दो साल पहले ही मैंने इस मर्जीकरण का आईडीया दिया था औऱ बकायादा मेरा एक लेख प्राथमिक शिक्षा के ध्वस्तिकरण औऱ अयोग्य मास्टरों के प्राथमिक शिक्षा में चयन नें अभिवाहकों का मोह भंग कर दिया था औऱ ऊपर से कुकुरमुत्ते की तरह उग रहें सरकारी स्कूलों नें कम आफत नहीं बरसाईं । एक किमी के दायरे में चार स्कूल तो क्या छात्र मिलेंगे ! कोई अभिवाहक अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में नहीं भेजना चाहता। सरकार को इसपर कड़े कदम उठाने होंगे औऱ नियम अधिनियम बना कर यह स्पष्ट कर देना होगा कि सरकारी में पढ़ोगे तभी सरकारी जॉब वरना निजी स्कूलों से निजी जॉब ढूढो ! मिडिया में चल रही खबर के अनुसार योगी सरकार कक्षा 8 तक के 5000 से अधिक स्कूलों को मर्ज करने की तैयारी कर ली है। शासन का तर्क है कि इसका विलय करके हर जिले में एक मुख्यमंत्री मॉडल कंपोजिट स्कूल खोला जाएगा पर इससे घंटा फर्क नहीं पड़ने वाला क्यूंकि पढ़ाएंगे वही गुरूजी पान गुटखा वाले ही ना ! जबकि आंकड़ों की माने तो 28 हजार से अधिक प्राथमिक स्कूलों को कंपोजिट में तब्दील करने का कोई फायदा नज़र नहीं मिला ऊपर से मिड डे मिल योजना विभाग नें जमकर वसूली की है स्कूलों से । कम बच्चों वाले सरकारी स्कूलों को नजदीकी स्कूलों में विलय का मैं पुर्ण समर्थन करता हूं क्योकि निजी स्कूल बहुत ज्यादा खुले है औऱ सरकारी उससे भी ज्यादा तो अब इसके बाद एक नियम औऱ लाइये की तीन किमी में एक ही निजी स्कूल औऱ एक ही सरकारी स्कूल संचालित होगा। भारत दुनिया का एकमात्र ऐसा देश है, जहां सरकारी स्कूलों में पढ़ना कोई नही चाहता लेकिन नौकरी सब चाहते है। 19-20 बच्चों के साथ 5-6 अध्यापक का लाखों रूपय तनख्वाह,शिक्षा व पैसे दोनों की बर्बादी है, अध्यापक पढा़ना नही चाहता, बच्चों के माता-पिता सरकारी स्कुल में भेजते नहीं। सरकारी स्कूल से थोड़े न मोक्ष मिलता हैं मोक्ष तो निजी अंग्रेजी स्कूलों में मिलता हैं । शायद यहीं रामराज्य के शासन प्रणाली का मूलमंत्र हैं। यूपी सरकार ने 5,000 से अधिक स्कूलों को बंद करने की प्रक्रिया शुरू कर दी हैं। तर्क दिया जा रहा हैं कि ऐसे स्कूलों का विलय नजदीकी स्कूलों में किया जाएगा। हैं न गज्जब का स्कीम ? शिक्षा के निजीकरण के पूंजीवादी एजेंडे को बहुत है शातिराना अंदाज में आगे बढ़ाया जा रहा हैं। सोशल मिडिया पर प्रसारित आंकड़े बताते हैं कि यूपी में 2014-24 के बीच सरकारी स्कूलों की संख्या में 24.1% कमी आई, जबकि निजी स्कूल 14.9% बढ़े हैं। मतलब समझ रहें हैं न ? सरकार को तेजी से इस दिशा में आगे बढ़ना चाहिए कि हर तीन किलोमीटर के दायरे में एक ही स्कूल हो, पर सरकार उलटी दिशा में चल रहीं हैं। यूपी सरकार का निजी स्कूलों पर पाबंदी ना लगाना सीधे सीधे शिक्षा के अधिकार अधिनियम का उल्लंघन हैं। शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE ) 2009 के तहत, 6-14 वर्ष के प्रत्येक बच्चे को अपने निवास स्थान से 1 किमी (प्राथमिक) और 3 किमी (उच्च प्राथमिक) के दायरे में स्कूल उपलब्ध होना चाहिए। यह गरीब, दलित और वंचित बच्चों की शिक्षा को सीधे तौर पर प्रभावित करेगा। कोई भी व्यक्ति इस बात को समझ सकता हैं कि, गाँवों में बच्चे 3-4 किमी दूर स्कूल नहीं जा सकते, जिससे बच्चों के ड्रॉपआउट का दर बढ़ सकता हैं। और यह ड्रॉपआउट गरीब, वंचित, दलित, आदिवासी का सबसे ज्यादा होगा। कई गांवों में सड़कें खराब हैं, और नदी, नाले या हाईवे जैसी भौगोलिक बाधाएं परिवहन को और कठिन बनाती हैं।सोचिए, यदि एक गांव का सरकारी स्कूल बंद हो जाता है और नया निजी स्कूल 2 किमी दूर है, तो छोटे बच्चे, विशेषकर कक्षा 1-5 के, पैदल चलने में समर्थ हो जाते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में सार्वजनिक परिवहन सीमित है, और अधिकांश परिवार साइकिल या अन्य निजी वाहनों का खर्च नहीं उठा सकते लेकिन निजी स्कूलों के बस की फीस दे लेते है । सरकार ने परिवहन सुविधा देने का कोई ठोस वादा नहीं किया जिसका नुकसान हुआ। स्कूलों का विलय बच्चों और अभिभावकों के मनोबल को बढ़ाएगी। निजी स्कूलों का उत्साह कमजोर करनें के लिए अच्छी मॉनिटरिंग औऱ वाहन व्यवस्था कर सकती है, जिससे शिक्षा के प्रति उत्साह और मनोबल मजबूत होगा। इसके आलावा सांस्कृतिक और सुरक्षा कारणों से, ग्रामीण क्षेत्रों में माता-पिता अपनी बेटियों को दूर के निजी स्कूलों में भेजने से हिचकते हैं, जिससे लड़कियों की ड्रॉपआउट दर बढ़ रही थी अब विलय औऱ अच्छी व्यवस्था से सुधार की आशा है। विदित हो कि इससे पहले राजस्थान और मध्य प्रदेश में स्कूलों का विलय किया गया था और इस विलय से पॉजिटिव फैक्ट सामने आए हैं। स्कूलों के विलय से माता-पिता को बच्चों के लिए परिवहन, यूनिफॉर्म या अन्य खर्चों का अतिरिक्त बोझ नहीं उठाना पड़ेगा, जो उनकी आर्थिक स्थिति के लिए सही है। कम आय वाले परिवारों के बच्चे स्कूल छोड़कर आराम से मजदूरी या घरेलू काम में लग सकते हैं। सरकार को पता हैं कि यूपी में सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले अधिकांश बच्चे दलित, आदिवासी, और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों से हैं। इसलिए यह सरकार स्कूलों का विलय कर उन्हें अब औऱ सक्रिय सुविधाएं देने के मूड में है। एक खास एजेंडे के तहत निजी स्कूलों के समुदायों को व्यवसाई शिक्षा की पहुंच को सीमित कर देना चाहती हैं। जापान में एक बच्चे के लिए वहां की सरकार ट्रेन चला सकती है लेकिन यूपी सरकार 50 बच्चों के लिए स्कूल नहीं चला सकती। क्योंकि ये बच्चें गरीब, दलित, पिछड़े और वंचित तबके से आते हैं। सरकार को समझना चाहिए कि ग्रामीण क्षेत्रों के निजी स्कूल न केवल शिक्षा को व्यवसाय बनाए है अपितु वे लूटपाट केंद्र होते हैं। सरकारी स्कूल सामुदायिक गतिविधियों का भी हिस्सा हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में स्कूल सामुदायिक केंद्र के रूप में काम करते हैं। इनके विलय से सामुदायिक एकता और सहभागिता पर सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। सामाजिक ताना-बाना मजबूत होगा।

पंकज सीबी मिश्रा/राजनीतिक विश्लेषक़ एवं पत्रकार जौनपुर यूपी