पंकज कुमार मिश्रा, राजनीतिक विश्लेषक एवं पत्रकार जौनपुर यूपी
इस चुनाव मे आज वही संयोग अथवा प्रयोग हो रहा है जो अटल बिहारी वाजपेयी के समय हुआ करता था। ऐसा लगता हैं कि कोई देश का ही हिन्दू विरोधी गुट अंतराष्ट्रीय ताकतो के साथ मिलकर नही चाहता कि मोदी सरकार की वापसी हो अतः जितना अधिक हो सके उतनी कीले लोकतंत्र के मार्ग में बिछाई जा रही है। ऐसा नैरैटिव बनाने की कोशिश हो रही है कि जैसे की भाजपा ही आरक्षण ख़त्म करेंगी, भाजपा संविधान बदलेंगी, भाजपा नें जबरदस्ती कोवैक्सीन लोगो को लगवा दी, इलेकटोंरल बांड का चंदा अकेले भाजपा को ही मिला है। जबकि यह वही घोटला है जो विपक्ष नें सबसे ज्यादा किया है। सपा और कांग्रेस को भी चुनावी चंदा जमकर लूटा है ! आज कोर्ट में एलोपैथी और आयुर्वेद को लड़वा दिया गया है और दोनों के तीर सरकार की छाती पर है ! और भी बहुत छोटी छोटी बाते है जिनकी शाब्दिक व्याख्या नही की जा सकती पर अंतराष्ट्रीय ताकते बहुत बैचैन लग रही है ! इतना ज्यादा बाहरी दखल है कि उतना मैने कभी नही देखा, एक बार जब मायावती मुख्यमंत्री के तौर पर 5 साल पूरे करके चुनाव में गई थी तब भी महसूस हुआ था कि शायद विदेशी दखल है ! ऐसा लगता था जैसे कि अंतराष्ट्रीय ताकते नही चाहती थी कि मायावती दोबारा उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बने ! और हुआ भी तब वही।
मैं चीजो को बहुत सूक्ष्मता से देखने का अभ्यस्त हूँ इसीलिए ऐसी चीजे मेरी नजरो से बच नही पाती हैं ! लोग कह देते है कि आप सत्ता पक्ष के लिए लिखते है तो इसमें बुराई क्या है। कॉलम मेरा स्वतंत्र विचार है ना कि रिपोर्टिंग जो मै दलगत राजनीति से ऊपर उठ कर करता फिरु। आप खुद सोचिये माननीय पांच साल सुरक्षित सीट से आरक्षण लेकर चुनाव लड़े फिर अगले चुनाव में वो आरक्षित ही रहें मतलब उनका सामाजिक स्तर बढ़ा, धन दौलत बढ़ा पर आरक्षण नहीं घटा ! है ना अजीब ! कब ऐसे ढकोसले नियमों से मुक्ति मिलेगी यह पूछना मेरा अधिकार है और यह मै सरकार से ही नहीं उस विपक्ष से भी पूछ रहा जो कभी सरकार में थी। एक बार एक व्यक्ति अगर आरक्षण का लाभ लेकर अपनी सामजिक स्थिति सुधार लिया तो दोबारा उसे वही लाभ क्यों या उसके आश्रित जनों को आरक्षण का अनैतिक लाभ क्यों ! हर रोज मायावती के बारे में अजीबो गरीब खुलासे हो रहे कि उन्होंने अपने भतीजे को कुर्सी सौप दी, जौनपुर में क्षत्रिय को क्षत्रिय के खिलाफ खड़ा करवा दी, हालाँकि समाजवादी पार्टी भी पहले चुनाव मुलायम सिंह यादव के नाम पर लड़ रही थी पर अखबारों में अखिलेश यादव को उभरता हुआ नेता देश के लिए संभावना आदि आदि बताया गया आज अखिलेश यादव राजनीति में केवल वंशवाद का नाम है ! उस समय देश राजनैतिक रूप से इतना शिक्षित नही था अतः समझ नहीं पाया कि क्या हो रहा है पर मुझे जो बात उस समय अखर रही थी आज सच लगती है, कोई अंतराष्ट्रीय ताकत नही चाहती थी कि आरक्षण पर पुनर्विचार हो, हिंदुत्व के काम पर कोई बात हो ! अच्छी बात यह है कि इन बेचैन अंतराष्ट्रीय ताकतो से ना अटल बिहारी वाजपेयी जी लड़ पाए थे और न ही मायावती पर मोदी शाह न केवल लड़ रहे हैं बल्कि इनको कदम कदम पर मात दे रहे है। चुनाव में कोई बड़ा उलट फेर न भी हो तो भी ये लोग मोदी जी की अंतराष्ट्रीय साख पर बट्टा नहीं लगा पाएंगे। इस सारी अफरा तफरी के बीच हिंदू वोटर वोट करने के लिए घर से बाहर ही नहीं निकल रहा है यह दुःखद विडंबना है! एक दिन सर्जिकल स्ट्राइक पर नाच लिए, एक दिन धारा 370 पर और 2-4 दिन राम मन्दिर पर नाच लिए और एक जागरूक भारतीय होने का हमारा कर्तव्य पूरा हो गया? हिंदू समाज एक ऐसा संवेदनाविहीन और उदासीन समाज बनने की ओर अग्रसर है जहाँ बेटियां काटी जा रही हैं नोची जा रही हैं पर कोई फर्क नही पड़ता, इस्लामिक शक्तिया देश निगलने पर आमादा हैं पर कोई फर्क नही पड़ता, हिंदू समाज पर कोई आंच आये तो कोई फर्क नही पड़ता। यहाँ तक कि उनका सबसे लोकप्रिय नेता जो उनसे 5 साल में केवल एक बार वोट मांगने का सच्चा अधिकारी है उसके लिए कोई घर से नही निकल रहा ! 500 साल के बाद एक राष्ट्र के रूप में भारत का और एक हिंदू के रूप में हमारा कितना और क्या भविष्य बचा है? समस्त हिंदू जनमानस को इस विषय पर गहन चिंतन मनन की आवश्यकता है कि आखिर हम इतने उदासीन क्यु होते जा रहे है ? क्या वामपंथी हिंदू समाज का चुपचाप शिकार कर चुके है ?