समाज में फेमस बनने के दस सॉलिड हथकंडे..!

समाज में आजकल लोकप्रिय बनने की होड़ मची हुई है। फेमस बनना आसान काम नहीं है, आपको नाकों चने चबाना पड़ सकता है पर आज मै बतौर ट्रेनी आपको लोकप्रिय बनने के हथकंडे बताऊंगा। आपको हमेशा चाशनी में लपेटकर मीठे बोल ही बोलने पड़ेंगे। जी हजूरी में पीएचडी करना पड़ेगा और हमेशा सड़े गले लोगो के बारे में अच्‍छा बोलना पड़ेगा। कड़वे बोल एवं गाली केवल मन और सोशल मीडिया पर कोड वर्ड में देनी होगी। आपके सामने कोई भी तोतलेबाज हो आपको अच्‍छा ही बोलना पड़ेगा। नेता-मंत्री-विधायक-सांसद के निजी चमचे बनने के लिए आपको सिर हिलाके यस सर में एमफिल करना पड़ेगा। कभी विरोधी सामने आ जाये तो बताना पड़ता है कि आप तो गजब अच्‍छा काम कर रहे हैं। आप द्वारा कमीशन लिये जाने की तो कोई खबर ही नहीं आती है। दलाली वसूली जैसे काम तो दूसरे लोग कर रहे हैं, लेकिन आपको लेकर जनता में गजब पॉजिटिवनेस है। आपकी ईमानदारी की चर्चा पड़ोसी देश नेपाल तक है , ओली तो ओले – ओले करते थे आपके काम की। ट्रंप और लादेन के बाद आपकी ही ईमानदारी पर बात होती है लोगों में। आपके द्वारा बनवाई गई सड़कें आठ-आठ महीने चल जाती हैं, वहीं शिवपाल ददा द्वारा बनवाई गई सड़कें तीन महीना भी बमुश्किल से टिक पाई। आपके काम, बात-व्‍यवहार एवं ईमानदारी पर कोई सवाल ही नहीं उठा सकता।
एक दिन पूर्व विधायक जी मिल गए तो उनके  मिलने पर भी यही बातें करनी पड़ी कि आप तो गजब काम किए, कोई मुकाबला ही नहीं आपका। हर तरफ बस आपके ही काम की चर्चा है। आपके द्वारा बनवाई गई सड़कें आठ-आठ महीने चल जाती हैं, जबकि सांसद की बनाई सड़क का तीन महीने चलना भी असंभव हो जाता है। लालू के बाद तो बस आपकी ही ईमानदारी के चर्चे हैं। साथ ही लोग बताते हैं कि कितने सज्‍जन आदमी हैं। दो चार लूट और हत्‍या के अलावा आप पर कोई आरोप नहीं है, जबकि सांसद जी पर दर्जनों तरह के आरोप और मामले चल रहे हैं। पता नहीं उन जैसे लोग भी कैसे राजनीति में आ जाते हैं। आप पजामा कुर्ता में एकदम अटल बिहारी वाजपेयी लगते हैं, जबकि सांसद जी जैसे लोग कोट-पैंट पहनकर अपने को अंग्रेज समझते हैं। दो चार बार तारीफ के बाद आप कह सकते हैं कि साहब।! अपना एक ट्रांसफर है या फिर एक ठेका है जरा दिखवा लीजिये। आप लोकप्रिय हैं तो कोई आपका काम रोक भी नहीं सकता। हालांकि लोकप्रियता पुराण इतनी आसान नहीं है।
उसके लिये कुर्बानी देनी पड़ती है। आपको अपनी आत्‍मा को मारना पड़ता है। सच बोलने की ताकत की हत्‍या करनी पड़ती है। सबका प्‍यारा बनने के लिये आपको कड़वे बोल छोड़ने होते हैं। लोकप्रिय होने के लिये चोर को चोर हो बोलने की बजाय यह बताना पड़ता है कि आपके चोरी करने का अंदाज बेहद अलग और निराला है। ऐसी चोरी तो साला सौ-सौ कोस तक दूसरा नहीं कर सकता है। आपने विधायकी में चोरी की जो नई तकनीक इजाद की है, कभी यह किताबों में पढ़ाया जायेगा। आज नहीं तो कल लोग आपको अपना आदर्श मानकर चोरी करेंगे। सांसद जी के डकैती पर रिसर्च चल रही, पर आपकी डकैती से डकैतों को भी आपसे सीखना चाहिये कि अपने बिरादरी से काम कैसे किया जाता है (गलती से जाति लिखा गया है, आप जाति  को सैफई और बिरादरी को विधायकी चमचे पढ़े)। आप सचमुच एक आदर्श चोर हैं, जिसकी पुलिस में भी बहुत इज्‍जत है। आप चोर होते हुए भी पुलिस के साथ बेईमानी नहीं करते हैं। ईमानदारी से बंटवारा करते हैं, जबकि बहुत से बेईमान चोर तो पुलिस को भरोसे में लिये बिना ही चोरी कर लेते हैं।
पुलिस की भी तारीफ करना लोकप्रिय होने की निशानी है। कहना पड़ता है कि दरोगाजी आप जो क्षेत्र में गांजा अफीम बिकवा रहे हैं, उसकी क्‍वालिटी ए-वन है। कोई दूसरा पुलिस वाला तो ऐसी उच्‍च क्‍वालिटी का अफीम भी बिकवा नहीं सकता है। पीने के बाद क्‍या शानदार नशा होता है। दरोगाजी आप तो बेहद ईमानदार हैं, इसलिये आपके थाने की मासिक वसूली केवल पंद्रह लाख है, जबकि फलाने थाने का थानेदार तो लुटेरा है। तीस लाख महीना उठा रहा है। वो हेरोईन वालों से तो छोडि़ये, आटो, बस, अवैध कट्टा और गोली बिक्रेताओं से भी वसूली करता है, जबकि आप उनसे केवल बेगारी और घर के राशन पर ही छोड़ देते हैं। आप जैसा बड़प्‍पन और दिलदारी किसी और पुलिस वाले में तो मिलना ही मुश्किल है। आप से बड़े से बड़े मामलों में एफआईआर दर्ज नहीं करते, वो झूठा एनसीआर दर्ज करके वसूली करता है। आप पुलिस की नाक हैं, और वाे विभाग पर धब्‍बा है। चोर, उचक्‍के, डकैत, पॉकेटमार, मिलावटखोरों की नजर में जो आपकी इज्‍जत है, उसे पाने में दूसरे थानेदारों को सदियां बीत जायेंगी।
इसी तरह आपको सबकी तारीफ करनी पड़ती है, तब कहीं जाकर आपका चार काम-धंधा हो पाता है और आप लोकप्रिय हो पाते हैं। यह आसान काम कतई नहीं होता है। केवल संत प्रवृत्ति का या बेहद बेगैरत व्‍यक्ति ही इस काम को सही ढंग से अंजाम दे पाता है। फिर आपको सिएम पिएम, लंदन टूर और टॉकिंग टोकियो जैसे लाइजनर भी अपनी पार्टी में बुलाते हैं। बचपन से मुझे भी अच्‍छा और लोकप्रिय बनने का शौक है। ये आसान काम नहीं है, लेकिन शौक है तो है। जब हमारे पड़ोसी तेजुआ सड़क पर कूड़ा डाल आता था तो मैं उसको कभी उल्‍टा सीधा नहीं कहता था। तारीफ ही करता था कि देखिये आप कितना अच्‍छा काम कर रहे हैं, लोग सड़क के बीच कूड़ा फेंक कर चले जाते हैं, कुछ बेवकूफ तो डस्‍टबीन में भी डाल आते हैं, और एक आप हैं कि सड़क के किनारे कूड़ा डाल रहे हैं। यह आपका बड़प्‍पन है। वह खुश हो जाता और एक दिन चारा चोर बिहार छोड़ बोलकर आठवीं फेल हो गया । हालांकि उसका बड़का भाई उतना ज्‍यादा लोकप्रिय नहीं था। लालू चच्‍चा हमेशा उसकी शिकायत करते थे, ‘’बेटा तुम्‍हारे बड़े भाई के संस्‍कार बेहद खराब हैं।
जब भी मैं कूड़ा सड़क किनारे डालने जाता हूं, वह टोक देता है कि डस्‍टबीन में डालिये। बताओ इसे बड़ों से बात करने तक का शऊर और संस्‍कार नहीं है, जबकि तुम्‍हारे जैसा संस्‍कारवान एवं सबको प्रिय लगने वाला भाई उसके घर में है, जिसमें सज्‍जनता एवं संस्‍कार कूट कूटकर भरा हुआ है।‘’ खैर, मेरी सज्‍जनता, संस्‍कार एवं लोकप्रियता की वजह से तमाम जगहों पर मेरे सही गलत काम हो जाते थे, जबकि असंस्‍कारी एवं अलोकप्रिय चचेरे भाई का सही काम भी नहीं हो पाता था। उसकी कोई इज्‍जत भी नहीं थी। मोहल्‍ले में उसकी गिनती सबसे ज्‍यादा उज्‍जड और असंस्‍कारी में होता था, क्‍योंकि वह किसी के गलत करने पर टोका-टाकी करता था, जबकि मुझे कभी किसी की गलती नजर ही नहीं आती थी। मैं अपनी मेहनत की बदौलत इतना लोकप्रिय हो गया था कि लोग मुंह पर मेरी तारीफ करते थे, और पीठ पीछे गाली देते है।
पंकज सीबी मिश्रा / राजनीतिक विश्लेषक एवं पत्रकार जौनपुर, यूपी

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