बिहार परिदृश्य से दो सबसे महत्वपूर्ण कैरेक्टर गायब हैं और वह हैं अरविन्द भाई केजरीवाल और नेहा सिंह राठौर। दोनों के दोनों एक ही क्वालिटी के व्यक्तित्व है अर्थात मौकापरस्त। हालांकि एक कांग्रेस को घेरकर सत्ता में कुछ दिन मौज उड़ाया और एक भाजपा को घेर कर यूट्यूब से करोड़ों कमा रही और कांग्रेस के लिए आँखों का काबा बनी हुई है। बतौर तेजूलेश केजरीवाल और नेहा के साथ जमाना चलता है। उन्हें सारी दुनिया बहुत गंभीरता से लेती है। वे जिसके पक्ष में रहेंगे , समझिए कि बयार उसी के पक्ष में बहेगी । राजनीतिक पार्टियों को उनके यहां दौड़ लगानी चाहिए, उनसे प्रार्थना करनी चाहिए कि वे उनके साथ कंधा से कंधा मिलाकर चलें। उन्होंने भारत के लिए देश के अंदर ही नहीं देश के बाहर भी महान कार्य किए हैं। एक नें अरबों का शराब बिकवा दिया दिल्ली में तो एक नें गाना गया कि ’यूपी में काबा ए बाबा ’, फिर गाया ’बिहार में काबा ए चाचा ’। यह गाना जब इंटरनेशनल लेवल पर फेमस हुआ तो ट्रम्प के कान में भी पड़ा उन्होंने समझा कि मैडम उनके प्रेसिडेंट बनने पर काबा का दौरा करेंगी। पाक के साफ स्थान काबा की बात कर रही हैं। भाई साहब ! इसी गीत से खुश होकर ट्रम्प ने भारत सरकार को कई हजार करोड़ का टैरिफ़ मुफ्त में दे दिया। इसी तरह रूस पहले भारत को सस्ता तेल देने को तैयार नहीं था। फिर भारत सरकार ने केजरीवाल के सबसे विश्वनीय प्रतिनिधि सत्येंद्र जैन को गुपचुप रूस भेजा था और उन्होंने पता नहीं कौन सी ब्रांड पुतिन को पिला दी कि वे आधा रेट में तेल देने को तैयार हो गये।
सोच रहा हूँ। उधर बिहार में लोगो नें वकील साहब के फेमस होने के बाद जान लिया कि इस संसार में जूते से अधिक मारक वस्तु कोई नहीं ! कभी कभी गोली और गाली भी उतना प्रभाव नहीं छोड़ते जीतना एक जूता या हवाई चप्पल छोड़ जाता है। सोचिये बिना लाठी चलाये सांप मर जाए और लाठी भी टूटे जाने पर किसी व्यक्ति का नुकसान किस हद तक हो सकता है। यह बात अखिलेश यादव पर सटीक बैठता है क्यूंकि कभी खुले मंच पर मायावती के चरणों में लोट चुके अखिलेश अब सदमे में है क्यूंकि उन्हें पता है कि लाठी तभी टूटती है जब लाठी किसी मजबूत को लगे। लेकिन जूते के केस में ऐसा नहीं है। जूता निशाने पर लगे या न लगे, वह अपना प्रभाव छोड़ देता है। कभी कभी तो जूता उछलता भी नहीं, धारक बस उसे पैर से निकाल कर हाथ में उठा लेता है और इतने भर से उसका काम सिद्ध हो जाता है। है न अद्भुत ! पुराने मारक युद्ध याद कीजिये शब्दभेदी केवल उसी व्यक्ति का नुकसान करता है जिस पर प्रहार किया जाता है। जूते के मामले में यहाँ भी अंतर है। जूता चलता केवल पाखंडी और सेक्यूलर व्यक्ति पर है, पर चोटिल अनेकों ट्विटर एक्स और प्रवक्ताओं को करता है। कभी कभी तो एक जूता करोड़ों नवबौधों को चोट पहुँचा जाता है।
है न कमाल? संसार के सारे अस्त्र शस्त्र एक तरफ और वकील साहब का जूता और मायवाती की जूती एक तरफ। एक नें जड साहब की आत्मा चोटिल कर दी एक नें नेता जी की लाल टोपी को मटियामेट कर डाला हैं। इन जूते जूतियों का जितना तेज प्रहार, उतनी पीड़ा उतनी ही हानि। अस्त्र ऐसा नहीं करता। उससे शरीर को उतना ही नुकसान जितने पास से चलाया गया होता। आपने कभी नहीं सुना होगा कि जूते के प्रहार से फलाँ का हाथ टूट गया, टांग टूट गयी। एक बौद्धिक व्यक्ति दस बज कर बाइस मिनट पर जूता खाने के बाद दस बज कर तेईस मिनट पर मुस्कुराते हुए अरिजीत सिंह का रोमांटिक सांग गा सकता है। पर कहीं मुँह दिखाने लायक़ नहीं बचता। कहने का अर्थ यह है कि जूता शरीर को अल्पतम नुकसान पहुँचाता है। लेकिन उसकी असली चोट आत्मा पर पड़ती है। चोटिल व्यक्ति के हृदय में जूते की याद सदैव बनी रहती है। जूतों की दुनिया में अद्भुत साम्यवाद है। आप देखिये, जूता लेदर का हो या प्लास्टिक का, दस हजार का एडिडास हो या तीन सौ का नेपाली गोल्डस्टार, असर बराबर ही छोड़ता है। ऐसा नहीं कि बजवा चमड़े का वकिली जूता ज्यादा मारक होता है । जूता बाभन का हो या ठाकुर का हो उसकी चोट उसका असर बराबर ही होता है और वह मनुवाद की याद दिलाता है। इस देश में प्रतिदिन अनेकों ठाकुर लोगों को गोली लगती है, अनेक बभनान लाठी डंडों से मार दिए जाते हैं।
इन घटनाओं पर देश कभी नहीं उबलता। लेकिन एक जूता चल जाय तो देश हिल जाता है। सोचिये हर साल एससी एसटी एक्ट की फर्जी घटनाओं में हजारों लोगों के परिजन बीस बीस साल तक कचहरियों में दौड़ते दौड़ते थक कर चुप हो जाते हैं, पर उनके साथ कोई नहीं आता। लेकिन जूते के मामले में देखिये, जूता फेंकने वाले के साथ भी हजारों खड़े हैं और खाने वालों के साथ लाखों… सोचो दोस्त! जूता बहुत बड़ी चीज है कि लोकतंत्र और सनातन ! मान लीजिये कि लोकतंत्र में जूते से अधिक महत्वपूर्ण और कुछ भी नहीं। वह दिन दूर नहीं जब पैर में जूता हो न हो, हर हाथ में जूता अवश्य होगा और थोक के भाव नेता लोग खाएंगे। अभी वर्तमान में कुछ नेता चोरी छिपे भारत से जाकर अमेरिका चीन संबंधों पर काम कर रहे, वे अमेरिका के नेवाडा , बिहार के नेवादा और यूपी के नोएडा को मिला कर ऐसा देश बनाने वाले हैं जिसके पीएम वो ही होंगे। बैलट पेपर से चुनाव होगा और आलू से सोना बनाने वाली मशीन हर घर की महिलाओं को मुफ्त बाटी जाएगी। मारे खुशी के ट्रंप बिहार आएगा और वह नेहा और केजरीवाल जैसे निष्पक्ष नेताओं की तारीफ करते हुए टैरिफ को जीरो कर देगा और जूता को अमेरिका का राष्ट्रीय चिन्ह घोषित कर देगा।

पंकज सीबी मिश्रा, राजनीतिक विश्लेषक एवं पत्रकार जौनपुर