो सकता। बस इतनी सी बात स्वीकार कर लेने की आवश्यकता है।

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