
पंकज कुमार मिश्रा मीडिया पैनलिस्ट शिक्षक एवं पत्रकार केराकत जौनपुर
वाराणसी जिले में कैथी के निकट प्रसिद्ध शिव मंदिर जहां अपनी मान्यताओं के लिए प्रसिद्ध है जो केंद्रीय मंत्री डॉक्टर महेंद्र नाथ पांडे और आयुष राज्य मंत्री डॉ दयाशंकर मिश्र दयालु के अथक परिश्रम से अब पर्यटन का भी मुख्य केंद्र बना है। मार्कण्डेय महादेव धाम कैथी मंदिर क्षेत्र का सबसे प्रमुख मंदिर है, जोकि भगवान शिव को समर्पित है और एक छोटे से कुंड में प्राण प्रतिष्ठित शिवलिंग अवतरित है। किंवदंतियों के अनुसार यहां भगवान शिव ने अल्पायु ऋषि मार्कण्डेय को अल्पायु से वरदान देकर बचाया था । बाद ने अनुष्ठान और आयोजन कर यहां खुद महादेव प्रगट हुए, शिव जहां प्रकट हुए वहां अब शिवलिंग है । मंदिर के अंदर एक चमत्कारी शिवलिंग और कई छोटे मंदिर हैं जो अन्य देवताओं को समर्पित हैं। माना जाता है कि इस धाम में पवित्र मन से मांगी हर मुराद पूरी होती है, और इसलिए शिवरात्रि या सावन जैसे अवसरों पर यहां भक्तों का तांता लगा रहता है। यहां स्थित शिवलिंग के संदर्भ में यह मान्यता है कि शिवलिंग सिद्ध है। महादेव पर लोगों की आस्था और भी प्रगाढ़ होती जा रही है। भक्तों की आस्था देख कर मंदिर को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया गया है। इसके अलावा मंदिर परिसर का सौंदर्यीकरण भी कराया गया है। शिवलिंग पर चढाये जल को लाँघा नही जाता और शिवलिंग की परिक्रमा आधी की जाती है । शिवलिंग पर अर्पित नैवेद्य भी नहीं खाया जाता उसे गऊ वंश को खिला दिया जाता है क्योंकि उनमें ही इसकी शक्ति को सहने की क्षमता होती है । भारत का रेडियोएक्टिविटी मैप उठा ले हैरान हो जायेंगे भारत सरकार के न्युक्लियर रियेक्टर के अलावा सभी ज्योतिर्लिंगो के स्थानों पर सबसे ज्यादा रेडियेशन पाया जाता है ! शिवलिंग ओर कुछ नहीं बल्कि न्युक्लियर रिएक्टर्स ही तो है तभी तो उस पर जल चढाया जाता है ताकि वो शांत रहे , महादेव के सभी प्रिय पदार्थ जैसे कि बिल्वपत्र, आक, धतूरा, गुड़हल, आदि सभी न्युक्लियर एनर्जी सोखने वाले हैं, शिवलिंग पर चढा पानी भी रिएक्टिव हो जाता है इसलिए तो जल निकासी नलिका को लाँघा नही जाता । भाभा एटाॅमिक रिएक्टर का डिजाइन भी शिवलिंग की तरह ही है, शिवलिंग पर चढाया जल नदी के बहते जल के साथ मिलकर औषधि का रूप ले लेता है, तभी तो हमारे पूर्वज हम लोगों से कहते थे कि “महादेव शिवशंकर” अगर नाराज हो जायेंगे तो प्रलय आ जायेगी ,ध्यान दें कि हमारी परम्पराओं के पीछे कितना गहन विज्ञान छिपा हुआ है !
जिस संस्कृति की कोख से हमनें जनम लिया वो तो चिर सनातन है ! विज्ञान को परम्पराओं का जामा इसलिए पहनाया गया ताकि वो प्रचलन बन जाए और हम भारतवासी सदा वैज्ञानिक जीवन जीते रहे…
आपको ये जानकर आश्चर्य होगा कि भारत में ऐसे महत्वपूर्ण शिव मंदिर है जो “केदारनाथ” से लेकर “रामेश्वरम” तक एक ही सीधी रेखा में बनाये गए हैं , आश्चर्य है कि हमारे पूर्वजो के पास ऐसा कैसा विज्ञान और तकनीक थी जिसे हम आज तक नहीं समझ पाये ? उत्तराखंड का “श्री केदारनाथ” तेलंगाना का “कालेश्वरम” आंध्रप्रदेश का “कालहस्ती” तमिलनाडु का “एकंबरेश्वर” चिदंबरम और अंततः “रामेश्वरम” मंदिरो को 79°E 41’54” लॉन्गिट्यूड की भोगोलिक सीधी रेखा में बनाया गया है । यह सारे मंदिर प्रकृति के 5 तत्वों में लिंग की अभिव्यक्ति का प्रतिनिधित्व करते हैं जिसे हम आम भाषा में पंचभूत कहते हैं, पंचभूत यानि पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, और अंतरिक्ष, इन्हीं पाँच तत्वों के आधार पर इन पाँच शिवलिगों को प्रतिष्ठापित किया गया है ! जल का प्रतिनिधित्व तिरूवनैकवल मंदिर में है ,आग का प्रतिनिधित्व तिरूवन्नमलई में है , हवा का प्रतिनिधित्व कालाहस्ती में है, पृथ्वी का प्रतिनिधित्व कांचीपुरम में है, और अंत में अंतरिक्ष का प्रतिनिधित्व चिदंबरम मंदिर में है, वास्तु -विज्ञान – वेद के अदभुत समागम को दर्शाते हैं ये पाँच मंदिर । भौगोलिक रूप से भी इन मंदिरो में विशेषता पाई जाती है, इन पाँच मंदिरो को योग विज्ञान के अनुसार बनाया गया था और एक दूसरे के साथ एक निश्चित भौगोलिक संरेखण में रखा गया है, इस के पीछे निश्चित ही कोई विज्ञान होगा जो मनुष्य के शरीर पर प्रभाव करता होगा । इन मंदिरो का करीब पाँच हजार वर्ष पूर्व निर्माण किया गया था जब उन स्थानों के अक्षांश और देशांतर को मापने के लिए कोई उपग्रह तकनीक उपलब्ध ही नहीं था तो फिर कैसे इतने सटीक रूप से पाँच मंदिरो को प्रतिष्ठापित किया गया था ? उत्तर भगवान ही जाने । केदारनाथ और रामेश्वरम के बीच 2383 किमी की दूरी है लेकिन ये सारे मंदिर लगभग एक ही समानांतर रेखा में पडते हैं ! आखिर हजारों वर्ष पूर्व किस तकनीक का उपयोग कर इन मंदिरो को समानांतर रेखा में बनाया गया है यह आज तक रहस्य ही है . श्रीकालहस्ती मंदिर में टिमटिमाते दीपक से पता चलता है वह “वायु लिंग” है तिरूवन्निका मंदिर के अंदरुनी पठार में जल बसंत से पता चलता है कि यह “जल लिंग” है . अन्नामलाई पहाडी पर विशाल दीपक से पता चलता है कि वह “अग्नि लिंग” है।कांचीपुरम के रेत के स्वयंभू लिंग से पता चलता है कि वह “पृथ्वी लिंग”है ।और चिदंबरम की निराकार अवस्था से भगवान की निराकारता यानि “आकाश तत्व” का पता चलता है । अब यह आश्चर्य की बात नहीं तो और क्या है कि ब्रह्मांड के पाँच तत्वों का प्रतिनिधित्व करने वाले पाँच लिगों को एक समान रेखा में सदियों पूर्व ही प्रतिष्ठापित किया गया है ! हमें हमारे पूर्वजो के ज्ञान और बुद्धिमत्ता पर गर्व होना चाहिए कि उनके पास ऐसी विज्ञान और तकनीक थी जिसे आधुनिक विज्ञान भी नहीं भेद पाया है, माना जाता है कि केवल यह पाँच मंदिर ही नहीं अपितु इसी रेखा में अनेक मंदिर होंगे जो “केदारनाथ” से “रामेश्वरम” तक सीधी रेखा में पडते हैं, इस रेखा को “शिवशक्ति अक्श रेखा” भी कहा जाता है ! संभवतया यह सारे मंदिर “कैलाश” को ध्यान में रखते हुए बनाये गये हो जो 81.3119° E में पडता है !? उत्तर शिवजी ही जाने ।कमाल की बात “महाकाल” से “शिव ज्योतिर्लिंगों के बीच कैसा संबंध है ?यह मंदिर रहस्यमयी गाथाओं को समेटे हुए है। ऐसा विश्वास है कि यहां स्थित शिवलिंग कहीं से लाया नहीं गया है अपितु बाबा भोलेशंकर यहां स्वयं विराजमान हुए हैं। मार्कण्डेय महादेव मंदिर के सामने पूर्व दिशा में मां गंगा अविरल प्रवाह के साथ बह रही जहां रहस्यमयी ऐतिहासिक कुंड भी है जिसमें हमेशा जल रहता है। मान्यता है कि कुंड में स्नान करने से बुखार और चर्म रोगियों को लाभ मिलता है। यहां तीन दिशाओं से नदियों का संगम भी है जिसमें गोमती आकर मां गंगा में समाहित हो जाती है ।