हर राजनीतिक पार्टी और नेता को जनता जनार्दन द्वारा वोटों के माध्यम से गुस्सा व्यक्त करने से खौफ़ रहना समय की मांग – एडवोकेट किशन भावनानी

संकलनकर्ता लेखक – कर विशेषज्ञ स्तंभकार एडवोकेट किशन सनमुख़दास भावनानी गोंदिया महाराष्ट्र
गोंदिया – वैश्विक स्तरपर भारत को यूंही बौद्धिक क्षमता की खान वाले देश की संज्ञा नहीं दी गई है, क्योंकि अगर हम वैश्विक कारपोरेट जगत पर नजर डालें तो अनेक प्रमुख पदों पर भारतीय मूल, प्रवासी भारतीय को देखेंगे। उसी तरह अनेकों देशों के मंत्रिमंडल में भी मूल भारतीयों को देखा जा सकता है हालांकि भारतीयों पर सैकड़ों वर्ष राज करने वाले देश पर भी आज मूल भारतीय ही राज कर रहा है। अब हम देख रहे हैं कि भारतीय यहीं तक सीमित नहीं रह रहे अब वह बौद्धिक कुछल जनता जनार्दन का रोल भी अदा कर रहे हैं। गए वह दिन! जब बूथ कैपचरिंग, डराना धमकाना, अपहरण कर वोटिंग करवाई जाती थी। अब ये तो पब्लिक है सब जानती है ये तो पब्लिक है वाली जनता का रोल अदा करते हैं और वोटों केमाध्यम से अपना गुस्सा व्यक्त करना भी सीख गए हैं। इसीलिए अब हर राजनीतिक दल और नेता को इसपर मंथन कर अपनी छवि उज्जवल कर, कितने परसेंट से हटाने पर मंथन करना होगा। चूंकि दिनांक 13 मई 2023 को एक राज्य में इसी पर्सेंट वालीछवि सरकार को निगल गई और हिजाब, अजान, मुस्लिम आरक्षण समाप्त, बजरंगबली, द केरेला स्टोरी, दशकों पूर्व का पचासी परसेंट मुद्दा सहित सभी मुद्दों पर, 40 परसेंट का बुलडोजर भारी पड़ा और जनता ने सत्ता कथित 40 पर्सेंट के चलते अपना गुस्सा जताया तो, जीती हुई पार्टी को 136, हारी पार्टी को 64 सीटों तक सिमटा दिया। इसलिए अब पार्टी की उच्चस्तर पर टॉप जोड़ी को मिलकर देश के 13 राज्यों में जहां उनकी सरकार है, जिसमें कुछ राज्यों में इसी साल के अंत में चुनाव होने वाले हैं, सहित सभी राज्यों पर परसेंटों के बारे में नजर रखनी होगी क्योंकि इसका प्रभाव मिशन 2024 इलेक्शन पर भी पढ़ना निश्चित है। इसलिए आज हम इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में उपलब्ध जानकारी के सहयोग से इस आर्टिकल के माध्यम से चर्चा करेंगे।
साथियों बात अगर हम कार्यपालिका से जनता जनार्दन की चिड़ या गुस्से नें सरकार को जमींदरोज़ करने की करें तो, हमने 13 मई 2023 को आए चुनावी परिणाम में यह देखें। मैंने खुद ने पिछले कुछ दिनों से टीवी चैनलों पर आ रही ग्राउंडरिपोर्टिंग, जीरो रिपोर्टिंग देखकर उसका विश्लेषण किया तो अनेक लोग कार्यपालिका के भ्रष्टाचार से तंग नजर आए। हम अगर अपने राज्यों में देखेंगे तो पंचायत समिति कार्यालय से लेकर पटवारी तक, तहसील कार्यालय से लेकर कलेक्टर ऑफिस तक अनेकों चक्कर लगाने पड़ते हैं और हरे गुलाबी की चाय पानी चलानी पड़ती है, इस पूरी चैनल को देखें तो हर एक हितधारक अपनी तनख्वाह से कहीं अधिक अपटूडेट, मकान फ्लैट, उच्चस्तर जीवन स्तर लक्झरी देखने को मिलता है जिसका संज्ञान अब सरकारों से लेकर पार्टी के हाईकमान और आला अफसरों से लेकर हाईकमान नेताओं को लेना जरूरी हो गया है। वही भ्रष्टाचार रूपी जहर दीमक के बारे में संबोधन केवल शब्दों और वाक्यों तक ही सीमित होकर रह जाएगा और महसूस तब होगा जब सरकार ज़मीदरोज़ हो जाएगी और भ्रष्टाचार के विरोध में किया गया संबोधन का वज़न अपने आप कम हो जाएगा।
साथियों बात अगर हम 13 मई 2023 को घोषित चुनावी राज्य के चुनावी परिणामों में हारी पार्टी के कारणों की करें तो मेरा मानना है अनेक मुद्दों में से एक महत्वपूर्ण मुद्दा सरकार की 40 पर्सेंट कमीशन वाली छवि भी हो सकती है इसको लेकर चुनावी सभाओं में, 40 परसेंट सरकार को 40 परसेंट वोट ही मिलेंगे, कमीशन सरकार रेट कार्ड, डेली झूठ बेंगलुरु लूट, नौकरी और तबादलों में घूस 40 पर्सेंट सहित अनेकों जुमले कहे गए, सत्ताधारी पार्टी को भ्रष्टाचार के आरोपों ने पहुंचाया नुकसान,  ये मुद्दा पूरे चुनाव में हावी रहा। चुनाव से कुछ समय पहले ही पार्टी के एक विधायक के बेटे को रंगे हाथों घूस लेते हुए पकड़ा गया था। इसके चलते हारी पार्टी के विधायक को भी जेल जाना पड़ा। एक ठेकेदार ने सरकार पर 40 प्रतिशत कमिशनखोरी का आरोप लगाते हुए फांसी लगा ली थी। जीती पार्टी ने इस मुद्दे को पूरे चुनाव में जोरशोर से उठाया। युवा नेता से लेकर अध्यक्ष और युवा नेत्री तक ने इस मुद्दे को खूब भुनाया। जनता के बीच हारी पार्टी की छवि धुमिल हुई और पार्टी को बड़ा नुकसान उठाना पड़ा। हारी पार्टी की हार के पीछे अहम वजह भ्रष्टाचार का मुद्दा रहा। जीती पार्टी ने हारी पार्टी के खिलाफ शुरू से ही ’40 फीसदी पे-सीएम करप्शन का एजेंडा सेट किया और ये धीरे-धीरे बड़ा मुद्दा बन गया। करप्शन के मुद्दे पर ही मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा तो  स्टेट कॉन्ट्रैक्टर एसोसिएशन ने पीएम तक से शिकायत डाली थी। हारी पार्टी के लिए यह मुद्दा चुनाव में भी गले की फांस बना रहा और पार्टी इसकी काट नहीं खोज सकी। राज्य में पार्टी की हार की बड़ी वजह सत्ता विरोधी लहर की काट नहीं तलाश पाना भी रहा है। हारी पार्टी के सत्ता में रहने की वजह से उसके खिलाफ लोगों में नाराजगी थी। पार्टी के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर हावी रही, जिससे निपटने में पार्टी पूरी तरह से असफल रही। कॉन्ट्रैक्टर्स कमीशनखोरी के अलावा सरकार पर कई और तरह के भ्रष्टाचार के भी आरोप लगे, जिन्हें प्रचार में जीती पार्टी ने खूब भुनाया। इसमें मठ से 30 फीसदी की रिश्वतखोरी और स्कूलों के नाम पररिश्वतखोरी जैसे आरोप शामिल थे। इसके अलावा केएसडीएल घोटाला और गुड़ निर्यात घोटाले ने भी सरकार की मुश्किलें बढ़ाईं।
साथियों बात अगर हम चुनाव परिणामों में सफल और असफल पार्टी के वोट प्रतिशत और सीटों की करें तो, इस चुनावी राज्य में 2004, 2008 और फिर 2018 में किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला था। 2013 में जीती पार्टी ने 122 सीटें जीतकर सरकार बनाई थी। सूबे में मुख्य लड़ाई लंबे समय से वर्तमान दोनों के बीच ही रही है। जीती पार्टी ने कई बार पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाई है, जबकि हारी पार्टी को कभी भी पूर्ण बहुमत नहीं मिला। इस बार भी कुछ ऐसा ही हुआ। जीती पार्टी-135, हारी पार्टी 65जेडीएस 19 अन्य04
साथियों बात अगर हम इस रिजल्ट का प्रभाव अन्य राज्यों के चुनाव और 2024 पर पढ़ने की करें तो, इस साल कर्नाटक के बाद अब पांच अन्य राज्यों में चुनाव होने हैं। इनमें राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, मिजोरम और तेलंगाना शामिल है। इसके अलावा अगले साल यानी 2024 में लोकसभा चुनाव होने हैं। इसके बाद सात राज्यों में चुनाव होने हैं। कुल मिलाकर अगले दो सालों में लोकसभा के साथ-साथ 13 बड़े राज्यों के चुनाव होने हैं। इनमें कई दक्षिण के राज्य भी हैं। इसलिए हारी पार्टी के लिए कर्नाटक की हार को बड़ा झटका माना जा रहा है। वहीं, मुश्किलों में घिरी जीती पार्टी के लिए जीवनदान साबित हुई।
अतः अगर हम उपरोक्त पूरे विवरण का अध्ययन कर उसका विश्लेषण करें तो हम पाएंगे कि पे सीएम करप्शन , 40 परसेंट के मुद्दे का चला बुलडोजर।कार्यपालिका में टॉपअप से बॉटमअप तक छिपी पर्सेंट मलाई पर हाईकमान द्वारा मंथन करना समय की मांग।हर राजनीतिक पार्टी और नेता को जनता जनार्दन द्वारा वोटों के माध्यम से गुस्सा व्यक्त करने खौफ़ रहना समय की मांग है।

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