
संकलनकर्ता लेखक – कर विशेषज्ञ स्तंभकार एडवोकेट किशन सनमुख़दास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र
गोंदिया – वैश्विक स्तरपर भारत आदि अनादि काल से ही पौराणिक त्योहार, मेलों,धार्मिक उत्सव आस्था के पल मनाने की प्रसिद्ध धरती का स्थान माना जाता है, जिन्हें देखने के लिए पूरी दुनियां के सैलानी उत्साहवर्धक रूप से भारत की यात्रा कर, इन उत्सवों अनमोल लम्हों में शामिल होते हैं। जैसे होली दीपावली गणपति उत्सव नवरात्र उत्सव रक्षाबंधन सहित अनेक त्यौहार सभी भारतीय ही नहीं बल्कि विदेश में बसे मूल भारतीय निवासी और प्रवासी भारतीय सहित हर वह व्यक्ति मानता है, जिसका संबंध पीढ़ियों से किसी न किसी रूप में भारत से रहा है। पिछले कुछ वर्षों से हम देख रहे हैं कि हर भारतीय त्योहार में आजकल दो तारीख़ की तिथि निकलती है, यानें करीब करीब हर त्यौहार मूल रूप से दो दिन मनाया जाता है। किन्हीं नगरों क्षेत्रों राज्यों में एक दिन तो दूसरे दिन अन्य कहीं, क्योंकि हर भारतय धार्मिक मान्यताओं नियमों का पालन करने में दुनियां का सर्वश्रेष्ठ मानवीय जीव है। चूंकि अभी बुधवार दिनांक 30 अगस्त 2023 को रक्षाबंधन है परंतु इस पूरे दिन भद्रा का साया रहेगा, इसलिए कन्फ्यूजन बना हुआ है एक ज्योत्षी के अनुसार, भाई-बहन के प्यार के प्रतीक का त्योहार रक्षाबंधन सावन महीने की पूर्णिमा को मनाया जाता है जो कि बुधवार 30 अगस्त को है लेकिन इस दिन लगभग पूरे दिन भद्रा का साया रहेगा, इसलिये रक्षाबंधन की तिथि को लेकर कन्फ्यूजन हुआ है। मान्यता है कि भद्रा काल मे शुभ कार्य नहीं करने चाहिए। भाई-बहन के प्रतीक का त्योहार रक्षाबंधन सावन महीने की पूर्णिमा को मनाया जाता है जो कि बुधवार 30 अगस्त को है लेकिन इस दिन लगभग पूरे दिन भद्रा का साया रहेगा, इसलिए इस वर्ष रक्षाबंधन दो दिन मनाने के प्रयास लगाए जा रहे हैं 30 और 31 अगस्त 2023 जून के रक्षाबंधन बहन की रक्षा करने का प्रतीक होता है भाई बहन के प्यार और रक्षा के वचन का दिन होता है। इसलिए आज हम मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे राखी महोत्सव 2023, फूलों का तारों का सबका कहना है एक हज़ारों में मेरी बहना है।
साथियों बात अगर हम रक्षाबंधन 2023 मनाने की करेंतो रक्षाबंधन का त्यौहार हिंदू धर्म का ऐसा त्योहार है जिसे भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक माना जाता है, उस दिन भाई अपनी बहन की जीवन भर रक्षा करने का वचन देता है, इस दिन बहने अपने भाई की कलाई पर एक रक्षा सूत्र बांधती हैं, मिठाई खिलाती हैं और भाई की आरती उतारती हैं।इसके बाद भाई अपनी बहन को कुछ तोहफा देकर जिन्दगी भर रक्षा करने का वचन देता है। यह पर्व हर साल बहुत ही पवित्र दिन यानि श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है।इस त्योहार को राखी के नाम से भी जाना जाता है।
साथियों बात अगर हम हिंदुओं के प्रमुख त्योहारों में से एक राखी और सृष्टि में बहनों की करें तो, हिंदू धर्म के पवित्र त्योहारों में से एक और भाई-बहन के पवित्र रिश्ते का प्रतीक राखी का त्यौहार ढेर सारी खुशियां लेकर आता है।रक्षाबंधन शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है रक्षा + बंधन अथार्त् रक्षा का बंधन , यानी इस रक्षा सुत्र को बंध जाने के बाद एक भाई अपनी बहन की रक्षा करने को बाध्य हो जाता है। रक्षाबंधन त्योहार को मनाने की शुरुआत बहुत पौराणिक है ऐसा कहा जाता है कि इस त्योहार को देवी-देवताओं के समय से मनाया जा रहा है। सृष्टि रचनाकर्ता ने धरातल पर मानवीय लिंग स्त्री पुरुष की रचना कर खूबसूरत जीवन और योनियों को आगे बढ़ाने का सृजन किया तो मेरा मानना है धरातल पर भारत ऐसा अग्रणी देश है जहां स्त्रीलिंग का सम्मान सर्वोपरि किया जाने लगा जो हमें वेदो कतेबों ग्रंथों में पढ़ने को मिल रहा है कि बहनों को मां लक्ष्मी मां सरस्वती मां दुर्गे मां काली सहित अनेक देवी स्वरूपों में देखा पूजा जाता है और पीढ़ी दर पीढ़ी यह सम्मान बढ़ता चला गया। परंतु समय का चक्र कुछ ऐसा चला कि मानवीय बुद्धि में बहन बेटियां बोझ के रूप में विस्तृत होती गई? और विनाश काले विपरीत बुद्धि की ओर पीढ़ियां ऐसा बढ़ती चली गई कि हमारे बड़े बुजुर्गों के अनुसार तब का सतयुग अब के कलयुग में परिवर्तित होते गया और सामाजिक कुरीतियों ने घर करते हुए बाल विवाह कन्या भ्रूण हत्या महिलाओं पर घरेलू हिंसा दहेज प्रथा और अब बहन बेटियों के साथ बढ़ते दुष्कर्म की विस्तृतता बढ़ती चली गई है, जिसपर नियंत्रण कर उसे रोकने के लिए देश के कानून कायदे नियमों में संशोधन करते हुए नए कानून बनाए गए, बहनों बेटियों विरोधी कार्यकलाप पर प्रतिबंध लगाया गया है। जिससे अब अपेक्षाकृत स्थिति में सुधार की ओर कदम बढ़ गए हैं।
साथियों बात अगर हम रक्षासूत्र को भद्रा रहित काल में मनाने की करें तो, अच्छे मुहूर्त अथवा भद्रारहित काल में भाई की कलाई में राखी बांधने से भाई को कार्य सिद्धि और विजय प्राप्त होती है, इसलिए हम जानने की कोशिश करेंगे कीक्या होता है भद्राकाल ? शास्त्र के अनुसार जबभद्राकाल प्रारंभ होता है तो इसमें शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं। यहां तक कि यात्रा भी नहीं करनी चाहिए। इसके साथ ही भद्राकाल में राखी बांधनाभी शुभ नहीं माना गया है।मान्यता के अनुसार चंद्रमा की राशि से भद्रा का वास तय किया जाता है। गणना के अनुसार चंद्रमा जब कर्क राशि, सिंह राशि, कुंभ राशि या मीन राशि में होता है। तब भद्रा का वास पृथ्वी में निवास करके मनुष्यों को क्षति पहुंचाती है। वहीं मेष राशि, वृष राशि, मिथुन राशि और वृश्चिक राशि में जब चंद्रमा रहता है तब भद्रा स्वर्गलोक में रहती है एवं देवताओं के कार्यों में विघ्न डालती है। जब चंद्रमा कन्या राशि, तुला राशि, धनु राशि या मकर राशि में होता है तो भद्रा का वास पाताल लोक में माना गया है। भद्रा जिस लोक में रहती है वहीं प्रभावी रहती है। पौराणिक कथा के अनुसार भद्रा भगवान सूर्य नारायण और पत्नी छाया की कन्या व भगवान शनि की बहन है। मान्यता के अनुसार दैत्यों को मारने के लिए भद्रा गर्दभ के मुख और लंबी पूंछ और 3 पैरयुक्त उत्पन्न हुई। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार भद्रा का स्वभाव भी शनि की तरह है। दैनिक पंचांग में भद्रा का विशेष ध्यान रखा जाता है। माना जाता है कि ब्रह्मा जी ने भद्रा को पंचांग में विशेष स्थान प्रदान किया है। जन्म लेते ही भद्रा यज्ञों में विघ्न-बाधा पहुंचाने लगी और मंगल कार्यों में उपद्रव करने लगी तथा सारे जगत को पीड़ा पहुंचाने लगी। उसके स्वभाव को देखकर सूर्यदेव को उसके विवाह की चिंता होने लगी और वे सोचने लगे कि इसका विवाह कैसे होगा? सभी ने सूर्यदेव के विवाह प्रस्ताव को ठुकरा दिया। सूर्यदेव ने ब्रह्माजी से उचित परामर्श मांगा। ब्रह्माजी ने तब विष्टि से कहा कि- ‘भद्रे! बव, बालव, कौलव आदि करणों के अंत में तुम निवास करो तथा जो व्यक्ति तुम्हारे समय में गृह प्रवेश तथा अन्य मांगलिक कार्य करे, तो तुम उन्हीं में विघ्न डालो। जो तुम्हारा आदर न करे, उनका कार्य तुम बिगाड़ देना। इस प्रकार उपदेश देकर ब्रह्माजी अपने लोक चले गए। तब से भद्रा अपने समयमें ही देव दानवमानव समस्त प्राणियों को कष्ट देती हुई घूमने लगी।
साथियों बात अगर हम रक्षाबंधन से संबंधित पौराणिक कथाओं की करें तो, (1)मां संतोषीकी कहानी एक दिन भगवान श्री गणेश जी अपनी बहन मनसा देवी से रक्षा सूत्र बंधवा रहे थे तभी उनके दोनों पुत्र शुभ और लाभ ने देख लिया और इस रस्म के बारे में पूछा तब बगवान श्री गणेश ने इसे एक सुरक्षा कवच बताया, उन्होंने बताया की यह रक्षा सूत्रआशीर्वाद और भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक है।यह सुन कर शुभ और लाभ ने अपने पिता से ज़िद की कि उन्हें एक बहन चाहिए और अपने बच्चों की जिद के आगे हार कर भगवान गणेश ने अपनी शक्तियों से एक ज्योति उत्पन्न की और अपनी दोनों पत्नियों रिद्धि-सिद्धि की आत्मशक्ति के साथ इसे सम्मिलित किया, उस ज्योति से एक कन्या (संतोषी) का जन्म हुआ और दोनों भाइयों को रक्षाबंधन के मौके पर एक बहन मिली(2)मां लक्ष्मी ओर राजा बलि की कहानी।एक बार की बात है जब असुर राजा बलि के दान धर्म से खुश होकर भगवान विष्णु ने उससे वरदान मांगने को कहा तो राजा बलि ने विष्णु भगवान से अपने साथ पाताल लोक में चलने को कहा और उनके साथ वही रह जाने का वरदान मांगा. तब विष्णु भगवान उनके साथ बैकुंठ धाम को छोड़ कर पाताल लोक चले गए। बैकुंठ में माता लक्ष्मी अकेली पड़ गईं और भगवान विष्णु को दोबारा वैकुंठ लाने के लिए अनेक प्रयास करने लगीं। फिर एक दिन मां लक्ष्मी राजा बलि के यहां एक गरीब महिला का रूप धरण कर के रहने लगीं। जब मां एक दिन रोने लगी तब राजा बलि ने उनसे रोने का करण पूछा, मां ने बताया कि उनका कोई भाई नहीं है इसलिए वे उदास हैं।ऐसे में राजा बलि ने उनका भाई बनकर उनकी इच्छा पूरी की और माता लक्ष्मी ने राजा बलि की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधा। फिर राजा बलि ने उनसे इस पवित्र मौके पर कुछ मांगने को कहा तो मां लक्ष्मी ने विष्णु जी को अपने वर के रूप में मांग लिया और इस तरह श्री विष्णु भगवान बैकुंठ धाम वापस आए।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर इसका विश्लेषण करेंगे तो हम पाएंगे कि भद्रा के साए में रक्षाबंधनमहोत्सव 2023 – लाडली बहनों आज तुम्हारा दिन है।राखी महोत्सव 2023 – फूलों का तारों का सबका कहना है, एक हज़ारों में मेरी बहना है।मेरी लाडली बहनों, देख सकता हूं मैं कुछ भी होते हुए, नहीं मैं नहीं देख सकता तुझको रोते हुए।