
लेखक, चिंतक, कवि – किशन सनमुख़दास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र
बड़ी हुई भारी जिम्मेदारी से
थक गया हूं वह वापिस छूट जाए
बचपन के वह सुहाने
दिन वापस अा जाएं
हम थोड़े में संतुष्ट हो
वह अनुभूति वापस आएं
महल गाड़ी नहीं चाहिए
पुराना घर वापस आएं
बीते हुए बचपन के दिन
कितने सुहाने हसमुख थे
काश कभी ऐसा
करिश्मा भी हो जाए
बचपन के वह सुहाने
फ़िर से दिन लौट आएं
नया ज़माना छोड़
पुराने जमाने में लौट जाएं
समय चक्र विनती है
कुछ पीछे घूम जाएं
मम्मी पापा छोटी बहन
ऊपर से वापस आ जाएं
फ़िर घर में साथ बैठ
हसीं ख़ुशी से देर तक बतियाएं
हे समय का चक्र विनती हैं
कुछ पीछे घूम जाए
मोबाइल कार कंप्यूटर
सभ वापस चले जाएं
मम्मी पापा परियों की मुझे
बस वहीं कहानी सुनाएं
कुएं तालाब पर रोज़ नहाएं
वह दिन वापस आएं
मस्ती करें मम्मी पापा से डॉट खाएं
बचपन में ही सारा जीवन बताएं
आपके द्वारा दिए गए कविता के हर एक वाक्य अति सुंदर एवम निशब्द है जो जीवन के हर एक पल में वो पुराने सारे दिन याद आते जो अविस्मरणीय है ।
धन्यवाद पुराने दिन याद दिलाने की लिए
thanks