समाजवादी पार्टी और इसके मुखिया अखिलेश यादव के लिए उत्तर प्रदेश के नगरीय निकाय चुनाव बुरे स्वप्न की तरह रहे। सीएम योगी द्वारा यूपी के चहुंमुखी विकास के खिलाफ बयानबाजी और माफिया के समर्थन के चलते प्रदेश की जनता ऐसी खफा हुई कि उसने सपा को एक बार फिर ‘शून्य’ में पहुंचा दिया। पिछली बार की तरह इस बार भी समाजवादी पार्टी का नगर निगम चुनाव में खाता नहीं खुला। पिछली बार जहां 16 में 14 सीटों पर भाजपा ने परचम लहराया था तो दो में बसपा को जीत मिली थी। वहीं इस बार सभी 17 नगर निगमों में भाजपा के मेयर होंगे, जबकि समाजवादी पार्टी हाथ मलते रह गई। इन नतीजों से स्पष्ट हो गया कि यूपी को सिर्फ योगी पर ही यकीन है। वहीं अखिलेश यादव और सपा को प्रदेश की जनता ने सिरे से नकार दिया।
हम आपको बता दें कि 2017 में समाजवादी पार्टी ने सभी 16 नगर निगमों में अपने प्रत्याशी उतारे थे। लेकिन एक भी जगह पार्टी खाता खोलने में नाकाम रही। भाजपा ने जो दो सीटें गंवाई थीं, वहां भी उसे सपा नहीं, बल्कि बसपा के हाथों हार मिली। ये सीटें मेरठ और अलीगढ़ थीं। हालांकि, इस बार भाजपा ने इन सीटों पर भी कब्जा जमा लिया। 2017 में समाजवादी पार्टी का हाल ये था कि महज तीन सीटों पर ही उसके प्रत्याशी दूसरे स्थान पर रहे थे, बाकी सभी सपा प्रत्याशी तीसरे या चौथे स्थान पर रहे थे।
देखा जाये तो 2017 में नगर निगम के चुनाव में करारी हार के बावजूद समाजवादी पार्टी ने सबक नहीं लिया। चुनाव प्रचार के दौरान ऐसा लगा मानो सपा ने पहले ही हार स्वीकार कर ली। एक तरफ जहां सीएम योगी ने निकाय चुनावों में पूरी ताकत झोंक दी, तो वहीं समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव शुभ मुहूर्त का इंतजार करते रहे। वह जब चुनाव प्रचार के लिए मैदान में उतरे तब तक सपा का किला ढह चुका था। न अखिलेश की चुनावी रैलियों का कोई असर दिखा और न ही डिंपल यादव के रोड शो का। बल्कि जहां-जहां अखिलेश और डिंपल ने प्रचार किया, वहां सपा को और भी करारी हार का सामना करना पड़ा। इसके अलावा योगी सरकार द्वारा प्रदेश में बड़े पैमाने पर किए गए विकास कार्यों का मजाक उड़ाना, उन्हें अपना बताना और माफिया के प्रति सॉफ्ट रुख दिखाना भी अखिलेश को महंगा पड़ा। अखिलेश के इन कृत्यों के चलते प्रदेश की जनता ने उन्हें पूरी तरह नकार दिया।
इस बार, पहली बार बने शाहजहांपुर में भी कमल ने कमाल कर दिया। यहां भी पहला नागरिक बनने का गौरव भाजपा उम्मीदवार अर्चना वर्मा को मिला। हम आपको बता दें कि भारतीय जनता पार्टी ने यूपी की सभी 17 सीटों पर प्रत्याशी उतारे थे। इनमें से कानपुर, बरेली व मुरादाबाद में भाजपा ने निवर्तमान महापौर पर ही दांव लगाया था, शेष सभी सीटों पर नए कार्यकर्ताओं को चुनाव मैदान में उतारा था। यह भारतीय जनता पार्टी और योगी के प्रति आमजन का विश्वास है कि पार्टी के चार प्रत्याशियों ने दूसरी बार महापौर बनने का गौरव हासिल किया। कानपुर से प्रमिला पांडेय, मुरादाबाद से विनोद अग्रवाल और बरेली से उमेश गौतम अनवरत दूसरी बार महापौर बने, जबकि हरिकांत अहलूवालिया इसके पहले भी मेरठ के महापौर रह चुके हैं। झांसी में भाजपा के बिहारी लाल ने सबसे पहले जीत हासिल की। उन्हें कुल 123503 वोट मिले। वहां लड़ने वाले अन्य प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई।
हम आपको यह भी बता दें कि सीएम योगी आदित्यनाथ ने नगर निकाय चुनाव में कुल 50 रैलियां कीं। योगी आदित्यनाथ ने 9 मंडल के अंतर्गत आने वाली 10 नगर निगम क्षेत्रों में रैली की। पहले चरण में योगी आदित्यनाथ की कुल 28 रैली हुईं। इसमें गोरखपुर में 4, लखनऊ में 3 व वाराणसी में दो स्थानों पर रैली-सम्मेलन में योगी शामिल हुए। पहले चरण के 37 जिलों में 4 मई को मतदान हुआ। दूसरे चरण में सीएम योगी ने 22 रैलियां कीं। इसमें 9 मंडल की सात नगर निगमों के लिए वोट पड़े। यहां अयोध्या नगर निगम के लिए सीएम योगी दो बार पहुंचे। यहां संत सम्मेलन में भी सीएम की उपस्थिति जीत के लिए काफी कारगर रही।
विजेता महापौरों के नामों का जिक्र करें तो आपको बता दें कि लखनऊ से सुषमा खर्कवाल, गोरखपुर से डॉ. मंगलेश श्रीवास्तव, वाराणसी से अशोक तिवारी, प्रयागराज से गणेश चंद्र उमेश केसरवानी, अयोध्या से गिरीश पति त्रिपाठी, कानपुर से प्रमिला पांडेय, अलीगढ़ से प्रशांत सिंघल, मेरठ से हरिकांत अहलूवालिया, झांसी से बिहारी लाल आर्य, शाहजहांपुर से अर्चना वर्मा, सहारनपुर से अजय सिंह, मुरादाबाद से विनोद अग्रवाल, मथुरा-वृंदावन से विनोद अग्रवाल, गाजियाबाद से सुनीता दयाल, बरेली से उमेश गौतम, फिरोजाबाद से कामिनी राठौर और आगरा से हेमलता दिवाक का नाम शामिल है।