
अखिलेश यादव ने कांग्रेस को गठबंधन के लिए न कहकर अपने पिता की राजनीतिक विरासत को आगे बढ़ाया है. उन्होंने साफ कर दिया है कि संसद में किसी मुद्दे पर कांग्रेस के साथ आने का मतलब जमीन पर साथ आना नहीं है. मुलायम सिंह यादव ने कभी कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव नहीं लड़ा. हालांकि कांग्रेस के साथ उनकी दोस्ती दुश्मनी चलती रही.
हालांकि अखिलेश ने पिता से अलग राह पर चलने की कोशिश की लेकिन उन्हें कामयाबी मिली नहीं. उन्होंने दो साल के भीतर ही पहले राहुल गांधी के साथ 2017 में गठबंधन किया और 2019 मायावती के साथ समझौता किया लेकिन उन्हें कामयाबी नहीं मिली. शायद अखिलेश मोदी लहर से परेशान थे जिसके चलते उन्होंने अपने पिता की सीख को भी दरकिनार कर दिया.
मुलायम सिंह यादव ने हमेशा यूपी में अपने पैर मजबूत रखे और राष्ट्रीय राजनीति में राजनीतिक नफे नुकासान के आधार कांग्रेस का विरोध या समर्थन करते रहे. 17 अप्रैल 1999 के दिन एक वोट से वाजपेयी सरकार गिर गई थी. हालांकि इसके बाद सोनिया गांधी पीएम नहीं बन सकी क्योंकि यह उनके विदेश मूल का मुद्दा उठ चुका था.
हालांकि यह बात ज्यादा लोग नहीं जानते कि सबसे पहले यह मुद्दा मुलायम सिंह यादव ने ही उठाया था. इसके बाद 2008 मुलायम ने अपने 38 सांसदों की मदद से मनमोहन सिंह सरकार को उस वक्त बचाया था जब अमेरिका से परमाणु डील के मुद्दे पर लेफ्ट ने समर्थन वापस ले लिया था.ऐसा
लगता है कि अखिलेश अब जमीनी हकीकत को समझ गए हैं और कांग्रेस के साथ समझौता कर वह अपनी जंड़ो को कमजोर नहीं करना चाहते हैं. वह अपने गढ़ यूपी को कमजोर में लगे हैं. इसलिए उन्होंने जातीय गणना को बड़ा मुद्दा बनाया है. देखना है कि वह कितना योगी सरकार को मुकाबला दे पाते हैं.