राजीव डोगरा – कांगड़ा हिमाचल प्रदेश
तुम सृष्टि के
कण-कण में हो।
तुम मानव केमन-मन में हो।
तुम बीतते वक्त के
क्षण-क्षण में हो।
तुम सोचते-विचारते
जन-जन में हो।
तुम बनती बिगड़ती
परिकल्पना के पल-पल में।
तुम अनंत व्योम के चमकते
सितारे-सितारे में हो।