स्वांत सुखाय की भावना आत्मघाती, खुद पर रखें संयम 

हर सुबह व्हाट्सएप ग्रुप, सोशल मीडिया पर कुछ लोग जाति नफरत और  धर्म का प्रचार करते रहते हैं। हर दिन तस्वीर और एक धार्मिक स्लोगन, कट्टरता और एजेंडा ! इसे ठीक कह भी दूं तो यह समझ नहीं आता क्या उन्हें समाज में फैले अन्याय और शोषण दिखाई नहीं देते ? ऐसे लोग मानसिक अंधता की श्रेणी में आते है। इसके लिए एक तर्क देते हैं कि धर्म का प्रचार करने से शांति मिलती है लेकिन यह एक तरफा शांति हमारे समाज को कितना सुधरता होगी ? क्योंकि एनसीआरबी (नेशनल क्राइम ब्यूरो) के डाटा तो कुछ और कहते हैं। रेप मोब लिंचिंग हत्या सांप्रदायिक घटनाएं लगातार बढ़ रही है। ऐसे हालातो में स्वांत सुखाय लोगों को देखकर कहां जा सकता है कि अन्याय, शोषण और अपराध को नजर-अंदाज कर देने में किस तरह एक समाज पाखंडी बनकर रह जाता है। राम राज्य को स्थापित करते-करते हम लोग यह भूल गए कि अपराध की कोई धर्म और जाति नहीं होती  लेकिन इन दिनों हमनें दुष्कर्मियों का स्वागत सत्कार भी देखा। उन्हें पैरोल पर छोड़े जाते भी देखा। हार माला पहनाते नेताओं को भी देखा। यह दुष्कर्म को नापने की नयी परिभाषा है।  अब इसी से तय होता है अपराध कितना छोटा और बड़ा है। अगर समर्थित लोगों के राज्य में हो जाए तो अपराध छोटा है, और अगर विपक्षी के यहां हो जाए तो बड़ा, बहुत बड़ा और फिर शुरू होता है खेल सोशल मिडिया का। इधर अपराध अपराध की जगह सड़ता रहता है। अपराध को नापने के लिए यह नए किस्म की पात्रता लोगों ने हासिल कर ली है। हमें पता है इस देश में, इस बात से सहमत आने वाले लोग भी हैं।हमें पता है पोलराइजेशन एक राजनीतिक क़दम है। हमें पता है चिंदियों को सील कर बनाया गया कपड़ा कुछ लोगों को सुंदर नहीं लगता । हमें पता है बर्बरता और तबाही में कुछ लोग आनंद लेते हैं। क्या हमें पता है आंसुओं का कौन सा धर्म होता है। पंछियों की कौन सी सरहद होती है। पेड़ का धर्म क्या है, हवा पर किस जाति का नाम लिखा है।धरती पर कीलें ठोंक देने से मुस्कुराना कैसे संभव है। इंसान सिर्फ़ प्रेम करने के लिए पैदा हुआ है। बाकी कट्टरता और जाहिलपन तुम्हारे भीतर भरा गया है। कठुआ, उन्नाव, हाथरस, कोलकाता, उज्जैन, इस देश में शायद ही कोई ऐसा शहर बचा हो जहां बच्चियां दरिंदगी का शिकार नहीं हुई हो। इस देश की गलीज और बजबजाती राजनीति सिर्फ़ यह ढूंढने में लगे रहती है कि विपक्ष के यहां रेप हो तो सिर्फ वही मुद्दा है और ख़ुद के राज्य में शासन प्रशासन की दुहाई।अभी हाल ही में इसराइल के एक सैनिक का हीरो की तरह स्वागत किया गया। सम्मान का कारण इस सैनिक ने फिलिस्तीन की महिला का रेप किया था. उसे देश के आइकन की तरह प्रस्तुत किया गया। हमारे ही देश में बिलकिस बानो के रेपिस्टों का किस तरह हर माला पहना कर स्वागत किया गया था। यह बिल्कुल भी भूलने वाली बात नहीं। वाराणसी के आईआईटी बीएचयु में बी-टेक छात्रा के गैंग रेप के दो आरोपियों को 7 महीने बाद जमानत पर रिहा किया गया। इन दोनों का अपने गृह नगर में स्वागत और सत्कार हुआ । ऐसा इस देश में कब और कहां था और अगर था तो उतना ही लानत और भर्त्सना के लायक है जितना आज हम इस समाज में देख रहे हैं। अब यह बात सिर्फ़ राजनीति तक सीमित नहीं है, समाज के भी उतने ही पतनशील विचार को जाहिर करता है। एक बीमार समाज और घृणा की राजनीति दोनों पर्याप्त है इस देश को डूबोने के लिए ।
पंकज सीबी मिश्रा, राजनीतिक विश्लेषक एवं पत्रकार जौनपुर यूपी 

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