घाटी के हालात यह है कि विगत वर्ष एक सरकारी कर्मचारी पाकिस्तान और आतंकियों के लिए काम करते रंगे हाथों पकड़ा गया था। उसे सस्पेंड किया जाता है, फिर उमर अब्दुला की सरकार बनती है और थोड़े दिनों में उसे पुनः बहाल कर दिया जाता है। इक्का दुक्का बर्खास्त भी हुए मगर उन्हें जेल में नहीं डाला गया, कोई एफआईआर नहीं हुई क्योंकि पीडीपी मानती है कि घाटी का माहौल खराब नहीं दिखना चाहिए। जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हाल ही में हुए आतंकी हमले ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। पर्यटकों के रूप में हिंदुओं की निर्मम हत्या ने यह साफ कर दिया है कि आतंक की जड़ें देश के बाहर से भीतर तक और गहरी हैं। इससे निपटने के लिए महज़ खोखले दावे नहीं, ठोस और निर्णायक कदमों की जरूरत है। इस घटना के बाद कश्मीर पर्यटन को भारी नुकसान होगा। लोगो में भय का माहौल बनेगा और लोग बाहरी राज्यों से यहां आने से बचेंगे जिससे स्थानीय दुकानदार भुखमरी के कगार पर आ जाएंगे। जिस तरह से निर्दोष नागरिकों को निशाना बनाया गया, वह न सिर्फ कायरता की पराकाष्ठा है, बल्कि हमारे राष्ट्रीय स्वाभिमान को चुनौती भी है। इस समय पूरे देश को एकजुट होकर आतंकवाद के ख़िलाफ़ मजबूती से खड़ा होना होगा। यह याद दिलाना जरूरी है कि भारत ने हर बार आतंक के ख़िलाफ़ जीत हासिल की है और इस बार भी पीछे नहीं हटेगा। हालाँकि सरकार की ओर से लंबे समय से जम्मू-कश्मीर में हालात सामान्य होने के दावे किए जा रहे हैं, लेकिन ज़मीनी सच्चाई कुछ और ही बयां कर रही है। लगातार हो रही आतंकी घटनाएँ इस बात का सबूत हैं कि स्थिति अभी भी चिंताजनक बनी हुई है। अब समय आ गया है जब भाजपा के खिलाफ नारेबाज़ी और बयानबाज़ी से आगे बढ़कर विपक्ष भी संसद में एकजुट होकर आतंक के खिलाफ कठोर कदम उठाए जाने पर अपना पूर्ण समर्थन दें। निर्दोषों की हत्या पर कोई भी ढुलमुल रवैया न तो देशहित में है और न ही मानवता के पक्ष में। एक सशक्त, निर्णायक और पारदर्शी नीति ही आतंक के इस घिनौने चेहरे को हमेशा के लिए मिटा सकती है। जनवरी 1990 में कश्मीरी पंडितों के घाटी से विस्थापन और उसके बाद डोडा, किश्तवाड़, भद्रवाह, रामबाण, पूंछ, राजौरी, रियासी और उधमपुर में भी इस तरह के कत्लेआम आम बात हो गई थी। कश्मीर में छत्तीस सिंह पूरा और बंधहमाहा में भी आतंकवादियों ने नरसंहार किया। तब टूरिज्म का ग्राफ तेजी से गिरा था और स्थानीय लोगो ने आतंकवाद के खिलाफ भारतीय सैनिकों की मदद शुरू की थी। लेकिन आज जो आतंकवादियों ने चुन चुन कर हिंदू टूरिस्ट्स को गोलियों से भूना, वह बेहद दुखद है। सूत्रों के अनुसार इसमें स्थानीय लोगो की संलिप्तता से भी इंकार नहीं किया जा सकता।
आख़िर कश्मीर की रोजी रोटी चलाने वाले निर्दोष टूरिस्टों ने आतंकवादियों का क्या बिगाड़ा था ? वो तो न जमीन खरीदने आए थे, न कब्ज़ा करने। कुछ घूमने आए थे और कुछ राज्य की इकोनॉमी बढ़ाने आए थे। कोई भी धर्म, कुरान , कलमा इत्यादि निहत्थे टूरिस्ट्स को मारने को नहीं कहता। यह तो महापाप है जिसके लिए आतंकियों को जहन्नुम नसीब होगी। क्या पाकिस्तान से भेजे गए आतंकवादी और स्थानीय मददगार यह बता पाएंगे कि यह कौन सा धर्म है ? मारे गए नव कपल की तस्वीर देखकर रोना आ गया था। सोचिए, ये लोग हनीमून क्यों मनाने यहां आए थे। पहलगाम में 28 टूरिस्ट्स के मारे जाने के बाद, पहली बार देश की जनता खुलकर आतंकवादियों के खिलाफ बोल रही है पर विपक्ष में छुपे कुछ गद्दार अब भी इसे राजनीतिक स्टंट कहकर अपनी ही सरकार को कटघरे में डाल रहे । निर्लज्ज भूल गए की आतंक का एक ही रहनुमा है और वह है पाकिस्तान। पहलगाम और घाटी के कई इलाकों में आतंकवादियों के खिलाफ प्रदर्शन तो हो रहे हैं पर आतंकी गतिविधि के समय विरोध करने की हिम्मत क्यों नहीं दिखाई गई! क्यों स्थानीय भीड़ ने आतंकियों की मोब लांचिंग नहीं की ! जम्मू के बाद कश्मीर घाटी में सभी विपक्षी पार्टियों ने भी घाटी बंद का आह्वान तो किया किंतु हिंदू हत्या पर एक शब्द नही बोला ! घाटी में ऐसे सैकड़ों केस होते रहे । अनेक ‘पूर्व’ आतंकवादी सरकारी तनख्वाह ले रहे हैं। घोड़े वालों, टैक्सी वालों,हाउसबोट वालों,होटल का स्टाफ और वेटर में कौन आतंक और जिहाद से जुड़ा है आपको कुछ नहीं मालूम ! वर्तमान राज्य सरकार भी घाटी में नए नए तरीकों से इन लोगों की जेबें भर रही है। ऐसे तत्वों को सरकारी नौकरियां रेवड़ियों की तरह बांटी जाती हैं क्युकी ये अच्छे फंडर और वोटबैंक होते है। सिविल सर्वेंट से लेकर लोकल तक पाक परस्तों के साथ गलबहियां करते हैं। इस माहौल में मासूम हिन्दू टूरिस्ट जेब मे लाखों रु लेकर घाटी में आता है। भंयकर लूट होती है, पहलगाम जाना है और आप पठानकोट से कार लेकर श्रीनगर पहुंच गए हैं तो आप को लोकल टैक्सी लेकर ही पहलगाम के कुछ खास टूरिस्ट इलाकों तक जाना होगा। आप अपनी कार लेकर नहीं जा सकते ! पिछले सीजन में घाटी के कुछ लक्ज़री सूट रु एक लाख रु प्रति रात की दर पर मजबूरी का फायदा उठाकर किराये पर दिए गए। जब तक आप घाटी में अपनी जेब कटवाते रहेंगे, सुरक्षित रहेंगे वरना हर सीज़न सैकड़ों हिन्दू टूरिस्ट घाटी में जूते चप्पल और गालियां खाकर लौटते हैं। मगर कोई इक्का दुक्का ही बताता है ! हिन्दू कौम बनी ही बेइज़्ज़त होने,जूते खाने, बलात्कार झेलने और गोली खाने के लिए ही है ! खुद्दारी और आत्मस्वाभिमान सिर्फ अपने इलाके मे हैं।

पंकज सीबी मिश्रा/राजनीतिक विश्लेषक एवं पत्रकार जौनपुर यूपी