
पंकज सीबी मिश्रा/पत्रकार एवं विश्लेषक जौनपुर यूपी
आदिदेव महादेव भूतनाथ का महाशिवरात्रि इस वर्ष 26 फरवरी को शिव-सती विवाह के साथ आयोजित होगी । रुद्रसंहिता में सती खंड के अष्टादशोध्याय के श्लोक संख्या- 20 के अनुसार : अथ चैत्रसिते पक्षे नक्षत्रे भगदैवते। त्रयोदश्यां दिने भानौ निर्गच्छत्स महेश्वर:।। चैत्रशुक्लत्रयोदश्यां नक्षत्रे भगदैवते। सूर्यवारे च यो भक्त्या वीक्षेत भुवि मानवः।। तदैव तस्य पापानि पर्यान्तु हर संक्षयम्। वर्धते विपुलं पुण्यं रोगा नश्यन्तु सर्वश:।। पूरे भारत में समस्त शिवमंदिरों में महाशिवरात्रि पर्व को शिव-पार्वती विवाह की तिथि के रूप में मनाया जा रहा है। हालांकि, यह बात कम ही लोग जानते हैं कि शिव-पार्वती का विवाह फाल्गुन (फरवरी-मार्च) मास में नहीं, बल्कि मार्गशीर्ष माह (नवंबर-दिसंबर) में हुआ माना जाता रहा है । महाशिवरात्रि पर भगवान शिव पहली बार शिवलिंग के रूप में प्रकट हुए थे। हालाकि शिवरात्रि के दिन लोकोक्ति है कि भगवान शिव और पार्वती का विवाह हुआ था तो विवाह का आयोजन होता है , अलग-अलग स्थान में गांव में विभिन्न मंदिरों में शिव बारात निकाली जाती है । शिव पार्वती के विवाह उत्सव का आयोजन किया जाता है, जो की एक सनातनी परंपरा बन चुकी है । यह सनातन को अपने मुख्य धारा में लाने का एक सुंदर प्रयास है।
विद्वानों का मानना है कि शिवलिंग में शिव और पार्वती दोनों समाहित हैं, दोनों ही एक साथ पहली बार इस स्वरूप में प्रकट हुए थे इस कारण महाशिवरात्रि को मनाया जाता है। प्रदेश के राजनीतिक विश्लेषक एवं जनपद के पत्रकार पंकज सीबी मिश्रा ने कहा कि वाराणसी के पावन काशी विश्वनाथ मंदिर में भी महाशिवरात्रि को शिव-पार्वती विवाह की तिथि के रूप में मनाया जाता है। महाशिवरात्रि पर संपूर्ण सनातनी शिव विवाह के रूप में उत्सव मनाते हैं। शिव पुराण के अनुसार, महाशिवरात्रि को शिव विवाह नहीं था अपितु शिवलिंग के रूप में शिव और सती का प्रकटोत्सव था । महाशिवरात्रि मनाने का रहस्य और शिव विवाह का मुहूर्त रहस्य भिन्न-भिन्न है। श्री लिंग पुराण और श्री स्कंद पुराण ने स्पष्ट किया है कि मार्गशीर्ष के महीने में सोमवार के दिन भगवान शंकर पार्वती का विवाह संपन्न हुआ था । दूसरी बात मार्गशीर्ष के महीने में ही जब ब्रह्मा और विष्णु का युद्ध हुआ तब भगवान शंकर उस युद्ध को रोकने के लिए विशाल अग्नि स्तंभ ( शिवलिंग) के रूप में प्रकट हो गए थे। जिसका आदि और अंत न ब्रह्मा ने पाया ना भगवान नारायण ने इसी प्रसंग में झूठ बोलने पर भगवान शंकर ने भैरवनाथ को प्रकट किया । जिन्होंने झूठ बोलने वाले ब्रह्मा जी का पांचवा सर धड़ से अलग कर दिया। तब भगवान शंकर ने अपने अग्निस्तंभ के आकार को छोटा करके शिवलिंग के रूप में परिणत कर दिया।
इस दिन लोग मंदिरों में शिव बारात का भी आयोजन करते हैं, महाशिवरात्रि के एक दिन पूर्व 25 फरवरी की सुबह से थानागद्दी के विभिन्न शिवमंदिरो पर सजावट और रामचरित मानस का पाठ आरंभ कर दिया जाता है । 26 फरवरी को सुबह से मंदिर में पूजा अर्चना व भगवान भोलेनाथ का जलाभिषेक करेंगे।महाशिवरात्रि पर्व के अवसर तिसिया के शिव मंदिर परिसर से भव्य शिव बारात निकाली जायेगी, जो बाजार भ्रमण के बाद देर शाम मंदिर परिसर पहुंचेगी । इसके बाद रात्रि में शिव विवाह और भजन का आयोजन किया जायेगा । इसी उपलक्ष्य में संपूर्ण देश के अलग-अलग स्थान में गांव में विभिन्न मंदिरों में शिव बारात निकाली जाती है । शिव पार्वती के विवाह उत्सव का आयोजन किया जाता है, मान्यता है कि माता पार्वती ने राजा हिमालय के घर पुत्री के रूप में जन्म लिया ।जिसके उन्होंने कठोर तपस्या की और उससे प्रसन्न हुए, जिसके बाद भवगाव शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था । कहते हैं ऐसा जीव नहीं था जो भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह में शामिल ना हुआ हैं।
भोलेनाथ की बारात में भूत-प्रेत, पिशाच, देव, दैत्य, गन्धर्व, नाग, किन्नर, यक्ष, ब्रह्मराक्षस, असुर इत्यादि सभी शामिल थे। साथ ही बारात में शिवजी के गण भी शामिल थे, जैसे कि गणेश्वर शंखकर्ण, कंकराक्ष, विकृत, विशाख, वीरभद्र और अन्य. वहीं बारात के मध्य में श्री हरि विष्णु और और ब्राह्मा जी थे और माता गायत्री, सावित्री, सरस्वती, लक्ष्मी और अन्य पवित्र माताएं उस बारात की शोभा बढ़ा रही थी ।देवराज इंद्र समस्त देवताओं से एवं कुबेर यक्षों एवं गंधर्वों से घिरे चल रहे थे. सप्तर्षियों सहित के साथ ऋषि-मुनि स्वस्ति-गान करते हुए चल रहे थे । इसके अलावा भूत- प्रेतों को सात बारात में कोई भस्म में लिपटा हुआ दिखा रहा था । इस प्रकार नाचते-गाते सभी लोग माता पार्वती के घर की और जा रहे थें । शिवपुराण के रुद्रसंहिता के पर्वतीखण्ड के 35वें अध्याय के श्लोक संख्या 58-60 के अनुसार : सप्ताहे स्मतीते तु दुर्लभेतिशुभे क्षणे लग्नाधिपे च लग्नस्थे चन्द्रे स्वतनयान्विते मुदिते रोहिणीयुक्ते विशुद्धे चन्दरतारके मार्गमासे चन्द्रवारे सर्वदोषविवर्जिते सर्वसद्ग्रहसंसृष्टे असद्ग्रहदृष्टिवर्जिते सदपत्यप्रदे जीवे पतिसौभाग्यदायिनि । अर्थात एक सप्ताह पश्चात दुर्लभ उत्तम शिवयोग आ रहा है, उस लग्न मे स्वयं लग्नेश स्वगृही है। चन्द्रमा भी अपने पुत्रवधु के साथ स्थित रहेगा, साथ ही साथ चन्द्रमा रोहिणी नक्षत्र में होगा, इसीलिए चन्द्र और तारागणों का योग भी उत्तम है। मार्गशीर्ष (अगहन) का महीना है, उसमें भी सर्वदोषविवर्जित चन्द्रवार (सोमवार) का दिन है।
