भावनानी के व्यंग्यात्मक भाव – लगातार व्यंग्यबाजी से सतर्कता आ रही है 

लेखक – कर विशेषज्ञ स्तंभकार साहित्यकार कानूनी लेखक चिंतक कवि एडवोकेट के सनमुख़दास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र
भ्रष्टाचार की पोलपट्टियां खुल रही है
व्यंग्य कविताएं लगातार छप रही है
जनता के समझ में बात आ रही है
लगातार व्यंग्यबाजी से सतर्कता आ रही है
घूसखोरी की छुपी आइडियाएं खुल रही है
जनता आपस में एक दूसरे को समझा रही है
प्रिंट मीडिया लगातार ध्यान दे रही है
लगातार व्यंग्यबाजी से सतर्कता आ रही है
भ्रष्टाचारकी नई आइडियाओंं पर रिसर्च शुरूहै
भ्रष्टाचार छोड़ेंगे नहीं शपथ ली जा रही है
भ्रष्टाचार की अंदर खाने ट्रेनिंग दी जा रही है
लगातार व्यंग्यबाजी से सतर्कता आ रही है
हिस्सेदारी से अब कन्नी काटी जा रही है
मलाई भी थोड़ी कम आ रही है
डरे नहीं सीज़न की ढिलाई चल रही है
लगातार व्यंग्यबाजी से सतर्कता आ रही है
सुधरेंगे नहीं पीढ़ियों से आदत चली आ रही है
तंबाकू ठर्रे अय्याशी की आदत नहीं जा रही है
भ्रष्टाचारी में अति सतर्कता बरती जा रही है
लगातार व्यंग्यबाजी से सतर्कता आ रही है

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