जीएसटी बचत के बाद, Diwali से पहले देश को एक और बड़ा Gift देने जा रही है मोदी सरकार

नवरात्रि के पावन अवसर पर मोदी सरकार ने जनता को ‘जीएसटी बचत’ का उपहार देकर आर्थिक मोर्चे पर एक सकारात्मक संदेश दिया है। लेकिन यह तो बस शुरुआत है क्योंकि नीति आयोग के सीईओ बीवीआर सुब्रह्मण्यम के ताज़ा बयान से संकेत मिल रहे हैं कि दीवाली से पहले देश को एक और बड़ा आर्थिक तोहफा मिलने वाला है, जो भारतीय विनिर्माण और व्यापार क्षेत्र की दिशा ही बदल सकता है।

हम आपको बता दें कि सुब्रह्मण्यम ने स्पष्ट किया है कि भारत को अब वैश्विक प्रतिस्पर्धा में टिकने के लिए अपने विनिर्माण क्षेत्र में गहरे संरचनात्मक सुधारों की ज़रूरत है। नई राष्ट्रीय विनिर्माण नीति (NMP) इसी दिशा में एक निर्णायक कदम साबित हो सकती है। उनका संकेत था कि भारत को अब टैरिफ (शुल्क) कम करने और गैर-टैरिफ बाधाओं को हटाने की दिशा में साहसिक फैसले लेने होंगे। इसका मतलब है कि सरकार एक ऐसी खुली नीति पर काम कर रही है, जो ‘मेक इन इंडिया’ को केवल नारा नहीं, बल्कि एक व्यवहारिक औद्योगिक क्रांति का रूप देगी।

हम आपको बता दें कि भारत का विनिर्माण क्षेत्र अभी भी मध्यवर्ती उत्पादों की कमी से जूझ रहा है। नई नीति में क्लस्टर आधारित औद्योगिक ढांचा, विश्वस्तरीय सप्लाई चेन और निर्यातोन्मुख उत्पादन को प्राथमिकता मिलने के संकेत हैं। यह वही मॉडल है जिसने चीन, वियतनाम और दक्षिण कोरिया को वैश्विक मैन्युफैक्चरिंग हब बनाया।

नीति आयोग प्रमुख ने खुलासा किया कि राजीव गौबा समिति ने सरकार को अगली पीढ़ी के सुधारों पर अपनी पहली रिपोर्ट सौंप दी है। यह वही समिति है जो ‘विकसित भारत’ के लक्ष्यों को गति देने के लिए बनाई गई थी। संकेत साफ हैं— GST 2.0 के बाद अब सरकार ट्रेड, टैक्सेशन और इंडस्ट्रियल पॉलिसी में बड़े बदलावों की तैयारी में है। संभव है कि दीवाली से पहले इन सुधारों की घोषणा हो, जो “Ease of Doing Business”, निर्यात प्रतिस्पर्धा और एमएसएमई सशक्तिकरण को एक साथ आगे बढ़ाएगी।

देखा जाये तो यह सुधार भारत के लघु एवं मध्यम उद्योगों (MSMEs) के लिए गेम-चेंजर साबित हो सकते हैं। नीति आयोग की रिपोर्ट भी यही कहती है कि भारत को अब R&D निवेश, ग्रीन टेक्नोलॉजी और डिज़ाइन-ड्रिवन वैल्यू चेन में प्रवेश करना होगा।

हम आपको यह भी बता दें कि भारत और अमेरिका के बीच एक महत्वपूर्ण ट्रेड डील की बातचीत अंतिम चरण में है। अगर यह समझौता नवंबर से पहले हो जाता है, तो यह न केवल अमेरिकी टैरिफ से राहत देगा बल्कि भारत को अपने सबसे बड़े व्यापारिक साझेदार के साथ अधिक स्थायी संबंध प्रदान करेगा। वर्तमान में $131.84 बिलियन का द्विपक्षीय व्यापार भारत के लिए गौरव का विषय है, लेकिन यह तभी स्थायी रह सकता है जब अमेरिकी 25% अतिरिक्त ड्यूटी जैसी बाधाएँ हटें।

नीति आयोग की ‘ट्रेड वॉच क्वार्टरली’ रिपोर्ट बताती है कि भारत का व्यापार वर्ष 2024-25 की चौथी तिमाही में 2.2% बढ़ा है। यह धीमी लेकिन स्थिर प्रगति है। जहाँ अमेरिका और उत्तर अमेरिका के बाज़ारों में भारत की हिस्सेदारी बढ़ी है, वहीं यूरोप, खाड़ी और ASEAN क्षेत्र में थोड़ी गिरावट आई है। सकारात्मक पक्ष यह है कि फार्मा, इलेक्ट्रिकल मशीनरी और अनाज जैसे क्षेत्रों में भारत ने मजबूत प्रदर्शन किया है। दूसरी ओर, चीन से इलेक्ट्रॉनिक्स आयात में वृद्धि यह याद दिलाती है कि आत्मनिर्भर भारत का लक्ष्य अभी अधूरा है।

नीति आयोग के सीईओ बीवीआर सुब्रह्मण्यम ने साथ ही यह भी कहा है कि भारत को चीन सहित अपने पड़ोसियों के साथ मजबूत व्यापारिक संबंध बनाने चाहिए। उन्होंने कहा कि चीन 18,000 अरब अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था है और उसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि पूरा यूरोपीय संघ अपने भीतर 50 प्रतिशत व्यापार करता है, जबकि बांग्लादेश भारत का छठा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है और नेपाल शीर्ष 10 में हुआ करता था। उन्होंने पड़ोसी देशों के साथ व्यापार बढ़ाने की जरूरत बतायी। नीति आयोग के सीईओ ने कहा, ”यह दुर्भाग्य की बात है कि हम एक बहुत ही कठिन भौगोलिक क्षेत्र में हैं। अमेरिका के सबसे बड़े व्यापारिक साझेदार कौन हैं? मेक्सिको और कनाडा। यह स्वाभाविक है। अगर आपके पड़ोसी देशों के साथ मजबूत व्यापारिक व्यवस्थाएं नहीं हैं, तो आप वास्तव में नुकसान में हैं… अगर आप प्रतिस्पर्धी हैं, तो वे आपका सामान खरीदेंगे।” नीति आयोग के सीईओ ने यह भी कहा कि जब दुनिया भर में कारखाने और नौकरियां स्थानांतरित हो रही थीं, तब भारत की जगह वियतनाम ने इस मौके का फायदा उठा लिया।

वैसे भारत ने बीते दशक में बुनियादी ढाँचा, डिजिटल कनेक्टिविटी और कर-संरचना में ऐतिहासिक सुधार किए हैं। अब वक्त है कि भारत वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला का ‘सक्रिय भागीदार’ बने, न कि केवल बाज़ार। नई मैन्युफैक्चरिंग नीति और संभावित सुधार भारत को ‘मेक इन इंडिया’ से आगे बढ़ाकर ‘ट्रेड विद इंडिया’ के नए युग में ले जा सकते हैं।

बहरहाल, देखा जाये तो नवरात्रि में कर-राहत का उपहार जनता के उपभोग और मांग को बढ़ाने की दिशा में उठाया गया अहम कदम जरूर है। लेकिन वास्तविक आर्थिक परिवर्तन तब होगा जब विनिर्माण, व्यापार और निवेश के मोर्चे पर नई नीति लागू होगी। सुब्रह्मण्यम के शब्दों में कहें तो यह केवल सुधार नहीं, बल्कि “मैन्युफैक्चरिंग पुनर्जागरण” की शुरुआत है। दीवाली से पहले यदि सरकार इन सुधारों की घोषणा करती है, तो यह भारत के आर्थिक इतिहास में वह क्षण होगा जब नवरात्रि की आराधना और दीवाली की रोशनी, दोनों मिलकर ‘विकसित भारत’ के नए युग का आरंभ करेंगी।

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