
पंकज कुमार मिश्रा मीडिया पैनलिस्ट जौनपुर
केजरीवाल का नया मुद्दा, मोदी जी की डिग्रियां कहां है ? , राहुल गांधी का नया मुद्दा, अडानी मोदीराज में अमीर नंबर 3 कैसे बना ? , अखिलेश का मुद्दा, यादव जाति नौकरी की मेरिट लिस्ट में क्यों नहीं आ रही ? ममता बनर्जी का नया मुद्दा राम किसके है ? मायावती का मुद्दा दलित और ओबीसी कौन है ? जनता का मुद्दा महंगाई कब खत्म होगी ? भाजपा कार्यकर्ताओं का मुद्दा एलपीजी गैस और पेट्रोल के दम कब कम होंगे ? ये सभी मुद्दे और प्रश्न जवाबहीन है क्योंकि ऐसे प्रश्नों के कोई जवाब कभी बने ही नहीं ।अब आते है राजनीति के सबसे चर्चित मुद्दे की तरफ जो है डिग्रियों का मुद्दा तो हमे काम से मतलब है कि हमे डिग्रियां चाटनी है मनमोहन सिंह ,चिदंबरम,रघुराम राजन,अभिजीत, अमर्त्य सेन,ये सारे डिग्रीधारी अर्थशास्त्री कांग्रेस में ही थे, तो भारत 2014 तक गरीब क्यों रहा जनता गरीब क्यों रही ? नेताओ के ही क्यों बड़े बड़े बंगले बने ? मोदी 11 नम्बर की अर्थव्यवस्था को 5वे नम्बर पे ला के खड़ा कर दिया और जल्द ही हम टॉप 3 में होंगे । बेरोजगारी की बात करते है । 2014 से पहले 95% मोबाइल बाहर देशों से मंगवाते थे।लेकिन आज बिल्कुल उलट,आज 97% मोबाइल अपने देश में बन रहे है।सोचो कितने लोगों को रोजगार प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से मिला होगा ।आज भारत तीसरे नम्बर का औटोमोबाईल मेन्युफेक्चरिंग में आ गया है । स्टील उत्पादन में पूरे विश्व मे दूसरे नम्बर पे आ गया है ।खिलोने जो हम पहले विदेशो से मंगवाते थे । आज हम एक्सपोर्ट कर रहे है अगर देश का प्रधानमंत्री पढ़ा-लिखा होना चाहिए, तो उसका चुनाव कैसे होगा? अरविंद केजरीवाल ने कुछ दिन से पुनः शोर मचा रहे है कि देश का प्रधानमंत्री पढ़ा-लिखा ही होना चाहिए। तब से मेरे मन में रह रहकर विचार आ रहा है कि पढ़े लिखे होने की परिभाषा क्या है? क्या अरविंद केजरीवाल पढ़े-लिखे माने जाएंगे या उनके बैच का टॉपर पढ़ा-लिखा माना जाएगा? या फिर वह उमर शेख से जो लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में पढ़ा था और जिसने अमरीकी पत्रकार डेनियल पर्ल की गर्दन रेतकर पाकिस्तान में हत्या कर दी थी? या फिर 19 आतंकवादियों को जिन्होंने वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमला किया था? वह सब या तो इंजीनियर थे या फिर पायलट? अल क़ाएदा का नेता अल-ज़वाहिरी डॉक्टर था? जरा सा और आगे बढ़ते हैं। अगर पढ़ा लिखा व्यक्ति प्रधानमंत्री होना चाहिए तो क्या यह नहीं होना चाहिए कि सभी पढ़े-लिखे लोग सिविल सर्विसेज का कंपटीशन दें और जो उसमें टॉप करें वह प्रधानमंत्री बने? लेकिन फिर व्यवस्था की सफलता के लिए यह भी आवश्यक है कि सारे विधायक और सांसद भी पढ़े लिखे हो? अगर टॉपर प्रधानमंत्री बने, तो नीचे की रैंक वाले मुख्यमंत्री, केंद्र में मंत्री, राज्यों में मंत्री, मेयर इत्यादि बने। सिविल सर्विसेज कंपटीशन का फॉर्म भरते समय सभी आवेदकों से उनकी प्रेफरेंस भरवा ली जाए कि वह किस क्रम में मुख्यमंत्री, मंत्री, मेयर इत्यादि बनाना चाहेंगे। इंटरव्यू में फेल हुए लोग क्रमानुसार सांसद एवं विधायक बन जाएंगे।लेकिन कॉपी कौन जाचेंगा? इंटरव्यू पैनल में कौन बैठेगा? सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट के जज? लेकिन फिर भगवंत मान एवं मनीष सिसोदिया का क्या होगा जो केवल बारहवीं पास है? इससे तो लालू प्रसाद, राबड़ी और उनके पुत्रों का टिकट ही कट जाएगा।अगर इस तर्क को आगे बढ़ाये, तो क्या मतदाताओं की भी न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता होनी चाहिए? उनकी न्यूनतम “डिग्री” को किस स्तर पर रखेंगे – पांचवी, दसवीं, बारहवीं पास? लेकिन फिर मतदाताओं की भी क्या आवश्यकता है जब सभी जनप्रतिनिधि यूपीएससी कंपटीशन से “सेलेक्ट” होंगे? इससे तो राजनीतिक दल की भी आवश्यकता समाप्त हो जायेगी। या फिर मुझे प्रधानमंत्री होना चाहिए जिसने इलाहाबाद विश्वविद्यालय, जेएनयू और फ्रांस के टॉप संस्थान से पढ़ाई की है और एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन में कार्य भी कर रहा हूं? लेकिन शशि थरूर का क्या होगा? उन्होंने डॉक्टरेट करी है और उसी संगठन में वह भी काम कर चुके हैं। अगर शशि थरूर को अपनी पढ़ाई के बल पे प्रधानमंत्री होना चाहिए, तो फिर राहुल गांधी का क्या होगा? वह तो शशि थरूर से कम पढ़े लिखे हैं। इस पूरे प्रकरण में सोनिया गांधी की महत्वाकांक्षा का क्या होगा? और फिर प्रियंका, वह कहां तक पढ़ी लिखी है? या फिर इंदिरा गांधी? मनमोहन सिंह कैंब्रिज में पढ़े लिखे होने के बाद भी सोनिया गांधी की जी हजूरी किया करते थे. और चिदंबरम हार्वर्ड में पढ़े होने के बाद भी क्या-क्या करतूतें कर बैठे? और केजरीवाल स्वयं आईआईटी में पड़े होने के बाद भी उनमें उनके व्यवहार में जरा सी भी शालीनता नहीं है। हर चीज को बदतमीजी के साथ बेहुदे तरीके से बोलना। बात बात में देश के प्रधानमंत्री का मजाक उड़ाना और भाजपा के नेताओं से लिखित में माफी मांग लेना। कहां से लगता है कि वह पढ़े लिखे है? फिर उन मित्रो का क्या होगा जो भारत की मिटटी और जीवन शैली को अच्छी तरह से जानते है। क्या उनके इस ज्ञान को क्वालिफिकेशन माना जाएगा। या फिर धूनी रमाये साधू संत को प्रधानमंत्री होना चाहिए जिनका अंतर्ज्ञान हम सब से अधिक है। या फिर एक अनपढ़ बूढ़ी माँ जो बादल का रंग देखकर मौसम बता दे, महिलाओ को प्रसव करवा दे और चार-पांच संतानो को पाल कर एक जिम्मेदार नागरिक बना दे?
अब यदि मान भी लें मोदी जी की डिग्रियां यूज लेस है तो बिना डिग्री के भी यदि जहां पिछले 70 साल में देश 70 एयरपोर्ट बने थे ,वहीं भाजपा ने पिछले 6 सालों में74 नए एयरपोर्ट बनाये,डिफेंस में आज भारत दूसरे देशों को हथियार बेच रहा है जो पहले एक पिस्तौल भी बाहर देशों से मंगवाता था ,पिछले साल 80 हजार करोड़ के हथियार विदेशियों को बेचे है भारत ने । सड़क भी पहले 12 किलोमीटर हर रोज नेशनल हाईवे बनता था । आज 40 किलोमीटर हर रोज बनने के करीब है ।आजादी के बाद से केवल 2 करोड़ घरों के पास नल से साफ स्वच्छ जल पहुंचता था
मोदी ने 11 करोड़ घरों तक नल से साफ स्वच्छ जल पहुंचाया । आदमी की मूलभूत सुविधा भी बिना डिग्री के पूरी हो रही । रोटी कपड़ा मकान मिल रहा ,सड़क सुरक्षा स्वास्थ्य हर फील्ड में आज भारत आगे बढ़ रहा । ये सब उस इंसान ने किया है जिसको अनपढ़ कह के गाली दी जा रही ।