इसी साल महाकुंभ, नयी दिल्ली रेलवे स्टेशन और उससे पहले हाथरस में ऐसी ही भगदड़ें हुई थीं, जिनमें बड़ी संख्या में मौतें हुईं। इन मौतों का सही आंकड़ा कभी सामने नहीं आता औऱ हम अंधाधुंध नकली हीरो के पीछे भागते है , कभी यह पता नहीं चल पाता कि दोषियों की शिनाख़्त हुई या नहीं, उन्हें सज़ा मिली या नहीं और न ये पता लगता है कि भविष्य में ऐसी दुर्घटनाओं को रोकने के लिए कोई नीति बनाई जाएगी या नहीं। अगर ऐसा होता तो हर दो-चार महीने में भगदड़ के हादसे नहीं होते। बेंगलुरु के चिन्नास्वामी स्टेडियम में बुधवार को रॉयल चैलेंजर्स बेंगलोर का स्वागत कार्यक्रम एक बड़े हादसे का शिकार हो गया। एक तरफ स्टेडियम के भीतर जश्न चल रहा था और दूसरी तरफ स्टेडियम के बाहर भारी भीड़ उमड़ी थी, जिसे संभालने में कांग्रेस का सीएम औऱ उनकी पुलिस नाकाम रही और नतीजा भगदड़ के रूप में सामने आया। इस हादसे में 11 लोगों की जान चली गई। बताया जा रहा है कि 30-35 हजार की क्षमता वाले स्टेडियम में समाने के लिए करीब ढाई-तीन लाख लोग आ गए थे। इस घटना ने एक बार फिर भारत में बड़े आयोजनों में भीड़ प्रबंधन की गंभीर समस्या को उजागर किया है। बेंगलुरू मामले में गनीमत इस बात की है कि यहां कांग्रेस की राज्य सरकार मुंह छिपाती फिर रही है। मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री सब मीडिया के सामने आकर अपनी थेथरई कह रहे हैं, अस्पतालों में पीड़ितों से मिल कर वोट बटोरने में हैं। जबकि हाथरस और प्रयागराज में महाकुंभ में हुई भगदड़ में सरकार का रवैया बिल्कुल साफ रहा पर विपक्ष हाय तौबा मचाता रहा। महाकुंभ में तो असल में कांग्रेस ने अफवाह फैला कर माहौल बिगाड़ने की जी तोड़ कोशिश करी । इस बार भाजपा को कांग्रेस सरकार को घेरने का मौका मिल रहा है, तो वह ज़रा सी भी कसर नहीं छोड़ रही। इससे पहले भी बारिश, लू, ठंड, कुपोषण, इलाज न मिलना, सड़क हादसे, भगदड़ – वजह कोई भी हो सकती है, लेकिन हर साल ऐसे ही किसी बहाने की आड़ में सैकड़ों जिंदगियां अकाल मौत का शिकार होती हैं। ऐसी मौतों पर सरकारों को कितना अफ़सोस होता है, यह तो कहा नहीं जा सकता, अलबत्ता इन पर राजनीति ख़ूब होती है। शायद इसलिए इन्हें रोकने की कोई कोशिश भी नहीं होती। वर्ना बाढ़, बारिश, गर्मी सबकी भविष्यवाणी पहले से मौसम विभाग कर देता है, तो सरकारें उस हिसाब से व्यवस्था कर सकती है ताकि लोगों को कम से कम तकलीफ़ हो। इसी तरह अस्पतालों, सड़कों, सार्वजनिक स्थलों पर व्यवस्था चाक-चौबंद करके हादसों को रोका जा सकता है। अब तो आपदा प्रबंधन विभाग भी है। लेकिन फ़िलहाल देश में आपदा प्रबंधन, आग लगने पर कुआं खोदने की तर्ज पर काम करता है। राज्य सरकार पर घोर लापरवाही के इल्ज़ाम लगाए जा रहे हैं, इस्तीफ़ा मांगा जा रहा है। लोकतंत्र में विपक्ष का रवैया बिल्कुल ऐसा ही होना चाहिए, लेकिन उसे जनता की जान को एक जैसा ही कीमती समझना भी चाहिये। बहरहाल, इस मामले में बैंगलोर हाईकोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेकर गुरुवार को सुनवाई की थी, जिसमें सरकार का पक्ष रखते हुए महाधिवक्ता शशि किरण शेट्टी ने कहा कि राज्य सरकार कोई प्रतिकूल रुख़ नहीं अपना रही है, इसलिए इसे एक दूसरे पर कीचड़ उछालने वाली बात नहीं करनी चाहिए, हमारा ध्यान घटना की जांच करने और कार्रवाई करने पर है। अदालत जो आदेश देगी हम उस अनुसार काम करने को तैयार हैं। मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि जब इस तरह की घटनाएं होती हैं तो एक एसओपी यानी मानक प्रक्रिया होना चाहिए। अदालत ने कर्नाटक क्रिकेट एसोसिएशन और आरसीबी दोनों को नोटिस जारी किया है। मामले की अगली सुनवाई अब संभवतः मंगलवार को होगी।
अब इस देश की जनता को विचार करना होगा कि आखिर वह कब तक अकारण जान दांव पर लगाती रहेगी। आईपीएल के कर्ता-धर्ता जानते हैं कि विराट की शोहरत से मुनाफ़ा कैसे कमाया जा सकता है। उन्होंने मुनाफ़ा कमा लिया, 11 लोगों ने अपनी जान से हाथ धोया और विराट कोहली यह कहकर चलते बने कि उनके पास कहने के लिए शब्द नहीं हैं। वे कम से कम जनता से इतनी अपील ही कर देते कि आगे से ऐसे आयोजनों में जान जोखिम में डालकर शामिल न हों, कम से कम नेताओं से अपील कर देते कि इस हादसे पर न्याय दें, राजनीति न करें। लेकिन विराट कोहली के पास शब्द नहीं हैं, और अरबों की कमाई करने वाले उन जैसे खिलाड़ियों का भी यही हाल होगा, दरअसल इनके पास शब्दों का नहीं, साहस का अकाल है। ख़ैर, अब जनता को ही विचार करना चाहिए कि अपना पैसा और अपनी जान – दोनों देकर भी उसे आख़िर में क्या हासिल हो रहा है। आरसीबी ने पहली बार आईपीएल का खिताब जीता, बहुत अच्छी बात है। लेकिन यह बात मैच ख़त्म होने और विजेता की ट्राॅफ़ी मिलने के साथ ही ख़त्म भी हो जानी चाहिए। मगर मीडिया, सोशल मीडिया इन सबके बनाए चकाचौंध वाले माहौल में आम आदमी अपनी सुधबुध खोकर वही करने लगता है, जो ये चाहते हैं, जिनसे इन्हें मुनाफ़ा होता रहे। विजेता टीम को खुली बस में घुमाना, जीत की परेड निकालना, उनके स्वागत में जश्न रखना, इन सबमें खिलाड़ियों, टीमों और उनके प्रायोजकों को भारी-भरकम कमाई होती है।

पंकज सीबी मिश्रा/राजनीतिक विश्लेषक एवं पत्रकार जौनपुर यूपी