
लेखक – कर विशेषज्ञ स्तंभकार कानूनी लेखक चिंतक कवि एडवोकेट किशन सनमुख़दास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र
घर के बहुत अर्जेंट काम रहते हैं
रिश्तेदारी में भी आनाजाना लगा रहता है
हम सब हमाम में वो हैं सेटिंग चलती है
रोब जमानें कहता हूं साहब की केबिन में हूं
शासकीय कर्मचारी हूं निजी काम बहुत रहते हैं
चालू ऑफिस में छुट्टी करता हूं सेटिंग है
मशीन में अंगूठा भी लगता है डिजिटल है
अब्सेंट रहता हूं पर हाजरी लगती है
टेबल पर जानबूझकर फाइलें फैला देता हूं
बाजू वाला बोल देता है बाबू राउंडपर हैं
साहब भी कहता है मैं कर्तव्यवादी कर्मचारी हूं
रोब जमानें कहता हूं साहब की केबिन में हूं
मैं अकेला नहीं सब करतेहैं सेटिंग चलती है
साहब ख़ुद भी करते हैं झूठे राउंड चलते हैं
किसी को पता नहीं चलता सब समझते हैं
रोब जमानें कहता हूं साहब की केबिन में हूं
सरप्राइस चेकिंग में टांग भी फंसती है
फ़िर भी धीरे से सेटिंग होती है
जनता को दिखाने बोगस केस होते हैं
रोब जमानें कहता हूं साहब की केबिन में हूं