मिली जानकारी के अनुसार, मुख्य सचिव दीपक कुमार ने सभी विभागों को निर्देश जारी करते हुए कहा है कि अब FIR, गिरफ्तारी ज्ञापन या अन्य पुलिस दस्तावेजों में जाति का उल्लेख नहीं किया जाएगा। इसके बजाय, पहचान के लिए माता-पिता के नाम का इस्तेमाल किया जाएगा। आदेश में आगे निर्देश दिया गया है कि पुलिस स्टेशन के नोटिसबोर्ड, वाहनों या साइनबोर्ड पर प्रदर्शित जातिगत प्रतीकों, नारों और संदर्भों को तुरंत हटा दिया जाना चाहिए।
रिपोर्ट के अनुसार, मुख्य सचिव दीपक कुमार ने सभी विभागों को निर्देश जारी करते हुए कहा है कि अब प्रथम सूचना रिपोर्ट (FIR), गिरफ्तारी ज्ञापन या अन्य पुलिस दस्तावेजों में जाति का उल्लेख नहीं किया जाएगा।
FIR, गिरफ्तारी ज्ञापन या अन्य पुलिस दस्तावेजों में नहीं होगा जाति का जिक्र
मिली जानकारी के अनुसार, मुख्य सचिव दीपक कुमार ने सभी विभागों को निर्देश जारी करते हुए कहा है कि अब FIR, गिरफ्तारी ज्ञापन या अन्य पुलिस दस्तावेजों में जाति का उल्लेख नहीं किया जाएगा। इसके बजाय, पहचान के लिए माता-पिता के नाम का इस्तेमाल किया जाएगा। आदेश में आगे निर्देश दिया गया है कि पुलिस स्टेशन के नोटिसबोर्ड, वाहनों या साइनबोर्ड पर प्रदर्शित जातिगत प्रतीकों, नारों और संदर्भों को तुरंत हटा दिया जाना चाहिए।
राज्य भर में जाति-आधारित रैलियों पर भी प्रतिबंध
इसके अतिरिक्त, राज्य भर में जाति-आधारित रैलियों पर प्रतिबंध लगा दिया गया है और कानून प्रवर्तन एजेंसियों को उल्लंघन को रोकने के लिए सोशल मीडिया प्लेटफार्मों की सख्त निगरानी सुनिश्चित करने का काम सौंपा गया है। हालांकि, सरकार ने स्पष्ट किया है कि अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत दर्ज मामलों में छूट लागू होगी, जहां जाति की पहचान करना एक आवश्यक कानूनी आवश्यकता है। उच्च न्यायालय के निर्देश को प्रभावी ढंग से लागू करने के लिए मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) और पुलिस मैनुअल में संशोधन किए जाएंगे।
दरअसल, 29 अप्रैल 2023 को अभियोजन पक्ष के अनुसार, पुलिस की टीम ने गाड़ी रोककर तलाशी ली थी। इस गाड़ी से प्रवीण छेत्री समेत तीन लोगों को पुलिस ने पकड़ा था। उनके साथ सैकड़ों शराब की बोतलें बरामद की गईं थीं। इस मामले में पुलिस ने आरोपियों की जाति, पहाड़ी राजपूत, माली, ब्रह्मण और ठाकुर का जिक्र कर FIR दर्ज की थी।
विभिन्न मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, प्रवीण छेत्री पुलिस के द्वारा की गई इस कार्रवाई को लेकर हाईकोर्ट पहुंचे थे। उन्होंने याचिका दायर कर इस केस को रद्द करने की कोर्ट से मांग की थी। वहीं, इस मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस विनोद दिवाकर ने आदेश जारी किए थे कि पुलिस थानों में लगे नोटिस बोर्ड पर भी आरोपियों के नाम के साथ उनकी जाति का जिक्र ना हो। साइनबोर्ड या घोषणाएं, जो किसी संपत्ति या क्षेत्र को जाति से जोड़ती हैं, उन्हें तुरंत हटा लिया जाए।