
पंकज कुमार मिश्रा मीडिया पैनलिस्ट शिक्षक एवं पत्रकार केराकत जौनपुर
बीसवीं शताब्दी के छठे दशक के पूर्वार्ध में बहुत लगा परंतु शीघ्र ही एसियाई देशों के बीच संबंधों में कटुता आ गई और 1962 में तो पूरा युद्ध ही हो गया । 60 सालों में दुनिया बहुत बदल गई है। 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिका ने दुनिया के स्वयंभू और एकमात्र पुलिसकर्मी की भूमिका संभाल ली। जैसे शरीर में जमा विजातीय पदार्थ फोड़े – फुंसी , उल्टी- दस्त के रूप में बाहर निकलते हैं उसी स्थिति में हुए 11/9 के आतंकवादी हमले ने विश्व को स्तब्ध कर दिया। 20 साल तक अफगानिस्तान में प्रतिशोध की कार्यवाही के बाद अगस्त 2021 में अमेरिका को वहां से अक्षरशः दुम दबाकर भागना पड़ा। अमेरिका की सामरिक शक्ति असीम नहीं है यह सिद्ध हो गया। उसी समय दुनिया का उत्पादन केंद्र बनकर चीन ने अमेरिका की आर्थिक शक्ति को भी चुनौती दे दी। आज अमेरिका और यूरोप के उसके साथी लगभग चार सौ साल की प्रभुता के बाद सांसत में हैं। रूस – यूक्रेन युद्ध उसी का एक हिस्सा है। वास्तव में यह युद्ध अमेरिका और उसके साथियों तथा शेष विश्व के बीच है। अमेरिकी गुट को चीन के विरुद्ध खड़ा होने के लिए भारत की बहुत ज़रूरत है और भारत – चीन के ख़राब संबंध भारत को उस तरफ धकेल भी रहे हैं। परंतु भारत का पश्चिमी खेमे से जुड़ना ऐतिहासिक भूल होगी। अब समय आ गया है पश्चिमी देशों की आर्थिक उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद की सत्ता को पलट देने का। पश्चिमी सत्ता के विश्व में हावी होने से पहले चीन और भारत में कोई गठजोड़ तो नहीं था पर वह दुनिया के सबसे अधिक समृद्ध देश थे। पिछले कुछ समय में एशियाई ही नहीं दक्षिण अमेरिका और अफ्रीका के देशों में भी जागरूकता आ गई है। वे भी आर्थिक उपनिवेशवाद से मुक्त होने के लिए छटपटा रहे हैं। ब्रिक्स अमेरिका और यूरोप से अधिक वैश्विक प्रतिनिधित्व वाले हैं और अधिक शक्तिशाली भी हैं। उपरोक्त पांच देशों के अलावा अल्जीरिया , अर्जेंटीना , ईरान और इंडोनेशिया इस ग्रुप में शामिल होने के लिए कतार में खड़े हैं। जल्द ही नाइजीरिया , कजाखस्तान , इजिप्ट और तुर्की जैसे देश भी इसमें शामिल हो सकते हैं। इस गुट में चीन और भारत आबादी में सबसे बड़े देश हैं और यदि इनके संबंध सामान्य नहीं हुए तो इसका कामयाब होना संदिग्ध है। दोनों देश के नेतृत्व इस बात को समझ कर यदि सीमा विवाद को फिलहाल ठंडे बस्ते में डाल दें तो विश्व में एक बहुत बड़ा परिवर्तन अवश्यंभावी है। आने वाला समय ब्रिक्स का ही होगा। डॉलर , आईएमएफ और वर्ल्ड बैंक इतिहास के पन्नों में रह जाएंगे।
अब पाकिस्तान की दिवालिया होने से कोई नहीं बचा सकता। पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था तहस-नहस हो जाने से हाहाकार मचा है। कंगाल पाकिस्तान को खाने के लिए दो वक्त की रोटी भी नसीब नहीं हो रही है। आटा, दाल, चावल और रोटी के लिए भीषण जंग छिड़ी है। महंगाई की मार ने पाकिस्तान को दिवालिया बनाने के कगार पर खड़ा कर दिया है। पाकिस्तान की यह हालत यूं ही नहीं हुई है। दरअसल पाकिस्तान को ज्यादातर पैसा टेरर फंडिंग से आता था। मगर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की जुगलबंदी ने पाकिस्तान की टेरर फंडिंग पर ऐसा प्रहार किया कि उसका दंश शहबाज शरीफ आज तक झेल रहे हैं। पहले टेरर फंडिंग से ही पाकिस्तान की अर्थ व्यवस्था चल रही थी। मगर लगातार 4 वर्षों तक ग्रे लिस्ट में रहने के बाद पाकिस्तान टेरर फंड नहीं जुटा सका। इससे उसकी अर्थव्यवस्था तहस-नहस हो गई। आतंकवाद के खिलाफ भारत के जबरदस्त विरोध के चलते पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप ने भी पाकिस्तान पर शिकंजा कस दिया था। ट्रंप ने साफ कह दिया था कि वह आतंकवाद के खिलाफ पाकिस्तान की कार्रवाई से संतुष्ट नहीं हैं। इसलिए अमेरिका ने पाकिस्तान को दी जाने वाली तत्कालीन आर्थिक मदद को भी रोक दिया था। इसके बाद इंटरनेशनल मॉनीटरिंग एजेंसी फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) ने पाकिस्तान को जून 2018 में ग्रे लिस्ट में डाल दिया था। इससे पाकिस्तान को दुनिया के तमाम देशों से होने वाली टेरर फंडिंग पर विराम लग गया था। टेरर फंडिंग पर एफएटीएफ ने निगरानी रखना शुरू कर दिया था। आपको बता दें कि एफएटीएफ की ग्रे लिस्ट में रहने वाले देशों को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष समेत विश्व बैंक और अन्य बड़ी संस्थाएं फंड व कर्ज देना बंद कर देती हैं। पाकिस्तान के साथ भी यही हुआ। इससे पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था गर्त में जाती रही। ग्रे लिस्ट में करीब 4 वर्ष तक रहने के बाद अक्टूबर 2022 तक पाकिस्तान अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन की मेहरबानी से बाहर तो आ गया, लेकिन तब तक उसकी अर्थव्यवस्था दरक चुकी थी ।पाकिस्तान को होने वाली टेरर फंडिंग पर पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप की “तीर” काफी असरदार साबित हुई है। लिहाजा पाकिस्तान अब पूरी तरह कंगाल हो चुका है। प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ को कटोरा लेकर विभिन्न देशों से भीख मांगने पर मजबूर होना पड़ा है। वहां महंगाई दर 25 फीसदी तक पहुंच चुकी है। खाने-पीने की वस्तुओं के दामों में आग लगी है। इस बीच आइएमएफ ने पाकिस्तान को कर्ज देने से मना कर दिया है, क्योंकि उसकी क्षमता कर्ज लौटाने की नहीं रह गई है। हालांकि पीएम शहबाज शरीफ ने आइएमएफ से काफी मिन्नतें की थी, मगर आइएमएफ ने कमान खींच लिया। इससे पाकिस्तान का बुरा हाल हो चुका है। विश्व बैंक समेत दूसरी संस्थाओं ने भी पाकिस्तान को कर्ज देने से हाथ पीछे खींच लिया है। पाकिस्तान की रेटिंग बुरे दौर में है। हालत यह है कि उसका दोस्त चीन भी अब उसे फूटी कौड़ी देने को तैयार नहीं है।