आज शशि थरूर औऱ गुलाब नबी आजाद मोदी का गुणगान कर रहें तो इसकी बड़ी वजह कांग्रेस का ख़ड़यंत्र है जिसमें अच्छे नेताओं को परिवार के लिए रास्ते से हटाना मुख्य रहा। 2004 में जब सोनिया गांधी तकनीकी कारणों और विदेशी मूल के आधार पर प्रधानमंत्री नहीं बन सकीं तब उन्होंने बेटे को येन केन प्रकारेण आगे बढ़ाने का आदेश दिया । ऐसा उन्होंने 1992 में भी किया था और प्रियंका तथा राहुल को तैयार करने का दायित्व पीएम नरसिंह राव को सौंपा था । बुद्धिमान प्रधानमंत्री ने दो महीने बाद दोनों को यह कहते हुए दस जनपथ वापस भेज दिया कि अभी उन्हें काफी योग्यता हासिल करनी पड़ेगी । कांग्रेस भारत की सबसे पुरानी और बड़ी राजनीतिक पार्टी रही है, जिसने देश की आज़ादी से लेकर कई दशकों तक शासन किया। किसी भी पार्टी के लिए सत्ता में बने रहना या सत्ता से बाहर होना, उसकी नीतियों, नेतृत्व और जनसमर्थन पर निर्भर करता है। जब कांग्रेस कमजोर होती है या चुनावों में हारती है, तो उसके विरोधी अक्सर यह कहते हैं कि पार्टी खत्म हो रही है। हालांकि, भारतीय लोकतंत्र में कोई भी पार्टी स्थायी रूप से खत्म नहीं होती, बल्कि समय-समय पर उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। राजनीति में आरोप-प्रत्यारोप आम बात है। जब कोई पार्टी कमजोर होती है, तो उसके विरोधी उसे खत्म मान लेते हैं, लेकिन भारतीय राजनीति में कई बार ऐसा देखा गया है कि जो पार्टी कमजोर दिखती है, वही अगले चुनाव में वापसी कर लेती है। कांग्रेस के साथ भी ऐसा कई बार हुआ है। पहले भी कांग्रेस के पास गुलामनबी आजाद , अशोक गहलौत , कमलनाथ , मनीष तिवारी , आनंद शर्मा आदि के अनेक विकल्प थे । कांग्रेस के पास अच्छे नेताओं की कभी कमी नहीं थी , बस अच्छे नेताओं से मौके छीन लिए गए । तब भी ऐसा ही था आज भी ऐसा ही है । इन्दिरा गांधी के बाद नारायण दत्त तिवारी , अर्जुन सिंह , पीवी नरसिंहराव , शरद पवार , वाई वी चह्वाण , हेमवती नंदन बहुगुणान , प्रणव मुखर्जी , माधवराव सिंधिया , राजेश पायलट आदि अनेक नेता प्रधानमंत्री पद के लिए मौजूद थे । लेकिन पायलट की नौकरी छुड़वाकर राजीव गांधी को लाया गया । दुर्भाग्य से वे भी नहीं रहे और प्रियंका राहुल छोटे थे , राव साहब लाए गए । बाद में अटलजी की सरकार के हारने के बाद जब सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री बनाने के सवाल पर पार्टी टूटने लगी तो मन मारकर मनमोहन सिंह लाए गए । शरीफ आदमी थे अतः सोनिया की खड़ाऊं रखकर और अनभिज्ञ राहुल के इशारे समझकर राज चलाना मजबूरी था ।
दस वर्षों तक मनमोहन सिंह छाया पीएम और एक्सीडेंटल पीएम के अलंकरणों से नवाजे जाते रहे । इतने बुद्धिमान अर्थशास्त्री को उपेक्षा और अपमान के कितने घूंट पीने पड़े , सबको पता है । इसलिए यह कहना कि कांग्रेस खत्म हो रही है, एक अतिशयोक्तिपूर्ण बयान है। राजनीतिक विमर्श में अक्सर भावनात्मक और भड़काऊ बयान दिए जाते हैं, जिनका उद्देश्य जनता की भावनाओं को भड़काना होता है। हमें चाहिए कि हम तथ्यों के आधार पर सोचें, न कि केवल राजनीतिक नारों या आरोपों के आधार पर। आतंकवाद का खात्मा पूरे देश की जीत है, न कि किसी एक पार्टी की हार या जीत। कांग्रेस जैसी पार्टी के लिए जरूरी है कि वह अपने संगठन को मजबूत करे, जनता के मुद्दों को उठाए और सकारात्मक राजनीति करे। वहीं, सरकार और सुरक्षा एजेंसियों को आतंकवाद के खिलाफ लगातार सतर्क रहना चाहिए। दोनों का उद्देश्य देश की सुरक्षा और विकास होना चाहिए, न कि एक-दूसरे को कमजोर या खत्म साबित करना। अंत में, लोकतंत्र में किसी भी पार्टी का कमजोर होना या मजबूत होना, देश के लिए एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। आतंकवाद का खात्मा और राजनीति में बदलाव, दोनों ही देश के हित में हैं। हमें चाहिए कि हम इन मुद्दों को राजनीति से ऊपर उठकर देखें और देशहित को प्राथमिकता दें। बहरहाल 2014 में जब राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने की पूरी तैयारी थी , आधी कैबिनेट भी परिणाम आने से पूर्व तैयार कर ली गई थी , तब मोदी नाम के बनारसी बाबू ने सारा खेल बिगाड़ दिया । गाड़ी पटरी से ऐसी उतरी कि 11 सालों में एक बार भी नहीं चढ़ी । आगे भी बरसों तक कोई उम्मीद दिखाई नहीं दे रही । सरकार के प्रति कांग्रेस की 100 फीसदी नफरत का कारण बीजेपी नहीं , नरेन्द्र मोदी हैं । सोनिया और राहुल को वे फूटी आंखों नहीं सुहाते। दरबार और दरबारी यदि कांग्रेस को बनाने की जरूरत समझते तो खड़गे की जगह शशि थरूर को पार्टी अध्यक्ष बनाते । पर बनाना दरबारी था तो खड़गे को बना दिया । वे राग दरबारी गाने में माहिर हैं ।

पंकज सीबी मिश्रा/राजनीतिक विश्लेषक़ एवं पत्रकार जौनपुर यूपी