व्यंग्य – अब कुत्ते भी मूलनिवासी, घोषित होगी इनकी कार्यकारिणी.!

पंकज कुमार मिश्रा मीडिया कॉलमिस्ट शिक्षक एवं पत्रकार केराकत जौनपुर
समाचार पत्रों के मुताबिक कुत्ते अब भारत में मूलनिवासी का दर्जा प्राप्त कर लेंगे और अब जिन क्षेत्रों में वे मूलनिवासी होंगे उन क्षेत्र में सियारों ने अब तक चालीस लोगों को काट लिया है,और ये आंकड़ा कल तक का है । जांच करने पर पता चला ये सियार उस जज को ढूंढ रहे जिसने कुत्तों को मूलनिवासी का दर्जा दे दिया और सियारो के साथ नाइंसाफी हुई है । उधर एक बंदर ने प्रेस कांफ्रेंस करके कहा कि मैं मांग करता हूँ सरकार से कि इधर उधर फालतू घूम रहे सभी ओबीसी के कुत्तों को पकड़ कर उन्हें प्रशिक्षित करे और उन्हें नियुद्ध कला (बिना हथियार वाला युद्ध) में पारंगत बनाये और उनके दांत तेज करवा के देश मे एक कुत्ता रेजीमेंट और कुत्ता फायर  बिग्रेड बना के उन्हें चीन व पाकिस्तान सीमा पर ले जाकर छोड़ दे,इससे युद्ध या छद्म युद्ध की दशा में उन लोगों के पाव पाव भर सौ सौ ग्राम के न्युक्लियर बम कुछ नहीं कर पाएंगे और ओबीसी के ये कुत्ते उनका नाक “कान” और उससे मिलते जुलते शब्द वाले अंग पर बुरी तरह काट खाएंगे,इससे उनकी पूरी सेना में भगदड़ मच जाएगी और वो सब भाग चलेंगे और मैदान साफ हो जाएगा फिर हमारी सेना आगे बढ़ के लाहौर तक कब्जा कर सकती,  पाकिस्तानी तो थोड़ा बहुत प्रतिरोध भी कर सकते हैं पर पिद्दी पिद्दी चीनी सैनिक तो सियार बिग्रेड के सामने एक मिनट भी नहीं टिक पाएंगे और हमारी सेना बड़े आराम से बीजिंग तक चढ़ जाएगी, इसमें मूल निवासी देशी कुत्तों की भी सहायता ली जा सकती है जिनसे आजकल पूरा देश परेशान है, ज्ञातव्य हो कि अभी दो दिन पहले ही विद्वान जजों की एक कमेटी ने कुत्तों को देश का “मूल-निवासी” घोषित किया है जिससे विशाल देशी कुत्ता समुदाय में तो खुशी की लहर दौड़ गयी है जबकि कुछ तथाकथित जाति के नेता टाइप ठेकेदार लोगों को सांप सूंघ गया है, इस एक छोटी सी पहल से न केवल आवारा कुत्तों व सियारों की समस्या से मुक्ति मिलेगी बल्कि हम उनको समाज की मुख्यधारा में लाने का पुनीत कार्य करेंगे, और हमारे देश की प्रतिरक्षा प्रणाली बहुत ही मजबूत हो जाएगी। उधर कुत्तों के मूलनिवासी बनते ही उनकी भी जनसंख्या की गिनती के बाद भारत की जनसंख्या चीन से आगे निकल गई । संयुक्त राष्ट्र संघ की एक आधिकारिक  रिपोर्ट के अनुसार  भारतवर्ष की जनसंख्या अब विश्व के  प्रथम स्थान पर पहुँच गई है (फ़रवरी 2023 तक 142.8 करोड़)। इस बढ़ी हुई आबादी में सबसे बड़ा योगदान 15- 64 वर्ष के ऊपर के नागरिक कर रहे हैं । उनकी जनसंख्या की भागीदारी 68 पर्सेंट  के लगभग बतायी गई है।जनसंख्या के मामले में चीन अब दूसरे स्थान पर हो गया है (142.5 करोड़), वहाँ कामगारों की संख्या 90 करोड़ से अधिक है, भारत वर्ष में कुल 50 करोड़ के लगभग कामगार बताये जा रहे हैं, शेष हम आप बतायें? क्या कर रहे हैं लोग । कुछ तो  बी. ए. बनने की होड़ में लगे हैं। फिर भी  भारत सरकार आशान्वित है कि दक्ष कारीगरों के बदौलत  वर्ष 2030 तक भारत सात  ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था वाला देश बन जाएगा! सोचिए कोई भी भारतीय शिक्षा प्रणाली तकनीकी विशेषज्ञ नहीं तैयार करती हैं जब तक वह किसी विशेष संस्थान में जा करके अलग से कुछ नया सीखता नहीं है।कोई स्किल नहीं कहाँ से पूरा होगा।चीन का अभी भी यह दावा है कि वह अपने कामगारों के बदौलत दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में बढ़ता ही रहेगा। दुनिया की पूरी आबादी वर्ष 2023 में  लगभग 804.5 करोड़  आकलित की गई है जिसमें एक तिहाई लोग भारत और चीन के  क्षेत्रफल में निवास करते हैं। वर्ष 2050 तक भारत की आबादी 166.8 करोड़  से अधिक की होगी। मेरा मानना है कि अधिकांश शेष बचे भारतीय लोग  सरकार से सब्सिडी पाकर अपना  जीवन आनन्द पूर्वक बिता रहे हैं, वह वोट बैंक बन कर ही खुश हैं। इसमें किसी एक राजनीतिक पार्टी को दोष नहीं दिया जा सकता है । हम एक पार्टी को जब दोष देते हैं तो यह भूल जाते हैं कि केन्द्र में बैठी हुई भारतीय जनता पार्टी की सरकार भी यही कार्य कर रही है। हमें बचपन से सुनी एक कहावत याद आती है कि, “जब बैठे मिले खाने को तो कौन जाये कमाने को!” ।हम आज भी गाँव क़स्बे के नवयुवकों को इसी स्वरूप में देख रहे हैं। देश का तथाकथित जनसेवा के लिए समर्पित नेता वर्ग अलग से दिन- प्रतिदिन इस देश पर  भार  बनता जा रहा है। देखा जाए तो यह भारत वर्ष का सबसे बड़े अनुत्पादक वर्ग एक विशाल समूह है, जो प्रति त्रिस्तरीय मुख्य संवैधानिक  व्यवस्थागत चुनावों  से लेकर विभागीय ,कार्यालयीन , कोआपरेटिव अथवा अन्य समितियों के चुनाव में ही  जीवन काट देता है, उसका मुखौटा जनसेवक का बना  रहता है। जन सेवा के नाम पर वह प्रायः कामचोरी या  भ्रष्टाचार करने  के मौक़े भी तलाश करता रहा है। निश्चित ही यह लोकतांत्रिक चुनावी दौड़ की व्यवस्था भी  इनमें सम्मलित होने वाले विशाल वर्ग के  भारतवर्ष जैसे देश के पिछड़े होने का सबसे बड़ा कारण है।
वैसे जनसंख्या वृद्धि का असली व मुख्य  कारण तो आप सब को मालूम ही होगा। बार- बार कहने से क्या फ़ायदा।अब आगे भी  सरकार से माँग होगी ही  की सभी की  रोज़गार दिया जाए, यही नहीं पड़ोसी देशों से नये- नये लोगों को लाकर बसाने वाले भी यही माँग दोहराएंगे। कुछ सुबह से मन में था वह कह दिया।पृथ्वी दिवस भी है। अक्षय पात्र को अकूत खुशियों से भरने का दिन। धन, धान्य, ऐश्वर्य तो सभी चाहते हैं। लेकिन इसके साथ खुशियां न हों तो सब बेकार। खुशियां तंगी वालों के घर भी आती हैं। उनका अक्षय पात्र बहुत-सी ऐसी खुशियों से भरा रहता है जिसका क्षय कई बार अमीरों के घरों में देखा जा सकता है। इसका मतलब ये है कि केवल संपत्ति और धन अक्षय पात्र को नहीं भर सकते। मन से निकली हुई दुआएं किसी के लिए जनमभर का अक्षय पात्र भर सकती हैं। सबके अपने-अपने अक्षय पात्र हैं।  क्या ही संयोग है कि अक्षय तृतीया और  पृथ्वी दिवस साथ   है। अक्षय दिवस पर ‘क्षय’ का भय दिखाता ये दिवस है। लोग अपने बैंक और घर के लॉकर भरने ज्वेलर्स की लंबी कतारों में आज के दिन दिखते हैं। लेकिन पृथ्वी को बचाने की श्रृंखलाएं कहीं दिखती ही नहीं। क्या करेंगे इतना धन कमाकर! जब संपदा का ह्रास होता रहे। अक्षय का क्षय होता रहे। अकूत संपत्ति क्या है! इसे नये सिरे से समझने की शिद्दत से जरूरत महसूस होती है।  बढती तपन ही संपदा में बढोत्तरी का प्रतीक है तो झुलसने के लिए तैयार भी हमें ही रहना होगा। हम कोई सोना नहीं कि इस ताप को झेलकर कुंदन जैसे निखर जाएंगे। मनुष्य सोने से भी ज्यादा कठोर है। और सोने की तासीर जैसा मुलायम भी है। उसे अपने अंदर से उस मर्मांतक पीडा को महसूस करने की जरूरत है। कुंदन स्वयं को नहीं बल्कि धरती को बनाने की पहल करने के लिए अपना पहला कदम रखना है। अकूत संपदा को लॉकर में नहीं बल्कि खुले आसमान के नीचे देखने की चाहत ही हमें पैदा करनी होगी।  अपने-अपने दडबों से निकलकर अपने सीमित प्रयास करने होंगे। तो कौन करेगा ये सब! हम! आप! और कौन! जिसे इस धरती पर रहना है वो! ग्लोबल वॉर्मिंग से जूझ रहे मनुष्य के पास ही इसका हल है। समय रहते खोज लें तो ठीक वरना अगली आनेवाली पीढियों के लिए ‘क्षय दिवस’ मनाने की नौबत आएगी। इसमें कोई शक नहीं!

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