बदलते इतिहासकारो नें इतिहास की सत्यता को गर्त में धकेल दिया है। पहले जो पढ़ाया जाता रहा वह क्या वाकई सेक्यूलरिज्म के लिए मिथ्या बीजारोपण था! या अब जो बताया जा रहा वह हिन्दूइज्म के लिए आधार तैयार किया जा रहा ! एनसीईआरटी की आठवीं कक्षा की सामाजिक विज्ञान की नई किताब में दिल्ली सल्तनत और मुगल शासन काल की नयी तस्वीर पेश की गई है। 2025-26 सत्र के लिए प्रकाशित की गयी कक्षा 8 की नई किताब एक्सप्लोरिंग सोसाइटी इंडिया एंड बियॉंड (भाग 1) में बाबर, अकबर, औरंगजेब सभी को बेहद क्रूर, निर्दयी शासकों की तरह पेश किया गया है, जिन्होंने हिंदुओं के मंदिर तोड़े, उन पर जजिया कर लगाया और औरतों-बच्चों को बेरहमी से मारा।
इसलिए इस पूरे काल के लिए अंधेरे शब्द का इस्तेमाल किया गया है। हालांकि इसी दौर में विश्वप्रसिद्ध ताजमहल भी बना, जिसे देखने दुनिया भर के सैलानी आज भी आते हैं। भूमि की नापजोख से लेकर राग-रागिनियों की रचना, खान-पान, पोशाकों पर प्रयोग सब इसी दौर में हुए। सबसे बड़ी बात यह कि जिस अंधेरे दौर का ज़िक्र कर मुग़ल शासकों पर आततायी होने का इल्जाम लगाया जा रहा है, और हिंदुओं के लिए उसे ख़तरे की तरह बताया जा रहा है, उस काल के गुजरने के बाद देश खंडो में बटा। आज जब देश में हिंदू बहुसंख्यक हैं और मुस्लिम अल्पसंख्यक तो फिर ऐसे प्रश्न उठाने लाजमी है । 1526 से लेकर 1857 तक मुगलकाल 331 साल तक चला, इतने लंबे वक़्त में भारतीय समाज की धार्मिक पहचान आसानी से बदल गई होती अगर शेरशाह सूरी जैसे नायक सामने नहीं आते तो । जैसा कि किताब में दावा है कि जजिया ‘अपमानजनक कर’ था, जो गैर-मुस्लिमों पर धर्मांतरण के लिए दबाव बनाने के उद्देश्य से लगाया जाता था तो इसपर किसी को कोई आपत्ति क्यों.! इस किताब में मंदिरों और गुरुद्वारों को तोड़ने का इल्ज़ाम मुग़ल शासकों पर लगा जो वर्तमान साक्ष्य को देखते हुए सत्य प्रतीत होता है ।
यह सब सौ फ़ीसदी सच है। देश में न चार-पांच सौ साल पुराने मंदिर बचे ढंग से , न हिन्दुओं की आस्था । जो कुछ किताब में लिखा है, वह तस्वीर का एक ही पहलू है । इसके जरिए विद्यार्थियों को समझाया जा रहा है कि यह इतिहास का अंधेर दौर था। किताब में बाकायदा एक अस्वीकरण यानी डिस्क्लेमर दिया गया है, जिसमें लिखा है कि ‘इतिहास के अंधेरे दौर’ के लिए आज किसी को ज़िम्मेदार नहीं ठहराना चाहिए। यह अस्वीकरण काफी परिचित लगता है, क्योंकि इतिहास और वह भी सदियों पुराने इतिहास के लिए तो यूं भी किसी को ज़िम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। जो कुछ अतीत में घटा है, उसका तार्किक विश्लेषण करना, और गलतियों को न दोहराने का सबक लेना, इस मकसद के साथ इतिहास का पाठ किया जाना चाहिए। यह तभी हो सकता है जब इतिहास को संतुलित और संवेदनशील तरीके से पढ़ाया जाए।
इतिहास में राजा अपना राज्य बचाने के लिए क्रूरता का सहारा लेता है और कभी किसी राजा की अकर्मण्यहीनता में प्रजा पिसती है। हिंसा, रक्तपात, कत्लेआम, इंसानों की सामान की तरह तिजारत ऐसी कई अमानवीय घटनाएं भारत समेत पूरे विश्व इतिहास में दर्ज हैं। खासकर मध्ययुग का इतिहास तो इन्हीं से अटा पड़ा है, जीवन में व्यापार, धर्म और सियासत के लिए जगह बनने लगी। उस दौर में न कोई संविधान था, न आज की तरह का लोकतंत्र था, इसलिए नैतिकता के मापदंड भी अलग थे।एनसीईआरटी की किताबों को अब सच्चाई का जरिया बनाया गया है। क्योंकि इसके जरिए नयी पीढ़ी के दिमाग में सत्य बोने का काम आसानी से होगा। कोई मिथ्या विरोध जताये तो उसे किताब का डिस्क्लेमर दिखाया जाएगा।
इसमें कोई दो राय नहीं कि अकबर ने युद्ध किए और औरंगजेब ने मंदिरों को नष्ट किया। लेकिन औरंगजेब ने जब केवल मंदिरों को ध्वस्त किया तो अकबर ने जजिया कर को ख़त्म किया, इसके बाद धार्मिक एकता और सहिष्णुता का स्वांग रचाने के लिए सुलह राजनीति चलाई। सच तो ये है कि क्रूरता और धार्मिक स्थलों का विनाश मुगल या सल्तनत काल तक सीमित नहीं था। इसके पहले और बाद में भी यह सब चलता रहा, क्योंकि किसी भी शासन में पहला मक़सद अपने राज्य का विस्तार और आसपास के शासकों पर दबदबा कायम करना होता था। आज भारत में सम्राट अशोक को महान माना जाता है, क्योंकि उन्होंने कलिंग युद्ध के बाद हिंसा को त्यागा और बौद्ध धर्म अपना लिया।
अशोक के शिलालेखों के अनुसार कलिंग युद्ध में 1 लाख लोग मारे गए और 1.5 लाख बंधक बनाए गए थे। मगर इस वजह से हम अशोक को क्रूर शासक के तौर पर याद नहीं करते हैं, फिर बस अकबर या अन्य मुग़ल शासकों के लिए यह पैमाना क्यों बन रहा है, यह विचारणीय है। कई हिंदू शासकों ने अपने राज्य के लिए रक्तपात मचाया है। पुष्यमित्र शुंग (185 ईसा पूर्व) ने मौर्य वंश को उखाड़कर लाखों बौद्धों का नरसंहार किया और विहारों को नष्ट कर दिया। राजतरंगिणी में बताया गया है कि कश्मीर के राजा हर्ष ने मंदिरों को नष्ट करने के लिए एक विशेष अधिकारी नियुक्त किया था।
दक्षिण भारत में चोल, चेर और पांड्य राजवंशों ने एक-दूसरे के मंदिरों और मठों को नष्ट किया। यह सब भी हम पढ़ते रहे है। तो क्या एनसीईआरटी इस वजह से इनके कृत्य को अंधेरगर्दी नहीं बता सकती है, यह विचारणीय है। किशोरवय के बच्चों में इतिहास को पढ़ने की सही समझ विकसित करना एक चुनौतीपूर्ण काम है। इस उम्र में पैठ कर गई बातें उनके व्यक्तित्व को गढ़ती हैं।

पंकज सीबी मिश्रा/राजनीतिक विश्लेषक़ एवं पत्रकार जौनपुर यूपी